न माँ की सेहत की चिंता , ना बाप के झुकते कन्धों की ,
तादाद बहुत है इस जग में अक्ल के ऐसे अंधों की !
..................................................................
ये घंटों यारों संग जाकर चौराहों पर बैठे रहते ,
न फ़िक्र पढ़ाई की इनको न किसी काम और धंधें की !
तादाद बहुत है इस जग में अक्ल के ऐसे अंधों की !
...................................................................
मित्रों की बाइक पर अक्सर ये मौज मनाते फिरते हैं ,
घरवालों को है नहीं खबर इनके इन गोरखधंधों की !
तादाद बहुत है इस जग में अक्ल के ऐसे अंधों की !
......................................................................
महंगा मोबाइल लेंगें ये वरना सुसाइड कर लेंगें ,
दहला देते माँ-बाप का दिल क्या कहिये इन हथकंडों की !
तादाद बहुत है इस जग में अक्ल के ऐसे अंधों की !
............................................................................
ये आसमान में उड़ते हैं नहीं पैर ज़मी पर ये रखते
ठोक-पिटाई वक्त पे हो नए नए इन गुंडों की !
तादाद बहुत है इस जग में अक्ल के ऐसे अंधों की !
शिखा कौशिक 'नूतन'
3 टिप्पणियां:
सुन्दर प्रस्तुति-
आभार आदरणीया -
महंगा मोबाइल लेंगें ये वरना सुसाइड कर लेंगें ,
दहला देते माँ-बाप का दिल क्या कहिये इन हथकंडों की !
सच का समर्थन करती कविता ...... आभार
ठोक पिटाी होसमय पर इन नए नए गुडों की।
एकदम सही कहा। सुंदर सामयिक प्रस्तुति।
एक टिप्पणी भेजें