शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

महिलाओं की स्थिति.... हमें सोचना होगा....डा श्याम गुप्त ..



                                      महिलाओं की स्थिति.... हमें सोचना होगा....
                            आज के समाचार-पत्रों, मीडिया आदि में समाज की विभिन्न मुद्राओं, समाज के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों, स्थितियों के मध्य महिलाओं की स्थिति पर गहन विचार करता हूँ तो कुछ यक्ष-प्रश्न  मन में आकार लेते हैं, घुमड़ते हैं, मन को मथते हैं   पुरा व प्राचीन व अर्वाचीन  काल में भी महिलायें ...यथा पार्वती, दुर्गा अनुसूया, सीता, राधा, द्रौपदीवेदों की मन्त्रकार महिलायें   पद्मिनी, जीजाबाई,  लक्ष्मीबाई जैसी महिलायें भी सौन्दर्य की प्रतिमान  थीं परन्तु वे  अपने ज्ञान, कुशलता, शौर्य, तप, भक्ति आदि के बल पर अपना लोहा मनवाने में सफल, चर्चित व प्रशंसित हुईं  न कि सौन्दर्य के बल पर परन्तु आज के परिप्रेक्ष्य में यदि देखा जाय तो आज कौन महिलाओं की विद्वता,  ज्ञान,  शौर्य,  भक्ति,  तप आदि  सद्गुणों पर मुग्ध होरहा है?  सभी  बालों के सौन्दर्य, बालों की सुगंध, साबुन-सर्फ़ की खुशबू, सुन्दर ड्रेस, जूते, स्कूटर-गाडी के रंग की तारीफ़ करती हुई महिला, मोडल,  हीरोइन  जिसकी नर्म व चिकनी  स्किन ग्लो करती है  उसी पर मुग्ध हैं।  कच्छा  पहन कर फूल खिलाने वाली नारी पर मुग्ध हैं, वे ही  सेलेब्रिटी  हैं ..महान महिलायें  हैं अर्थात शारीरिक सौन्दर्य पर सभी मुग्ध हैं .....विद्या बालन को  डर्टी-रोल के लिए अवार्ड दिया जाता है न कि किसी विद्वतापूर्ण कार्य के लिए।  इसमें स्वयं स्त्रियाँ ही सम्मिलित हैं  उनके सहयोग, लालसा, लोलुपता,  अनियमित,  अवांछित,  आकाशी  आकान्छाएं, शोर्ट-कट द्वारा शरीर-सौन्दर्य  के बल पर प्रसिद्धि पाने की इच्छा  के बिना यह नहीं होसकता । इसीलिये  आज हम प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं के साथ अभद्रता, वलात्कार, शोषण जैसी बातें  आये दिन सुनते है-देखते हैं   राजनीति, शिक्षा, चिकित्सा, साहित्य, कला,  लेखिका, कारपोरेट जगत, शासन, आई ऐ एस,  जज - मजिस्ट्रेट,  सेनासाध्वियां  सभी उच्च से उच्च क्षेत्र की अफसर  महिलाओं के भी शोषण, उनसे  अभद्रता का समाचार सुनते हैं   जाने कितनी  मधुमिताएं,  कवितायें,  आई ऐ एस,  जज,  एडवोकेट, चिकित्सक  महिलायें  भी  शिकार हुईं हैं । कुछ  बदमाश, दुष्ट लोग हर युग में होते हैं परन्तु इस युग में तो सभी उच्च पदस्थ,  उच्च कोटि के व्यक्ति रत  हैं  महिलाओं के  शोषण में । लगता है की महिला चाहे जितनी पढी-लिखी हो वह सिर्फ औरत है, जिस्म है शोषण के लिए । यद्यपि सिर्फ एसा ही नहीं है, तमाम महिलायें आज भी अपने ज्ञान, विद्वता सशक्त आचरण के कारण आदरणीय भी हैं ।
         
यदि पुरा,  पूर्व,  मध्य व वर्तमान  काल में महिलाओं के स्वयं के व्यवहार  एवं उनके प्रति पुरुष व समाज के व्यवहार  पर  एक विहंगम दृष्टि डाली जाय तो कुछ  विशिष्ट तथ्य सम्मुख आते हैं ।
        
सतयुग  आदि  पुराकाल में  महिलायें अपेक्षाकृत काफी स्वतंत्र थीं इस काल में महिलाओं से अभद्रता के उदाहरण प्राय नहीं मिलते । महिलायें  स्वयम के कठोर अनुशासन में ही रहतीं थीं । वैदिक ऋषिकाओं का ज्ञान, पार्वती  का तप  व भक्ति,  दुर्गा की शक्ति महिलाओं के आदर का कारण होता था। हम देखते हैं कि जहां नहुष के सत्ता मदांध होजाने पर इंद्राणी से सम्बन्ध बनाने की बात पर इंद्राणी  अपनी चतुरता से उसे श्राप का भागी बनाकर अपने से अभद्र व्यवहार नहीं होने देती । अनुसूया  अपने त्याग, ज्ञान व भक्ति  के बल पर स्त्रियों में श्रेष्ठ की भाँति प्रशंसित होती है, उससे कोई  अभद्रता नहीं कर पाता ....त्रिदेव भी नहीं । अपाला, घोषा, गार्गी , लोपामुद्रा आदि जहां वैदिक -ऋषिकाएँ  अर्थात ज्ञानी होने के कारण  उनसे कोई अभद्रता नहीं कर पाया इसीलिये  वे आदरणीय व अनुकरणीय हैं ......वहीं  अहल्या  अपने अज्ञान व भक्ति की कमी  तथा शायद  स्वयं ही  इंद्र का साथ देने के लिए अपने से अभद्रता को न रोक पाई   अतः आदर का पात्र नहीं हुई ।
                परवर्ती काल में देखें तो  कैकेयी , कौशल्या  आदि राजनीति में निपुण व ज्ञानवान होने के कारण उनसे कोई अभद्रता नहीं कर पाया वे प्रसिद्द व श्रद्देय हुईं  वहीं  ताड़का व शूर्पणखा स्वयं ही ज्ञान भक्ति तप की कमी व कमजोर चरित्र की होने के कारण अभद्रता की शिकार हुईं व समाज द्वारा त्याज्य    सीता  मर्यादा के उल्लंघन के कारण कष्ट की भागी हुई यद्यपि ज्ञान, जन जन  नेत्रित्व गुण, भक्ति, तप के कारण अभद्रता का शिकार नहीं हुई  और आदरणीय व अनुकरणीय है कैकसी जैसी  महिला  विश्रवा जैसे महान ऋषि की पत्नी व रावण जैसे विश्वविजयी पुत्र की मन होने पर भी सम्मान की पात्र नहीं हुई क्योंकि वह स्वयं अमुहूर्त में अमर्यादित तरीके से ऋषि से सम्बन्ध बनाती है एवं ज्ञान, तप, भक्ति से सर्वथा हीन होती है ।
               
