गुरुवार, 17 नवंबर 2011

गुनगुनाती रही



मेरी खामोशियाँ  मुझे रुलाती रहीं
बिखरे हर अल्फ़ाज के हालातों 
में फंसी खुद को मनाती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |

आँखों में सपने सजाती रही 
धडकनों को आस बंधाती रही 
मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |

हाथ बढाया कभी तो छुड़ाया कभी 
यूँ ही तेरे ख्यालों में आती जाती रही 
याद कर हर लम्हा मुस्कुराती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |

मैं खुद को न जाने क्यों सताती रही 
हर कदम पे यूँ ही खिलखिलाती रही 
खुद को कभी हंसती कभी रुलाती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |
मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही |

- दीप्ति शर्मा 

5 टिप्‍पणियां:

आशा बिष्ट ने कहा…

achchhi shabd rachna...

Pallavi saxena ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

avanti singh ने कहा…

मैं खुद को न जाने क्यों सताती रही
हर कदम पे यूँ ही खिलखिलाती रही.....waah! bahut hi achi panktiyaan hai....

Arvind Mishra ने कहा…

उदात्त समर्पण गीतिका

Atul Shrivastava ने कहा…

सुंदर शब्‍द संयोजन।