गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

Nirbhaya Fund of Rs. 1,000 Crores Announced

UPA GOVT.HAS FULFILLED HIS PROMISE TO GIVE CONCERN OVER WOMAN SECURITY .THIS IS THE PROOF -

Nirbhaya Fund of Rs. 1,000 Crores Announced

Government has taken a number of initiatives and steps supporting such initiatives being taken by non-government organizations to ensure the dignity and safety of women. In the backdrop of incidences of violence against women which challenges liberal and progressive credentials of our country, the Finance Minister Sh. P. Chidambaram pledged to do everything possible to empower women and to keep them safe and secure. 

Presenting the Budget 2013-14 in the Lok Sabha today, the Finance Minister proposed to set-up Nirbhaya Fund. Citing the multifarious role a woman plays as a child, a young student, sportswoman, homemaker, working woman and the mother who needs their support, the Minister announced that the Government will contribute Rs. 1,000/- crores in this Fund. Shri Chidambaram said that Ministry of Women and Child Development and other ministries concerned will work out the details of the structure, scope and the application of the Fund. 

बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

PARDA -PRATHA CAN NOT BE JUSTIFIED IN ANY MANNER !

 My Hijab My Choice (Fazal Subhan) Tags: women islam hijab choice niqab soe parda supershot magicalbeauty concordians flowerofislam fazlionlineghoonghat 1 (ashok monaliesa) Tags: woman india beautiful beauty eyes colours indian traditions dreams cultures parda pardah nakab ghoonghat
पर्दा -घूंघट -बुरका ...कुछ भी नाम दें -इसे ....नारी के मुख के साथ -साथ नारी के वजूद को ही छिपा डालने का एक उपाय पुरुष -प्रधान समाज ने ढूंढ निकाला था .....क्या विचार हैं आपके ?
  PARDA -PRATHA CAN NOT BE JUSTIFIED IN ANY MANNER !
WHAT 'S YOUR VIEW ?

               शिखा कौशिक 'नूतन '

रविवार, 24 फ़रवरी 2013

साहित्यकार दिवस...आमंत्रण ...डा श्याम गुप्त ...





 

                            


             १ मार्च, २०१३ शुक्रवार को  गांधी भवन, संग्रहालय, लखनऊ में    साहित्यकार दिवस पर  साहित्यकार -सम्मेलन में आप सब आमंत्रित हैं....
                                                                   ------------अखिल भारतीय अगीत परिषद् , लखनऊ.

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

Rehabililtaion of Rape Victims

 I AM SHARING THIS POST FROM ''


Rehabililtaion of Rape Victims

The scheme of `Restorative Justice to Victim of Rape’ as a component of Umbrella Scheme for Protection and Empowerment of Women has been formulated by Ministry of Women and Child Development for implementation during the remaining years of the 12th Plan. The Scheme envisages financial assistance of Rs. 1.20 lakhs and provision of support services such as shelter, counselling, medical aid, legal assistance, education and vocational training to rape victim depending upon her need. 
This was stated by Smt. Krishna Tirath, Minister for Women and Child Development, in a written reply to the Lok Sabha. 
      
          SHIKHA  KAUSHIK 'NUTAN
 
 
                                                                                

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

गुजारो जेल में जीवन कीड़े देह में भर जाएँ ,



 Mother : Beautiful black and white imahe of tlhe virgin Mary and the baby JesusMother : Virgin mary statue at Chantaburi province, Thailand.  Stock Photo
मेरी  मासूम बेटी ने बिगाड़ा क्या था कमबख्तों ,
उसे क्यूँ इस तरह रौंदा ,ज़रा मुहं खोलो कमबख्तों .

बने फिरते हो तुम इन्सां क्या था ये काम तुम्हारा ,

नोच डाली कली  मेरी, मरो तुम डूब कमबख्तों .

