भारत योगी जी ने अपनी एक पोस्ट में ये विचार प्रस्तुत किये हैं .क्या आप सहमत हैं ? यदि हाँ तो क्यों ?यदि ना तो क्यों ?
● इन्हें आजादी चाहिए कम कपड़े पहनने दो.
PLEASE READ FULL POST HERE -http://www.bharatyogi.net/2013/10/freedom.html● इन्हें आजादी चाहिए कम कपड़े पहनने दो.
16 टिप्पणियां:
koun kya karta hai ya kya pahnta hai ,aisi soch wali ladkiyan bahut kam hai ...
main baaton se sahmt bhi nahi hun aur asahmat bhi nahi ....
jarurt hai purushon ki soch badlne ki ,wah sirf stri ko gale ke neeche hi dhundhta hai uski aankhon me kabhi nahi dekhta ...
agree with bharat yogi ji
bharat ki sanskriti sabse purani snskriti he hmare snskar hmari takat hen yadi apne snskaron ko nhi bachaya to smajlo sb khatam maa, baa, bete, bhai, behn, dada, dadi koi rista nhi bachega aaps men koi sram nhi bachegi videsi apne bharat ki snskriti ko apna rahe hen lekin hmare desh ke dikhava psand log videsiyon ki snskriti ko apnate jarahen hen
aapne apne blog pr meri post ko to chipkadiya yadi aap ynha pr meri post ka link bhi dedeti to achcha hota
http://www.bharatyogi.net/2013/10/freedom.html
यार ये हर बात के लिए गाज पश्चिमी सभ्यता पे क्यों गिरती है। कितना देखा है पश्चिम को कोसने वालों ने पश्चिम? चयन सबका व्यक्तिगत होता है पूरब हो या पश्चिम। रूस की युवतियां साड़ियाँ पहन रहीं हैं तो यह उनका अपना चयन है। कृष्ण भक्तों में आज एक बड़ी संख्या अमरीकियों की है।
"बदलाव लाना आवश्यक हैं वरना पश्चिमी सभ्यता हमे
ले डूबेगी. !!
और एक बात याद रखो के जब जब सूरज पश्चिम में गया हैं तब तब डूबा ही हैं?"
और ये सूरज भी कभी डूबता नहीं है पश्चिम में ,न उगता है पूरब से। महज़ भ्रान्ति है डूबती उठती तो पृथ्वी है। पौर्वत्य (Oriental science and philosophy )को वही समझेगा जो जानेगा -गीता ज्ञान।
Any one can have a material consciousness ( irrespective of the part of the globe he belongs to) ,impure consciousness polluted with matter .Consciousness may be pervertedly reflected by the covering of material circumstances ,just as light reflected through colored glass may appear to be a certain color .
बदलाव प्रकृति का शाश्वत सत्य है, आज भारत जो है कल पुनः वही नहीं रहेगा . नंगई , देह प्रदर्शन स्त्रियों के द्वारा उचित नहीं है और तुर्रा ये कि अगर फिर उनके साथ कोई अभद्र वर्ताव हो तो कहेंगे कि पुरुषों की नजर में खोट है, पुरुष को प्रकृति ने ऐसा ही बनाया है, इस बात को समझना होगा एवं उचित एवं मर्यादित आचरण करना चाहिए ..... आज भी यूरोप एवं अन्य कई देशों में चढी पहनकर घूमती महिलाएं मिल जाएँगी , आज भी भारत की अधिकांश महिलाएं शालीनता से कपड़े पहनती है .. बदलाव चलता रहेगा , भारत में भी लोग नंगे घूमेंगे एवं यूरोप में भी लोग शालीन कपड़े पहनेंगे .. होना ये चाहिए कि ऐसी लड़कियां . महिलाएं जो नंगई करती है उनके साथ अगर अश्लील हरकत हो तो उन्हें अपना दृष्टिकोण भी बड़ा रखना चाहिए एवं छुई मुई की तरह बर्ताव नहीं करना चाहिए ..
हम सभी बदलावों को वैदिक काल से जोड़ कर तो नहीं देख सकते हैं। कल तक हम जिन स्वास्थ्य सेवाओं से स्वस्थ हो रहे थे क्या आज उन्ही सेवाओं से जीवित रहा जा सकता है? कल तक हम जिन यातायात साधनों को उपयोग में लाते थे क्या आज उन्ही साधनों से जीवन यापन किया जा सकता है। आवश्यकताएं और अभिलाषाएं निरंतर परिवर्तन कराती रहती हैं। देह-सज्जा, वस्त्र सज्जा आदि में भी व्यापक परिवर्तन आये हैं। यह निश्चित है परिवर्तन दोमुहे नहीं होने चाहिए। यदि मानसिक परिवर्तन हुआ है तो ये परिवर्तन भी स्वीकार्य हैं। यदि ये कहा जाए कि ऐसे ही कपड़ों के साथ पश्चिम के देशों में सभी स्त्री पुरुष बिना किसी अतिरिक्त झिझक अथवा आसक्ति के साथ साथ रहते और कार्य करते हैं। किन्तु भारतीय सोच में पश्चिमी देशों जैसा परिवर्तन तो नहीं आ सका है अभी तक। हम सहज रूप से ऐसे दृश्य स्वीकार नहीं कर पाते हैं इसीलिये ऐसी पीड़ा उपजती रहती है।
कब तक हम अपनी कमियों के लिए लड़कियों के कपडे , व्यवहार या संस्कार को जिम्मेदार ठहराएंगे ?
भारतीय संस्कार ये भी नहीं कहता कि किसी के पहनावे की कुत्सित आलोचना कि जाए और इस हद तक कि उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता बाधित हो...इतना ही हमे भारतीय संस्कारों कि चिंता है तो हमे खुद भी संस्कारित होना पड़ेगा और इस तरह एक सभ्य का निर्माण हो सकता है........
