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ब्रज
बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...
आदि शक्ति पद पंकज, धरि ध्यान,
बरवै छंद कहै चहूं, मन सुख मान |
जीवन नौका पापमय,पार न जाय,
श्याम भजे घनश्याम को, पार लगाय |
नश्वर माया लूटिकै, चोर कहायं ,
राम नाम जो लूटिहौ, पाप नसायं|
तेल पाउडर बेचिकें, अति सुखु पायं,
जनता हीरो कहि रही, वे इठ्लायं |
अरथहीन तुकबंदी, हमहि न भाय,
कविता साँची करौ , मन हरखाय |
कत्था चूना पान मुख ,बहुरि सुहाय ,
अरबुद श्याम बने मुख,कछु न सुहाय |
बानी वृथा जो रसना, रस न बहाय ,
जगु जीते बानी सुघर, रस बरसाय |
कन कन में सो बसि रह्यो, ढूंढ न पे,
मंदिर मस्जिद चरच में, ढूंढन जाय |
पर पीरा में नहिं बहे, जे दृग नीर,
कहा श्याम दीदा धरे, जो बे पीर ||
मेरे नवीनतम प्रकाशित ब्रजभाषा
काव्य संग्रह ..."
ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ
गीत,
ग़ज़ल,
पद,
दोहे,
घनाक्षरी,
सवैया,
श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नवगीत आदि मेरे ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में
प्रकाशित की जायंगी ... ....
कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का
संग्रह )
रचयिता ---डा श्याम गुप्त
--- सुषमा गुप्ता
प्रस्तुत है .....भाव-अरपन .....चौदह.....बरवै छंद........आदि शक्ति पद पंकज, धरि ध्यान,
बरवै छंद कहै चहूं, मन सुख मान |
जीवन नौका पापमय,पार न जाय,
श्याम भजे घनश्याम को, पार लगाय |
नश्वर माया लूटिकै, चोर कहायं ,
राम नाम जो लूटिहौ, पाप नसायं|
तेल पाउडर बेचिकें, अति सुखु पायं,
जनता हीरो कहि रही, वे इठ्लायं |
अरथहीन तुकबंदी, हमहि न भाय,
कविता साँची करौ , मन हरखाय |
कत्था चूना पान मुख ,बहुरि सुहाय ,
अरबुद श्याम बने मुख,कछु न सुहाय |
बानी वृथा जो रसना, रस न बहाय ,
जगु जीते बानी सुघर, रस बरसाय |
कन कन में सो बसि रह्यो, ढूंढ न पे,
मंदिर मस्जिद चरच में, ढूंढन जाय |
पर पीरा में नहिं बहे, जे दृग नीर,
कहा श्याम दीदा धरे, जो बे पीर ||
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