मिटाने को हवस अपनी मेरी बेटी मिली तुमको ,

भिड़ते शेरनी से गर, तड़पते खूब कमबख्तों .

दिखाया मेरी बच्ची ने तुम्हें है दामिनी बनकर ,

 झेलकर ज़ुल्म तुम्हारे, जगाया देश कमबख्तों .

किया तुमने जो संग उसके मिले फरजाम अब तुमको ,

देश का बच्चा बच्चा अब, देगा दुत्कार कमबख्तों .

कभी एक बेटी थी मेरी करोड़ों बेटियां हैं अब ,

बचाऊंगी सभी को मैं ,सजा दिलवाकर कमबख्तों .

मिला ये जन्म आदम का न इसकी कीमत तुम समझे ,

जो करना था तुम्हें ऐसा ,होते कुत्तों तुम कमबख्तों .

गुजारो जेल में जीवन कीड़े देह में भर जाएँ ,

तुम्हारा हश्र देखकर, न फिर हो ऐसा कमबख्तों .

बद्दुवायें ये हैं उस माँ की खोयी  है जिसने दामिनी ,

दुआ देती है ''शालिनी'',पड़ें तुम पर ये कमबख्तों .

                    शालिनी कौशिक

                        [कौशल ]





मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

श्याम स्मृति....दुर्गा देवी रहस्य ....एवं दशशीश रावण की हार के तत्वार्थ.....डा श्याम गुप्त




          महादेवी दुर्गा  को तीन महा-शक्तियों --महाकाली, शक्ति की देवी...महालक्ष्मी ,धन-संमृद्धि की देवी तथा महासरस्वती, विद्या व ज्ञान की देवी ....का  सम्मिलित अवतार कहा जाता है  |
          महादेवी दुर्गा समस्त दानवों, असुरों व दुष्टों व दुष्टता के विनाश का कारण बनती हैं...| इस तथ्य का तात्विक अर्थ है कि जब जब समाज में फैले अनाचार, असुरता आदि के विनाश की आवश्यकता होती है तो वे सभी व्यक्ति व विद्वान् जिनके पास धन बल है...शक्ति है एवं वुद्धि व ज्ञान का बल है सभी को  समाज से बुराई को दूर करने हेतु संगठित होकर कार्य करना चाहिए |
          भगवान राम ने रावण पर विजय से पूर्व इसी महाशक्ति की आराधना की थी | इसका तत्वार्थ है कि सर्व-शक्तिमान भी जब तक प्रकृति -शक्ति से नहीं जुड़ते ..विजयश्री उन्हें प्राप्त नहीं होती |

शत शत प्रणाम-जागरण जंक्शन से साभार




 जब कोकिला ने महसूस की कैद

 भारतीय समाज में आज महिला सशक्तिकरण की लहर चल रही है लेकिन यह लहर आज की नहीं बल्कि एक अर्से से भारतीय समाज का हिस्सा है. आजादी की लड़ाई में भी कई भारतीय महिलाओं ने अपना योगदान दिया और यह साबित किया कि वह भी इस समाज का एक सशक्त हिस्सा हैं. आजादी की लड़ाई में अहम योगदान देने वाली कुछ महिलाओं में खास थीं भारत कोकिला सरोजनी नायडू. 

भारतीय नारी ब्लॉग परिवार की ओर से उन्हें    शत शत प्रणाम


''हमारी भारतीय नारियों के कोकिल कंठ की गूँज से चहक रहा है हिंदुस्तान 
ये ही हैं हमारे देश की आन-बान -शान ,इनको शत शत प्रणाम !''
       
        शिखा कौशिक 'नूतन '

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

पितृभक्ति में श्रवण कुमार माधवी से छोटा होकर भी अधिक याद क्यों किया जाता है ?


