यदि राधा व
गोपिकाएं श्री कृष्ण से असीम प्रेम करतीं हैं, सर्वस्व अर्पण की भावना रखती हैं तो श्रीकृष्ण भी उनका श्रृंगार करते हैं, अंजन लगाते हैं, मयूर नृत्य करते हैं, स्त्री का सांवरी रूप धरते हैं, मुरली-गान से मनोरंजन करते हैं, उनकी सखियों का भी मान रखते हैं, यहाँ तक कि राधाजी के पैर भी छूते हैं; पुरूष में 'अहं 'होता है, स्त्री में 'मान' ...परन्तु प्रेम, पति-पत्नी, स्त्री-पुरूष संबंधों में अहं नहीं होता| स्त्री का मान मुख्यतया प्रेम की गहराई से उत्पन्न होता है| यदि पुरूष स्त्री को बराबरी का दर्जा दे अहं छोड़कर उसके मान की रक्षा करे, स्त्री के स्व का , स्वजनों का, इच्छा का सम्मान करे तो सामाजिक, पारिवारिक द्वंद्व नहीं रहते |
उस काल में, द्वापर युग में.... भौतिक प्रगति, जनसंख्या वृद्धि के कारण आर्थिक-सामाजिक -वाणिज्यिक कारणों से पुरुषों की अति व्यस्तता स्त्री-पुरूष संबंधों में दरार व द्वंद्व बढ़ने लगे थे| त्रेता में शमित आसुरी प्रवृत्तियां पुनः बढ़ने से स्त्रियों की सुरक्षा हेतु उनकी स्वतन्त्रता पर अंकुश भी बढ़ने लगा था | पुरूष श्रेष्ठता व स्त्री आधीनता को महिमा मंडित किया जाने लगा था| श्रीकृष्ण के रूप में स्त्रियों को उनकी की स्वतन्त्रता, बराबरी, श्रेष्ठता का प्रतीक मिला, वे सर्व-सुलभ, सहज, स्त्रियों का मान रखने वाले, सम्पूर्ण तुष्टि देने वाले थे जो वस्तुतः स्त्रियों की सहज आशा व चाह होती है; राधा... श्रीकृष्ण की चिर संगिनी, प्रेमिका, कार्य-संपादिका एवं इस नारी-उत्थान व समाजोत्थान में पूर्ण सहायिका थी।
श्री कृष्ण-राधा के कार्यों के कारण गोपिकाए ( ब्रज-बनिताएं) पुरुषों के अन्याय, निरर्थक अंकुश तोड़ कर बंधनों से बाहर आने लगीं, कठोर कर्मकांडी ब्राह्मणों की स्त्रियाँ भी पतियों के अनावश्यक रोक-टोक को तोड़कर श्रीकृष्ण के दर्शन को बाहर जाती हैं। यह स्त्री स्वतन्त्रता, सम्मान, अधिकारों की पुनर्व्याख्या थी। वैदिक काल से त्रेता तक के लंबे काल-खंड में कालगत्यानुसार पश्चत्रेता काल में जो सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक शून्यता समाज में आई उसी की पुनर्स्थापना करना कृष्ण-राधा का उद्देश्य था |
उस काल में, द्वापर युग में.... भौतिक प्रगति, जनसंख्या वृद्धि के कारण आर्थिक-सामाजिक -वाणिज्यिक कारणों से पुरुषों की अति व्यस्तता स्त्री-पुरूष संबंधों में दरार व द्वंद्व बढ़ने लगे थे| त्रेता में शमित आसुरी प्रवृत्तियां पुनः बढ़ने से स्त्रियों की सुरक्षा हेतु उनकी स्वतन्त्रता पर अंकुश भी बढ़ने लगा था | पुरूष श्रेष्ठता व स्त्री आधीनता को महिमा मंडित किया जाने लगा था| श्रीकृष्ण के रूप में स्त्रियों को उनकी की स्वतन्त्रता, बराबरी, श्रेष्ठता का प्रतीक मिला, वे सर्व-सुलभ, सहज, स्त्रियों का मान रखने वाले, सम्पूर्ण तुष्टि देने वाले थे जो वस्तुतः स्त्रियों की सहज आशा व चाह होती है; राधा... श्रीकृष्ण की चिर संगिनी, प्रेमिका, कार्य-संपादिका एवं इस नारी-उत्थान व समाजोत्थान में पूर्ण सहायिका थी।
श्री कृष्ण-राधा के कार्यों के कारण गोपिकाए ( ब्रज-बनिताएं) पुरुषों के अन्याय, निरर्थक अंकुश तोड़ कर बंधनों से बाहर आने लगीं, कठोर कर्मकांडी ब्राह्मणों की स्त्रियाँ भी पतियों के अनावश्यक रोक-टोक को तोड़कर श्रीकृष्ण के दर्शन को बाहर जाती हैं। यह स्त्री स्वतन्त्रता, सम्मान, अधिकारों की पुनर्व्याख्या थी। वैदिक काल से त्रेता तक के लंबे काल-खंड में कालगत्यानुसार पश्चत्रेता काल में जो सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक शून्यता समाज में आई उसी की पुनर्स्थापना करना कृष्ण-राधा का उद्देश्य था |
3 टिप्पणियां:
sargarbhit aalekh hetu hardik aabhar
बधाई
धन्य्वाड शिखाजी व सावन कुमार...
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