बिखरे हर अल्फ़ाज के हालातों
में फंसी खुद को मनाती रही
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |
आँखों में सपने सजाती रही
धडकनों को आस बंधाती रही
मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |
हाथ बढाया कभी तो छुड़ाया कभी
यूँ ही तेरे ख्यालों में आती जाती रही
याद कर हर लम्हा मुस्कुराती रही
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |
मैं खुद को न जाने क्यों सताती रही
हर कदम पे यूँ ही खिलखिलाती रही
खुद को कभी हंसती कभी रुलाती रही
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |
मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही |
- दीप्ति शर्मा
5 टिप्पणियां:
achchhi shabd rachna...
सुंदर प्रस्तुति ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
मैं खुद को न जाने क्यों सताती रही
हर कदम पे यूँ ही खिलखिलाती रही.....waah! bahut hi achi panktiyaan hai....
उदात्त समर्पण गीतिका
सुंदर शब्द संयोजन।
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