माता पिता की सेवा का जब भी नाम आता है तो हमेशा श्रवण कुमार का नाम लिया जाता है।
क्या इसके पीछे भी पुरूषवादी मानसिकता ही कारण बनती है ?
क्या वैदिक इतिहास में किसी लड़की ने अपने माता पिता की सेवा नहीं की ?
अनगिनत लड़कियां ऐसी हुई हैं जिन्होंने अपने माता पिता की प्रतिष्ठा के लिए अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया।
एक लड़की का सब कुछ क्या होता है ?
उसकी इज़्ज़त, उसकी आबरू !
विवाह हो जाए तो पति के लिए उसके नाज़ुक जज़्बात और बच्चे हो जाएं तो अपने लाडलों की ममता !
माधवी ने अपने पिता ययाति की प्रतिष्ठा बचाने के लिए यह सब कुछ गंवा दिया लेकिन किसी से शिकायत तक न की। उसके त्याग और बलिदान के सामने श्रवण कुमार का शारीरिक श्रम कहीं नहीं ठहरता लेकिन फिर भी माधवी का नाम पितृभक्ति में कभी नहीं लिया जाता।
ऐसा क्यों ?



शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

दुविधा


मेरे कमरे में अब
धूप नहीं आती
खिड़कियाँ खुली रहती हैं
हल्की सी रौशनी है
मन्द मन्द सी हवा
गुजरती है वहाँ से
तोड़ती है खामोशी
या शुरू करती है
कोई सिलसिला
किसी बात के शुरू होने
से खतम होने तक का ।
कुछ पक्षी विचरते हैं
आवाज़ करते हैं
तोड़ देते हैं अचानक
गहरी निद्रा को
या आभासी तन्द्रा को ।
कभी बिखरती है
कोई खुशबू फूलों की
अच्छी सी लगती है
मन को सूकून सा देती है
पर फिर भी
नहीं निकलता
सूनापन वो अकेलापन
एक अंधकार
जो समाया है कहीं
किसी कोने में ।
©दीप्ति शर्मा


नारी खड़ी बाज़ार में -बेच रही है देह !


 अभी अभी  जब मैं चाय बनाने चली तो पहले उसके लिए मुझे चाय के डिब्बे में भरने को चाय का पैकिट खोलना पड़ा वह तो मैंने खोल लिया और जैसे ही मैं डिब्बे में चाय भरने लगी कि क्या देखती हूँ पैकिट के पीछे चाय पीने को प्रेरित करती एक मॉडल का फोटो जिसे  देखकर मन ने कहा क्या ज़रुरत थी इसके लिए ऐसे विज्ञापन की 
यही नहीं आज से कुछ दिन पहले समाचार पत्र की मैगजीन में भी एक ऐसा ही विज्ञापन था जिसके लिए उस अंगप्रदर्शन की कोई आवश्यकता नहीं थी जो उसके लिए किया गया था .
                                            
