डिंपल मिश्र ने बदल दिया भदोही मीडिया और फेसबुक का इतिहास
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the great iron lady in india dimple mishra |
वाराणसी के एक छोटे से गाँव में पैदा हुयी एक मासूम सी बच्ची बारह वर्ष की उम्र में मुंबई गयी, वह मुंबई के सायन उपनगर में अपने पिता माँ और दो भाइयो के साथ रहती थी, १९९२ में जब बाबरी ढांचा ढहाया गया तो मुंबई में दंगा भड़क उठा, एक मासूम बालिका को लोंगो ने हाथ में तलवार लेकर घेर लिया, उसकी आँखों के सामने कई लोंगो को मार दिया गया, उसका घर जला दिया गया, हालाँकि लोंगो ने उसे बच्ची जानकर छोड़ दिया, उसका परिवार भाग कर एक नयी बन रही बिल्डिंग में शरण ली, उस लड़की को परिवार वाले प्यार से सोनिया बुलाते थे, जिसका नाम है डिंपल मिश्र,
पिता ने ठाणे जिला के उल्हासनगर में घर बनाया, बड़ी हुयी तो कपडा मिल काम करने वाले उसके पिता बलवंत मिश्र रिटायर हो गए, एक विकलांग भाई गाँव में रहने लगा और दूसरा भाई पिता और बहन का साथ छोड़कर अलग घर बसा लिया, १९९८ में माँ भी बेसहारा छोड़कर चली गयी,
अपने पिता और अपना पेट पालने के लिए वह रिलायंस में काम करने लगी, उसका काम था बकाया बिलों की वसूली करना, एक दिन वह भूल से अपने निजी मोबाइल द्वारा एक बकायेदार ठाणे निवासी विपिन मिश्र को फ़ोन कर दिया, विपिन मूलतः भदोही जनपद के गोपीगंज थाना क्षेत्र के मूलापुर गाँव का रहने वाला है,
उसका no मिलने के बाद विपिन बार बार फ़ोन करने लगा, वह उसकी कंपनी के गेट पर खड़ा होकर इंतजार करता, पीछा करके उसके घर तक आता, विपिन ने डिंपल के पिता को भी भरोशे में लिया, डिंपल के पिता शादी के लिए परेशान थे, विपिन ने कहा की वह भी अकेला है, उसके पिता से उसकी नहीं बनती, दोनों शादी करके खुश रहेंगे, विपिन द्वारा बार बार दबाव दिए जाने से डिंपल के पिता ने एक दुर्गा मंदिर में दर्जनों लोंगो के सामने हिन्दू रीती रिवाज़ के साथ डिंपल और विपिन की शादी कर दी, दोनों पति पत्नी विपिन के घर पर रहने लगे,
जब इसकी भनक विपिन के पिता नागेन्द्र नाथ मिश्र को मिली तो वे मुंबई पहुंचे और डिंपल को घर से मारपीट कर भगा दिए, उस दौरान विपिन ने साथ दिया और दोनों आकर डिंपल के पिता के घर आकर रहने लगे, कुछ दिन तक दोनों प्रेम से साथ रहने लगे, विपिन अपने घर भी आने जाने लगा, इसी दौरा डिंपल के पेट में विपिन का बच्चा पलने लगा, विपिन का मोह भी डिंपल से भंग होना शुरू हो गया,
डिंपल के पिता अपनी बेटी के लिए विपिन के पिता से भी गिडगिडाने लगे तब विपिन के पिता ने दस लाख रूपये दहेज़ की मांग रखी और कहा की बिना दहेज़ लिए स्वीकार नहीं करेंगे,
८ अप्रैल २०११ को सदमे के चलते डिंपल के पिता का निधन हो गया, २ मई को जब अस्पताल में डिंपल ने मासूम अंचल को जन्म दे रही तो उसे अस्पताल में भरती कराकर विपिन दादा के बीमारी का बहाना बनाया और ५ मई को इलाहबाद जनपद के हंडिया तहसील निवासी राकेश कुमार पाण्डेय की बेटी क्षमा पाण्डेय से भरी दहेज़ लेकर विवाह कर लिया, इसकी जानकारी काफी दिन बाद डिंपल को हुयी, वह विपिन से रोने गिडगिडाने लगी, पर उसका असर विपिन पर नहीं पड़ा, वे लोग डिंपल की दूसरी शादी करना चाहते थे, पर वह तैयार नहीं थी,
पति की बेवफाई का शिकार बनी डिंपल ने सोशल मीडिया का सहारा लिया, फेसबुक के जरिये वह भदोही के लोंगो को दोस्त बनाना शुरू किया, अपना दुखड़ा वह सबको सुनाने लगी,