वहीं द्वापर काल में राधा  अपने जन-जन नेतृत्व क्षमता, ज्ञान, त्याग व तप की विद्वता के कारण कभी अभद्रता का शिकार नहीं  हुई और देवी रूप में विश्व में प्रतिष्ठित हुई । द्रौपदी  अपने कुशल संचालन, तीब्र बुद्धि कौशल, ज्ञान एवं तप व भक्ति के कारण ....इतने झंझावात झेलती हुई, अभद्रता का दंश ( जो उसके आचरण के कारण  नहीं अपितु  दुश्मनी के कारण हुआ) झेलते हुए  भी समाज में आदरणीय का स्थान रखती है जबकि वहीं  चित्रांगदा, उलूपी, हिडिम्बा आदि  अपने स्वतंत्र आचरण के कारण कष्ट की भागी हुईं एवं  इतिहास पुरुषों की पत्नियां होने पर भी  इतिहास में आदर का पात्र नहीं बनीं यहाँ तक की सुभद्रा भी कोई विशिष्ट ज्ञान आदि न होने के कारण एवं अपहरण का भाव होने के कारण समाज में इतनी प्रतिष्ठित नहीं हुई ।  अपहृत -विवाहित कोई भी स्त्री समाज के आदर व अनुकरण का पात्र नहीं हुई, यद्यपि अपहरण करके विवाह की समाज में मान्यता थी 
                  
वर्तमान  मुग़ल व  अंग्रेजों  के काल में भी सशक्त, ज्ञानी, तप भक्ति युक्त महिलाओं लक्ष्मी बाई, जीजाबाई, पद्मिनी, मीरा, कर्मावती, दुर्गावती  से कोई कब अभद्रता कर पाया । राय प्रवीण  जैसी नर्तकी भी अपनी चतुरता के बल पर अकबर जैसे सम्राट को  'झूठी पातर खात हैं, वायस, वारी, श्वान ' , सुनाकर अपने से अभद्रता नहीं होने देती 
                         
यदि उपरोक्त को संज्ञान में लिया जाय तो कुछ तथ्य इस प्रकार दृष्टिगत होते हैं....
१-यह सब हर काल में होता रहा परन्तु कभी-कभी, कहीं-कहीं दुर्घटनाओं वश परन्तु  आज के आधुनिक काल में यह एक प्रायोजित कर्म की भांति दृष्टिगत होता है ।
२- पुरुष तो सदैव ही सौन्दर्य, शरीर, मांसलता से आकर्षित होता है यह एक स्वाभाविक चारित्रिक दौर्बल्य है परन्तु ऐसे पुरुषों को भी समाज में स्वाभाविक भाव-रूप से अधिक आदर नहीं मिल पाता।
३- स्त्रियों का स्वयं का व्यवहार, ज्ञान, कुशलता, तप, त्याग भावना, चारित्रिक दृड़ता ही उसकी रक्षक है ।
४- शारीरिक सौन्दर्य का उपयोग व चारित्रिक दृड़ता की कमी के कारण  असंगत व्यवहार व चारित्रिक दर्बलता वाली संतति -पुत्र ( कैकसी-रावण) पैदा होने पर समाज में ..पुरुषों-स्त्रियों में चारित्रिक दुर्बलता  आती है जबकि सबल चरित्र वाली माताओं की संतान सबल चरित्र( जीजाबाई- शिवाजी ) की एवं चारित्रिकता की उन्नायक  होती है ।
                            
अतः निश्चय ही नारी ही सदैव समाज की रीढ़ है पुरुष नहीं । इसीलिये पुरुषों  के लिए यह स्पष्ट आदेश हैं कि ' यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता अर्थात नारियों का सम्मान पुरुषों का  मूलभूत कर्तव्य है  
                            आज की वर्तमान स्थिति के लिए निश्चय ही  'कच्छा पहन कर फूल खिलाने वाली ' नारी स्वयं जिम्मेदार है नारी को यह  समझना होगा तथा  नारी के शारीरिक सौन्दर्य का उपयोग करने वाला पुरुष व समाज को भी    नारी को यह सोचना होगा साथ ही साथ पुरुषों को और सारे समाज को भी ।
                 
                    

3 टिप्‍पणियां:

Ankur Jain ने कहा…

बेहद गहन व सार्थक प्रस्तुति।।।

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद अंकुर.....सभी सोचें तो बात बने...

Jyoti Dehliwal ने कहा…

उपयोगी जानकारी एवम् सुंदर प्रस्तुति...