 ये तो मात्र ज़रा सी झलक है आज की महिला सशक्तिकरण और उसके आधुनिकता में ढलने की जिसे आज के कथित आधुनिक लोगों का समर्थन भी मिल रहा है और ये कहकर की सुविधा की दृष्टि से ये सब हो रहा है मात्र चप्पल बेचने को ,चाय बेचने को ही नहीं बाज़ार की बहुत सी अन्य चीज़ों को बेचने के लिए नारी देह का इस्तेमाल किया जा रहा है जैसे कि अगर नारी ने कपडे कम नहीं पहने  तो चाय तो बिकेगी ही नहीं या भारत में चाय बिकनी ही बंद हो जाएगी वैसे ही चप्पल जो कि पैरों में पहनी जाती है यदि वह कैटरिना कैफ ने न पहनी और पहनते वक़्त उनके सुन्दर अंगों का प्रदर्शन नहीं हुआ तो चप्पल की कंपनी बंद हो जाएगी और यही नहीं कि इसके लिए मात्र ये कम्पनियाँ ही जिम्मेदार हैं जिम्मेदार है आज की आधुनिकता के लिए पागल नारी भी जो अपने शरीर के वस्त्रों को उतारने में ही अपनी प्रगति मान बैठी है और यही कारण है कि सिल्क स्मिता जैसी मॉडल आत्महत्या की और बढती है क्योंकि वे देह आधारित जीवन जीती हैं और सभी जानते हैं कि इस शरीर की एक निश्चित अवधि ही होती है उस तरह का सुन्दर व् आकर्षक दिखने की जो बाज़ार में बिकता है और जिसके लिए इन मॉडल्स को पैसा मिलता है धीरे धीर जब उनकी देह का आकर्षण कम होता है तब उनकी देह के लिए पैसा लुटाने वाले और मॉडल्स को देखने लगते हैं और आरंभ होता है अवसाद का दौर जो उन्हें धकेलता है आत्महत्या की ओर इसके साथ ही वे लोग जो इस तरह की ड्रेसेस  को नारी के आधुनिक होने का पैमाना मानते हैं और ये कहते हैं कि आज तेज़ी का ज़माना है और दौड़  धूप के इस ज़माने में इस तरह की ड्रेसेस से ही भागीदार हुआ जा सकता है तो उनकी जानकारी के लिए बता दूं कि एक समय साडी  पर भी शाल ओढ़ा जाता था सुविधा के लिए वह शाल उतर गया साडी की जगह सलवार सूट भी सुविधा के नाम पर पहन जाने लगा अब उसमे भी दिक्कत आखिर ये सुविधा नारी के ही कपड़ों का हरण क्यों करती जा रही है पुरुषों के क्यों नहीं वे तो आज भी पेंट कमीज पहनते हैं सूट पहनते हैं न उन्हें सर्दी लगती है न गर्मी ,न उन्हें बस में चढ़ने में कोई परेशानी  न घर में रहने में ये सब नारी को ही क्यों होती हैं क्यों नारी अपने शरीर पर आधारित जीवन जीती है  क्यों वह एक वस्तु बनकर रहती है कि किसी विशेष समारोह में अगर उसे शामिल होना है तो उसके लम्बे बाल खुल जायेंगे तभी वह खूबसूरत लगेगी ,किसी विवाह समारोह में शामिल होगी तो चाहे हड्डी कंपाने वाली ठण्ड हो तब भी उसके शरीर पर कोई गरम कपडा नहीं होगा आखिर कब समझेगी नारी ?अपनी सही पहचान के लिए इस तरह शरीर का प्रदर्शन वह कब त्यागेगी ?क्यों नहीं समझती वह कि मानव शरीर भगवान ने हमें इस दुनिया में कुछ सकारात्मक कार्य करने  के लिए दिया है अगर इस तरह वस्त्रविहीन होने के लिए ही देना होता तो जानवर शरीर ही दे देता उनसे ज्यादा वस्त्रविहीन तो नहीं रह सकती न नारी . इसलिए नारी को अगर वास्तव में सशक्त होना है तो दिमाग के बल पर होना होगा शरीर के बल पर नहीं और शरीर के बल पर और दिमाग के बल पर आधारित नारी की प्रगति के स्थायित्व के अंतर  को वे बखूबी देख सकती है राखी सावंत आज कहाँ है और इंदिरा नुई आज कहाँ हैं .पूनम पांडे आज कहाँ हैं और सुनीता विलियम्स आज कहाँ हैं .इसलिए विचार करें नारी अपने व्यक्तित्व पर  न कि  शरीर की  बिक्री पर .
                            शालिनी कौशिक 
                                 [कौशल ]
   

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

श्याम स्मृति....मुक्ति का पथ-दीप नारी... सदा मुक्त....डा श्याम गुप्त..