संस्कृति कोई भी बुरी नहीं है चाहे पश्चिम की हो या पूर्वकी हो औ रयह बात भी सच है कि हर संस्कृति की दृष्टिकोण अलग अलग है l पूर्व की दृष्टि कोण से देखे तो पश्चिम गलत लगता है और पश्चिम की नज़र से देखें तो पूर्व लगता है|लेकिन दोनों संसृति में अच्छाइयां भी है और बुराइयां भी | किसको क्या अच्छा लगता है यह तो व्यक्ति के ऊपर निर्भर है|इस को लेकर औरत या मर्द के समूचे समूह के दृष्टि कोण को जिम्मेदार ठहराना गलत है| हाँ कुछ ऐसा भी है जिसे हर जगह बुरा माना जाता है ,जैसे विवाह के बीना पति पत्नी जैसे रहना ,कुंवारी माँ बनना और गर्भपात करना|इन चीजो की नींद कि जानी चाहिए |
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संस्कृति कोई भी बुरी नहीं है चाहे पश्चिम की हो या पूर्वकी हो औ रयह बात भी सच है कि हर संस्कृति की दृष्टिकोण अलग अलग है l पूर्व की दृष्टि कोण से देखे तो पश्चिम गलत लगता है और पश्चिम की नज़र से देखें तो पूर्व लगता है|लेकिन दोनों संस्कृति में अच्छाइयां भी है और बुराइयां भी | किसको क्या अच्छा लगता है यह तो व्यक्ति के ऊपर निर्भर है|इस को लेकर औरत या मर्द के समूचे समूह के दृष्टि कोण को जिम्मेदार ठहराना गलत है| हाँ कुछ ऐसा भी है जिसे हर जगह बुरा माना जाता है ,जैसे विवाह के बीना पति पत्नी जैसे रहना ,कुंवारी माँ बनना और गर्भपात करना|इन चीजो की निन्दा की जानी चाहिए |
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लडकी ने क्या पहना यह जदा मायने नहीं रखता।
समाज की सोच क्या हैं लडकियों के बारे में। हर कोई लडकियों पर उगली उठा रहा हैं आखिर ऐसा क्यों
@BHARAT YOGI JI -SORRY TO HURT YOUR FEELINGS .I HAVE GIVEN YOUR BLOG'S LINK HERE .
भारत योगी जी जिन बातों को महिलाओं की आजादी से जोड़कर कहा है उनका दरअसल आजादी से तो कोई संबध ही नहीं है लेकिन कड़वी सच्चाई भी यही है कि आज उन्ही बातों को आधुनिकता और आजादी का पैमाना बना दिया गया है ! और इन पर कोई चर्चा भी करता है तो चर्चा करनें वाले की सोच को ही कठघरे में खड़ा करनें की कोशिशें शुरू हो जाती है ! जरुरत इस बात की है कि किसी भी संस्कृति से अच्छी बातें गृहण करें लेकिन आज तो बिना सोचे अंधानुकरण हो रहा है और उसको सही ठहराने के लिए तर्क दिए जा रहे हैं !
भारत जी, मेरे भी एक सवाल का जवाब देंगे क्या? यह सारी पाबन्दी लड़कियों पर ही क्यूँ? लड़के कौन से दूध के धुले हैं जो आप सिर्फ लड़कियों की आजादी की बात कर रहे हैं, पहले अपने गिरेबान में देखना होगा, बाकी गिरेबान देखने के लिए समय है अभी। जरा पूरा भारत एक बार फिर से देखिये और पायेंगे की अस्सी फीसदी से भी ज्यादा पुरुष आबादी को अपने पारंपरिक परिधान के पहनने का तरीका ही नहीं मालूम, उन्हें क्यूँ नहीं कोसते। क्षमा कीजियेगा आप बड़े हैं लेकिन एक बात जान लीजिये जिस भी समाज में औरतों को बांधा गया है उसका विनाश ही हुआ है, और हाँ हमारे भारत में औरत के ऊपर जुर्म अन्य पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत ज्यादा होते हैं, जबकि नए वस्त्र और आपने ऊपर जो यह अगड़म बाइस लिखा है वह केवल बीस फीसदी औरतें या लड़कियां ही करती होंगी, मतलब अब लड़कियों को बोर में बाँध के रखो न कोई देखेगा न कुछ कहेगा। भाई वह तो पारंपरिक परिधानों में भी सुरक्षित नहीं हैं। जाइए पहले अपने विचारों का शुद्धिकरण करवाइए फिर कुछ कहियेगा।
धन्यवाद।
और हाँ भारत की संस्कृति सबसे पुरानी है, सही लेकिन उसे बचाने के उपाय समाज के दोनों धडों(पुरुष और महिला) से होना चाहिए न की सारे आरोप महिलाओं के ही मथ्थे मढ़ दिए जाएँ, और भारत जी शायद यह भूल रहे हैं कि प्राचीन भर्तुया संस्कृति में औरत जो कपडे पहनती थी उससे उनका शारीर कही ज्यादा झलकता था अगर चाहें तो वेद, पुराण और रिसर्च पेपर्स की सहायता ले सकते हैं, अपना मन जब स्वयं संकीर्ण है तो यह पुरुष प्रधान समाज यही करता है और सबसे बड़ी बात हमारी स्त्रियाँ भी इससे स्वीकार कर लेती हैं। जागो नारी जागो।
नीरज जी क्या कल से आप सिर्फ पारंपरिक परिधान पहनना शुरू कर रहे हैं, अगर नहीं तो अपनी संकीर्ण सोच से आज के नव्निहालों को दूर रखें भारत ज्यादा खुशहाल होगा।
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