सोमवार, 24 मार्च 2014

''.. चौखट न पार करना ''

बस इतना याद रखना चौखट न पार करना ,
मेरा लिहाज़ रखना चौखट न पार करना !
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आँगन,दीवार,छत हैं कायनात तेरी ,
इसमें जीना-मरना चौखट न पार करना !
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खिदमत करे शौहर की बेगम का है मुकद्दर ,
सब ज़ुल्म मेरे सहना चौखट न पार करना !
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नाज़ुक कली सी हो तुम बेबस हो तुम बेचारी ,
मेरी पनाह में रहना चौखट न पार करना !
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ढक -छिप के जो है रहती औरत वही है 'नूतन'
गैरों से पर्दा करना चौखट न पार करना !
शिखा कौशिक 'नूतन'

5 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

VERY NICE.

देवदत्त प्रसून ने कहा…

काश नारी वास्तविक अर्थों में स्वतंत्र हों सके !

Unknown ने कहा…

चौखट छोड़ो आज की औरत तो सरहद पार जा रहीं हैं
लेकिन यह नशीव कुछ ही लड़कियों का हैं।

Unknown ने कहा…

चौखट छोड़ो आज की औरत तो सरहद पार जा रहीं हैं
लेकिन यह नशीव कुछ ही लड़कियों का हैं।

डा श्याम गुप्त ने कहा…

--- सुन्दर व सटीक रचना....
सही कहा सावन कुमार..... कुछ तो सरहद पार जा रही हैं ..परन्तु कुछ चौखट भी पार नहीं कर पा रही हैं......यह हालत बदलनी चाहिए....