                          स्त्री  स्वयं ही पथ है मुक्ति का, इस पथ पर चले बिना कौन मुक्त होता है | स्त्री  ही तो सदा मुक्ति हेतु पथ-दीप का कार्य करती है | पथ की भी कभी मुक्ति होती है ? संसार के हितार्थ कुछ तत्व कभी मुक्त नहीं होते मूलतः प्रकृति-तत्व, अन्यथा संसार कैसे चलेगा |’
                 नारी प्रकृति है, माया है | स्त्री द्विविधा भाव है | वही मोक्ष से रोकती भी है अर्थात संसारी भाव में जीव अर्थात पुरुष का जीना हराम भी करती है और और वही मोक्ष का द्वार भी है जीना आरामदायक भी करती है | काली के रूप में शिव को शव बनादेती है, सती के रूप में शिव को उन्मत्त करती  है तो पार्वती बन कर शिव को चन्द्रचूड बना देती है और तुलसी को तुलसीदास | नारी को गौ रूप कहा जाता है अर्थात वह प्रकृति में पृथ्वी है, गाय है, इन्द्रिय है, संसार हेतु अविद्या है तो तत्व रूप में विद्या, ज्ञान व बुद्धि |
                बंधन में तो पुरुष अर्थात जीव रूप में ब्रह्म या पुरुष रहता है| उसी को मुक्त होना होता है | नारी, प्रकृति, माया तो बद्ध-पुरुष को मुक्ति के पथ पर लेजाती है| तभी तो ईशोपनिषद में मोक्ष मन्त्र कहा गया है.......            
                        ” विद्या चाविद्या यस्तत  वेदोभय स:
                       अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृमनुश्ते ||” 


                   वास्तव में तत्व व्याख्या में नारी जीव नहीं है | वह तो शक्ति का रूपांतरण है | अतः नारी तो सदा मुक्त है | वह बंधन में होती ही कब है | वह तो स्वयं बंधन है | जीव, पुरुष रूपी ब्रह्म को बांधने वाली | पुरुष ही बंधन में होता है | ब्रह्म, पुरुष रूप में, जीव रूप में आकर स्वयं ही माया-बंधन में बंधता है ताकि संसार का क्रम चलता रहे | नारी तो स्वयं ही माया है, प्रकृति है | पुरुष –ब्रह्म को बाँध कर नचाने वाली| यद्यपि माया स्वयं ब्रह्म की इच्छा पर ही कार्य करती है स्वतंत्र रूप से नहीं क्योंकि वह उसी का अंश है.......   
                      “ ब्रह्म की इच्छा माया नाचे जीवन जगत सजाये |
                       जीव रूप जब बने ब्रह्म फिर माया उसे नचाये



एक कशिश रह गई बाकी ....


एक कशिश रह गई
हर दिल में  बाकी
हर दिल में था एक तूफां
हर दिल में थी एक आस
कि एक दिन वो उठ खड़ी होगी
और लेगी बदला अपने गुनहगारों से
पर नहीं हुआ कुछ भी ऐसा
बुझ गई वो लौ
अब कौन लेगा बदला
और कौन करेगा इन्साफ
बस छोड़ गई हर दिल में
एक सवाल
बेटी को ज़न्म दें या सिर्फ बेटों को??

शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

कहानी की कहानी ---- डा श्याम गुप्त ..




