देख कर उर्मिल का मुख ,
माँ का ह्रदय व्यथित हुआ ,
दैव ने नव-वधु को
क्यूँ ये दारुण दुःख दिया ?
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भर आये अश्रु नयनों में ,
जननी लखन की हुई विकल ,
मन में उठे ये भाव थे ,
होनी ही होती है प्रबल !
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लाये थे भ्रात चारो जब ,
ब्याह कर वधू साकेत में ,
आनंद छा गया था तब ,
दशरथ के इस निकेत में !
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वो दिवस और आज का ,
दोनों में कितना भेद है !
कैकेयी जीजी को भी अपनी
करनी पर अब खेद है !
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ये सोचती सुमित्रा ने
उर्मिल से बस इतना कहा ,
आ निकट पुत्री ! मेरी
न मन ही मन अश्रु बहा !
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उर्मिल ने देखा मात को
आई वहाँ उनके निकट ,
माता की पीड़ा देखकर
उर गया उर्मिल का फट !
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बोली दबाकर पीड़ा निज
माँ ! आज आप मौन हैं !
बस देखती एकटक मुझे
और सब कुछ गौण है !
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माता ने देखा नेह से
उर्मिल निकट ही थी खड़ी ,
नन्ही सी उनकी उर्मिला
करने लगी बातें बड़ी !
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उर के समीप लाइ तब
ममता छलकने थी लगी ,
मुरझाये न दुःख -ताप से
मेरी सुकोमल सी कली !
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चौदह बरस विरह-ताप को
कैसे सहेगी उर्मिला ?
जब मैं स्वयं अधीर हूँ
कैसे दूं इसको सांत्वना ?
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देख माता को विकल
उर्मिल ने बस इतना कहा ,
हे मात! रखिए धैर्य
टल जायेगा संकट महा !
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मैं हूँ जनक की नंदनी
सीता की छोटी हूँ बहन ,
हमको सिखाया मात ने
कैसे निभाते पत्नी-धर्म ?
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विचलित नहीं व्यथित नहीं ,
मुझको अटल विश्वास है ,
आयेंगें लौट सब कुशल ,
चौदह बरस की बात है !
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आप चिंतित न हो माँ !
है ये परीक्षा की घडी ,
धर्म -पथ पर बढे प्रिय
उर्मिल भी उस पर बढ़ चली !
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अब शोक मात !त्यागिये ,
उर्मिल निवेदन कर रही ,
हैं आप ही सम्बल मेरा
हे मात ! आप महिमामयी !
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उर्मिल वचन फुहार से
माँ का ह्रदय शीतल भया ,
मनोकामना बस हो कुशल से
लखन संग रघुबर-सिया !
शिखा कौशिक 'नूतन'
4 टिप्पणियां:
sundar bhavtmak abhivyakti .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (16-01-2014) को "फिसल गया वक्त" चर्चा - 1494 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उर्मिला के दर्द को आपने बहुत सुन्दरता से उभारा है शालिनी जी, बधाई !काव्य में प्रवाह है !
मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं !
नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
नई पोस्ट बोलती तस्वीरें !
क्या बात है -- पेश है एक मुक्तक....
सीता राम के साथ वन सहगमन में व्यस्त थी |
मांडवी श्रुतिकीर्ति पति भक्ति में अनुरक्त थीं |
सच्चा वनवास तो सहा था उर्मिला ने ही -
पति वियोग सहना ही उसकी पति-भक्ति थी |
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