मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

एक प्रश्न

एक प्रश्न


दहेज़- प्रथा पर
कितने ही निबंध
लिखें होंगें उसने;
कितना ही बुरा
कहा होगा;
लेकिन 'वो'
कली फिर से मसल
दी गई;
नाम 'पूनम' हो या 'छवि'
या कुछ और;
कब रुकेगा
कत्लों का
यह दौर?पूछती
है हर बेटी
इस मूक समाज से;
जो विरोध में
आते हैं दहेज़-हत्या के
क्या निजी तौर पर वे
भी नहीं लेते 'दहेज़'?
एक प्रश्न
जिसका नहीं है
आज किसी के पास
संतोषजनक जवाब....

शिखा कौशिक 'नूतन '

5 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

sahi prashn kintu kisi ke pas bhi iska koi jawab nahi .

डा श्याम गुप्त ने कहा…

जबाव तो है पर जबाव देने की हिम्मत नहीं है.....

Himkar Shyam ने कहा…

कविता भावपूर्ण है...आपकी चिंता जायज़ है...सवाल अनुतरित है...बहसें चलती रहेंगी...

Unknown ने कहा…

कुछ सवालो को जवाब नहीं होते और कुछ के हम देना नहीं चहाते

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

साँप सूंघ जाता है जब ये सवाल सामने आता है ॥