                               पहले वेद-उपनिषद् आदि में  घटनाओं का सत्य वर्णन किया जाता था, पौराणिक काल में सत्य को सोदाहरण कथारूप में लिखा जाने लगा, ताकि सामान्य जन समझ सके व उचित राह पर चल सके |  आगे चलकर कथाओं-गाथाओं का जन्म  हुआ जो सत्य-व वास्तविक घटनाओं, पात्रों, चरित्रों के आधार पर कहानियां थीं--'एक राजा था', 'एक समय..', 'एक राजकुमार ...' , 'एक दिवस....' , 'काम्पिल्य नगरी में एक धनी सेठ...' , 'एक सुंदर राज कुमारी '.आदि-आदि, जो समाज व व्यक्ति का दिशा निर्देश करती थीं |  बाद में कल्पित चरित्र ,घटनाओं आदि को आधार बनाकर कल्पित कथाएँ व गल्प, फंतासी आदि लिखी जाने लगीं जिनमें सत्य से आगे बढ़ा चढ़ा कर लिखा जाने लगा परन्तु वह किसी न किसी समाज, देश,काल की स्थिति-वर्णन होती थीं और बुराई पर अच्छाई की विजय |
                         परन्तु आज क्या लिखा-दिखाया जारहा है, पूर्ण असत्य  कथा-कहानी,  'इस सीरियल -कहानी के पात्र, घटनाएँ, किसी भी देश-काल, समाज, जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करते'  अर्थात पूरी तरह से झूठी कहानी;जब ये सब कहीं हो ही नहीं रहा है हुआ ही नहीं, कहीं मानव-मात्र से संवंधित ही नहीं, तो कहानी किस बात की |                                 
                       क्या-क्या  मूर्खताओं के साए में पल रहे हैं आज-कल हम, हमारा साहित्य, साहित्यकार व समाज ..... कैसे सत्य को पहचाने  हमारी भावी पीढी  |

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

दहेज़ :इकलौती पुत्री की आग की सेज

दहेज़ :इकलौती पुत्री की आग की सेज


  
 एक ऐसा जीवन जिसमे निरंतर कंटीले पथ पर चलना और वो भी नंगे पैर सोचिये कितना कठिन होगा पर बेटी ऐसे ही जीवन के साथ इस धरती पर आती है .बहुत कम ही माँ-बाप के मुख ऐसे होते होंगे जो ''बेटी पैदा हुई है ,या लक्ष्मी घर आई है ''सुनकर खिल उठते हों .
                 'पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी ,
                उम्मीदों का बवंडर उसी पल में थम गया .''

