लिव इन रिलेशनशिप से मिलने-जुलने वाली यह परंपरा राजस्थान में आज भी कायम है। इस प्रथा का नाम है ‘नाता प्रथा’। राजस्थान की इस इस प्रथा के मुताबिक, कोई शादीशुदा पुरुष या महिला अगर किसी दूसरे पुरुष और महिला के साथ अपनी इच्छा से रहना चाहती है तो वो अपने पति या पत्नी से तलाक लेकर रह सकती है। इसके लिए उन्हें एक निश्चित राशि चुकानी पड़ती है।
इस प्रथा में महिला और पुरुष के बच्चों और दूसरे मुद्दों का निपटारा पंचायत करती है। उन्हीं के निर्णय के हिसाब से तय किया जाता है कि बच्चे किसके साथ रहेंगे। ये इसलिए किया जाता है कि ताकि बाद में महिला या पुरुष के बिच किसी चीज़ को लेकर मतभेद न हो। वो अपनी जिंदगी अपनी पंसद के व्यक्ति या स्त्री के साथ आराम से काट सके।
राजस्थान में इस प्रथा का चलन ब्राह्मण, राजपूत और जैन को छोड़कर बाकी की जातियों में देखा जा सकता है। गुर्जरों में यह परंपरा यहां खासकर लोकप्रिय है। इस प्रथा से यहां के पुरुष और महिलाओं को तलाक के कानूनी झंझटों से छुटकारा तो मिलता ही है साथ ही में अपनी पसंद का जीवन साथी के साथ रहने का हक भी मिल जाता है।
हालांकि, बदलते वक्त के साथ इस प्रथा में भी कई विसंगतियां आई हैं। इसका स्वरूप भी बदला है। कई बार तो इस प्रथा की आड़ में महिलाओं को दलालों के हाथों बेचने का घिनौना खेल भी खेला जाता है।
7 टिप्पणियां:
jamal ji -you have raised a very serious issue in this post which has been written by harimohan ji .did you take permission from him ? one of your last post some person has raised objection that you haven't got permission from him .give special concern over this issue .
this was the objection -डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' ने कहा…
aap khud to binaa poochhe copyr karte hain?
nice informative post .
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं
यह तलाक प्रथा हुई न कि लिव इन रिलेशनशिप....
---यूं तो भारत के निम्न समुदाय में कोइ भी स्त्री या पुरुष कभी भी किसी को भी छोड़कर अन्य के साथ रहने लगना सदैव से ही होता आया है...परन्तु इसे कभी सामाजिक मान्यता नहीं प्राप्त हुई....
---- जैसे चोरी सभी समाजों में सदा होती आयी है परन्तु क्या उसे सामाजिक मान्यता प्राप्त है ??????
--- ये सब व्यर्थ के प्रश्न व विवरण हैं....
शिखा जी, काम चलाऊ तरीका है। भरोसेमंद नहीं कहा जा सकता। आपका ब्लॉग अच्छा लगा। दिलचस्प जानकारी देने के लिए आपका आभार। ।
@ शिखा कौशिक जी ! फ़ेसबुक जैसे सार्वजनिक मंच पर व्यक्त किये गये विचार सभी पढ़ते हैं और बहुत से लोग उन्हें शेयर करते हैं और उसमें असल पोस्ट का लिंक होता है. इस पर किसी को ऐतराज़ करते हमने नहीं देखा है. ऐसे किसी ऐतराज़ की कोई अहमियत है भी नहीं. किसी की निजी वेबसाइट से कोई सामग्री ली जाये तो उसकी इजाज़त लेने की ज़रूरत पेश आ सकती है. यह बात सभी ब्लॉगर्स को समझ लेनी चाहिये.
वैसे भी आप चन्द लाइनें किसी भी लेखक के लेख से उद्धृत कर सकते हैं बिना उस लेखक की परमिशन के, चाहे उस लेख के सर्वाधिकार सुरक्षित हों तब भी. यह हरेक पाठक का क़ानूनी अधिकार है.
आप किसी भी मशहूर लेखक की पुस्तक को पढ लें उसमें आपको बहुत से लेखकों के विचार मिल जायेंगे जिन्हें उनकी कृतियों से लेकर पेश किया जाता है. उनसे बड़ा लेखक यहाँ कोई नहीं है कि वह अपना अलग क़ानून चलाये या बेवजह और बेकार ऐतराज़ करे.
शुक्रिया.
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