बचपन से लेकर बड़े हों तक बेटी को अपना घर शायद ही कभी अपना लगता हो क्योंकि बात बात में उसे ''पराया धन ''व् ''दूसरे  घर जाएगी तो क्या ऐसे लच्छन [लक्षण ]लेकर जाएगी ''जैसी उक्तियों से संबोधित कर उसके उत्साह को ठंडा कर दिया जाता है .ऐसा नहीं है कि उसे माँ-बाप के घर में खुशियाँ नहीं मिलती ,मिलती हैं ,बहुत मिलती हैं किन्तु ''पराया धन '' या ''माँ-बाप पर बौझ '' ऐसे कटाक्ष हैं जो उसके कोमल मन को तार तार कर देते  हैं .ऐसे में जिंदगी गुज़ारते गुज़ारते जब एक बेटी और विशेष रूप से इकलौती बेटी का ससुराल में पदार्पण होता है तब उसके जीवन में और अधिकांशतया  इकलौती पुत्री के जीवन में उस दौर की शुरुआत होती है जिसे हम अग्नि-परीक्षा कह सकते हैं .
               एक तो पहले ही बेटे के परिवार वाले बेटे पर जन्म से लेकर उसके विवाह तक पर किया गया खर्च बेटी वाले से वसूलना चाहते हैं उस पर यदि बेटी इकलौती हो तब तो उनकी यही सोच हो जाती है कि वे अपना पेट तक काटकर उन्हें दे दें .इकलौती बेटी को बहू बनाने  वाले एक परिवार के  सामने जब बेटी के पिता के पास किसी ज़मीन के ६ लाख रूपए आये तो उनके लालची मन को पहले तो ये हुआ कि ये  अपनी बेटी को स्वयं देगा और जब उन्होंने कुछ समय देखा कि बेटी को उसमे से कुछ नहीं दिया तो कुछ समय में ही उन्होंने अपनी बहू को परेशान करना शुरू कर दिया.हद तो यह कि बहू के लिए अपने बेटे से कहा ''कि इसे एक बच्चा गोद में व् एक पेट में डालकर इसके बाप के घर भेज दे .''उनके मन कि यदि कहूं तो यही थी कि बेटी का होना इतना बड़ा अपराध था जो उसके मायके वालों ने किया था कि अब बेटी की शादी के बाद वे पिता ,माँ व् भाई बस बेटी के ससुराल की ख़ुशी ही देख सकते थे और वह भी अपना सर्वस्व अर्पण करके.
     एक मामले में सात सात भाइयों की अकेली बहन को दहेज़ की मांग के कारण बेटे के पास न भेजकर सास ने  अपनी ही सेवा में रखा जबकि सास कि ऐसी कोई स्थिति  नहीं थी कि उसे सेवा करवाने की आवश्यकता हो.ऐसा नहीं कि इकलौती बेटी के साथ अन्याय केवल इसी हद तक सीमित रहता हो बेटे वालों की भूख बार बार शांत करने के बावजूद बेटी के विवाह में १२ लाख रूपए जेवर और विवाह के बाद बेटी की ख़ुशी के लिए फ्लैट देने के बावजूद इकलौती बेटी को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझा जाता है और उच्च शिक्षित होते हुए भी उसके माँ-बाप ससुराल वालों के आगे लाचार से फिरते हैं और उन्हें बेटी के साथ दरिंदगी का पूरा अवसर देते हैं और ये दरिंदगी इतनी हद तक भी बढ़ जाती है कि या तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है या वह स्वयं ही मौत को गले लगा लेती है क्योंकि एक गुनाह तो उसके माँ-बाप का है कि उन्होंने बेटी पैदा कि और दूसरा गुनाह जो कि सबसे बड़ा है कि वह ही वह बेटी है.
                 इस तरह माँ-बाप के घर नाजुक कली से फूल बनकर पली-बढ़ी इकलौती बेटी जिसे इकलौती होने के कारण अतुलनीय स्नेह प्राप्त होता है ससुराल में आकर घोर यातना को सहना पड़ता है .हमारा दहेज़ कानून दहेज़ के लेन-देन को अपराध घोषित करता है किन्तु न तो वह दहेज़ का लेना रोक सकता है न ही देना क्योंकि हमारी सामाजिक परम्पराएँ हमारे कानूनों पर आज भी हावी हैं .स्वयं की बेटी को दहेज़ की बलिवेदी पर चढाने वाले माँ-बाप भी अपने बेटे के विवाह में दहेज़ के लिए झोले लटकाए घूमते हैं .जिस तरह दहेज़ के भूखे भेड़िये निंदा के पात्र हैं उसी तरह सामाजिक बहिष्कार के भागी हैं दहेज़ के दानी जो इनके मुहं पर दहेज़ का खून लगाते हैं और अपनी बेटी के लिए आग की सेज सजाते हैं .
                शालिनी कौशिक
                    [कौशल]

                   
     

श्याम स्मृति -----प्यार , स्त्री -पुरुष एवं स्त्री की तपस्या ..डा श्याम गुप्त ...

                            कुछ पुरुष बच्चे ही होते हैं, मन से ..पर मानने को तैयार नहीं होते | वे विशेष रूप से अटेंशन चाहते हैं हर दम अतः कुछ न कुछ ऊटपटांग व तंग करने वाली हरकतें करते रहते हैं पत्नी व स्त्री भावना के विरुद्ध जो झगड़ों में भी परिवर्तित होजाती हैं  || कई बार संतान के आने पर भी ऐसा होता है | ’प्यार से आदमी को काबू में करना ही औरत की तपस्या है, साधना है, त्याग है | जो पुरुष की तपस्या भंग भी कर सकती है मेनका-विश्वामित्र की भांति, वैराग्य भी भंग कर सकती है शिव-पार्वती की भांति और उसे तपस्या-वैराग्य में रत भी कर सकती है तुलसी—रत्ना की भांति |  काश सभी पुरुष..... नारी की इस भाषा को समझ पाते | इस भावना व क्षमता की कदर कर पाते |

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

भूल न जाना रे ..रे मनुवा मेरे . .. डा श्याम गुप्त

रे मनुवा मेरे . ss  ss ..रे मनुवा मेरे..ss  ss ....रे मनुवा मेरे ...s  s    s     s.......|
भूल न जाना रे ....ss ........भूल न जाना रे ...ss ....|

माया बिनु कब कौन चला है रे s s s s s..
माया बिनु कब जग चलता है रे   ss  ss  |
पर हरि  साथ नहीं होंगे तो,
माया नाच नचाये रे ....ss   ss   | ...रे मनुवा मेरे .....||

बिनु हरि  माया काम न आये,
शक्ति-अहं में तू भरमाये |
धन-सत्ता और सुरा-सुन्दरी ,
में रम जाए रे .....
तू रम जाये रे ......|      ...        ..... रे मनुवा मेरे ....||

माया प्रकृति शक्ति ही यथा-
नारी रूप सजाया |
अंतरमन से जान जो चाहे ,
जीवन की सुख छाया |

उस प्रभु का कर धन्यवाद ,
यह सुन्दर सृष्टि रचाई |
बाह्य रूप छूने-पाने की -
इच्छा, पाप कमाई |

साक्षी-भाव रहे जो मन, नहिं -
बाह्य रूप  ललचाये |
दृष्टा-भाव उसे पूजे, मन-
नहीं वासना आये |

पाप-कर्म नहिं  भाये ,
अनुचित कर्म न भाये |

भूल न जाना रे ....ss ...ss...भूल न जाना रे ...
रे मनुवा मेरे...ss . रे मनुवा  ssss,,,मेरे .......रे मनुवा..ss .. मेरे ...sssss..||

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

मेरी माँ ...

कुछ प्यारी सी
कुछ भोली सी है
मेरी माँ ...
कभी लड़ती है
कभी डाटती है
और कभी बिना बात के
प्यार भी जताती है
मेरी माँ ...
काम करते नहीं थकती
कुछ भी  मांगो
झट मिल जाता है
ऐसी है मेरी माँ ...
लाड़ली हूँ मैं उसकी
कहती है मुझे वो
अपने कलेजे का टुकड़ा
लाख दर्द भरे हों
उसके दिल में
पर कभी न जताती
मेरी माँ ...
कभी सखियों की तरह
करती है बातें
कभी शिक्षकों की तरह
लगती है डाटने
बस कुछ ऐसी ही है
मेरी माँ ...
कुछ प्यारी सी
कुछ भोली सी है
मेरी माँ ...

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

बेटी न जन्म ले


 

पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी ,
खुशियों का बवंडर पल भर में थम गया .


चाहत थी बेटा आकर इस वंश को बढ़ाये ,
रखवाई का ही काम उल्टा सिर पे पड़ गया .

बेटा जने जो माता ये है पिता का पौरुष ,
बेटी जनम का पत्थर माँ के सिर पे बंध गया .


गर्मी चढ़ी थी आकर घर में सभी सिरों पर ,
बेडा गर्क ही जैसे उनके कुल का हो गया .

गर्दिश के दिन थे आये ऐसे उमड़-घुमड़ कर ,
बेटी का गर्द माँ को गर्दाबाद कर गया .

बेठी है मायके में ले बेटी को है रोटी ,
झेला जो माँ ने मुझको भी वो सहना पड़ गया .


न मायका है अपना ससुराल भी न अपनी ,
बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया .

न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की ,
बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .

सदियाँ गुजर गयी हैं ज़माना बदल गया ,
बेटी का सुख रुढियों की बलि चढ़ गया .


 सच्चाई ये जहाँ की देखे है ''शालिनी ''
बेटी न जन्म ले यहाँ कहना ही पड़ गया .
      शालिनी कौशिक
           [कौशल]

शब्दार्थ-गर्दाबाद-उजाड़ ,विनाश