उधर ११ सितम्बर को उलहास्नगर के थाने में मुकादम दर्ज कराया पर एक गरीब की सुनवाई पुलिस नहीं की, उल्टा उसे ही परेशान किया जाता रहा, पुलिस स्टेसन में बुलाकर उसे अपमानित किया जाता और विपिन को कुर्सी पर बैठकर पुलिस चाय पिलाती, उसकी गरीबी का मजाक बनाया जाता, अपनी मासूम बेटी को लेकर वह दर दर की ठोकरे खाती रही,
सब जगह से निराश होकर उसने भदोही में रहने वाले अपने फेसबुक के दोस्तों से कहा की यदि मैं आपकी बेटी या बहन होती तो भी आप ऐसा ही करते, मेरी कोई नहीं सुनेगा तो मैं अपनी बेटी के साथ आत्महत्या कर लूंगी,
भदोही के लोंगो का इमान उसने जगाया और लोग उसकी मदद में खड़े हुए, उसे भरोषा दिलाया,
फेसबुक के जरिये अपनी जंग की शुरुआत करने वाली एक अबला रणचंडी बन गयी, जन हथेली पर लेकर अपने बेटी के साथ वह आ पहुंची भदोही,
३० नवम्बर को वह बारात लेकर मूलापुर गाँव पहुँचने का एलान कर दिया, मोहल्ले के लोंगो से क़र्ज़ लेकर वह हवाई जहाज़ के आई थी और सीधे पति के घर पहुंची. मुंबई से चलकर अकेली आने वाली औरत को हजारो लोंगो का साथ मिला, बैंड बाजे के साथ वह धमक पड़ी पति की चौखट पर, उसकी हिम्मत थी की वह रणचंडी बन चुकी थी क्योंकि वह अपने बेटी को नाजायज़ नहीं कहलाना चाहती थी, एक फूल अंगारा बन चूका था,
ससुराल वाले घर छोड़कर भाग चुके थे, उसकी जिन्दगी बर्बाद करने में मुख्य भूमिका निभाने वाले विपिन के चाचा नागेन्द्रनाथ ने विपिन और उसके पिता को ही अपना दुश्मन बता दिया, कल तक उसके साथ कोई नहीं था, पर वह वाराणसी पहुंची तो दो दर्ज़न से अधिक मीडिया वालो ने उसे घेर लिया, समाजसेवी संगठनो और फेसबुक साथियों ने उसका इस्तकबाल किया,
भदोही के इतिहास में आजतक किसी ने भी मीडिया में उतनी जगह नहीं पाई थी जितनी जगह उसे मिली, फ्रंट पेज से लेकर स्थानीय पेज का पूरा पन्ना उसके नाम से रंगा जाने लगा. मुंबई से अकेली चली एक निरीह महिला सेलिब्रेटी बन चुकी थी, मुहर्रम पर हुए बवाल की खबरे गायब हो गयी और हर जगह डिंपल डिंपल और सिर्फ डिंपल.
जगह जगह उसके स्वागत होने लगे, वह जहा भी जाती लोग गाजे बाजे से उसका स्वागत करते, उसे माला पहनाया जाता और फूल बरसाए जाते, जो पुलिस महाराष्ट में उसका अपमान करती वही पुलिस यहाँ सुरक्षा में तैनात है, जान से मारने की धमकिया मिलती रही और उसके इरादे मजबूत होते रहे, उसने ठान लिया है वह अपना हक़ लेकर रहेगी, अपनी बेटी को उसका हक़ दिलाकर रहेगी,
जिस फेसबुक को बन्द करने की मांग संसद में उठी उसी फेसबुक को उसने अपने हक़ की लड़ाई का जरिया बना दिया, शायद ही फेसबुक के इतिहास में ऐसी कोई घटना हुयी होगी जिसने फेसबुक के मायने बदल दिए, भदोही की मीडिया को उसने सकारात्मक सोच में परिवर्तित किया, ग्राम प्रधानो की महापंचायत ने उसके पक्ष में फैसला सुनकर अपनी जिम्मेदारियों का एहसास किया, जनपद की सभी ४८१ ग्राम पंचायतो ने उसका समर्थन किया, जनपद की सबसे बड़ी पंचायत जिला पंचायत अध्यक्षा श्यामला सरोज ने भी समर्थन दिया, डिस्टिक बार असोसिएसन ने समर्थन दिया, सामाजिक संगठनो ने समर्थन दिया, हालाँकि राजनितिक दल चुप्पी साधे पड़े है.
डिंपल ने यह दिखा दिया की नारी कभी अबला नहीं होती, वह दुर्गा भी है और झाँसी की रानी भी, बस वह अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ जंग छेड़ दे.
सामाजिक जंग जीत चुकी डिंपल अब कानूनी लड़ाई लड़ेगी और अपना हक़ लेकर रहेगी, उसने महिलाओ के आत्मसम्मान को जगाया है.
धन्य हो तुम क्योंकि तुम भारत की नारी हो, डिंपल मिश्र तुम्हे बार बार सलाम, तुम देश के उन लाखो नारियो की प्रेरणा स्रोत हो जो अन्याय और उत्पीडन का शिकार होकर घर में घुटने को मजबूर है. भदोही की मीडिया और जनता तुम्हारा नमन करती है.
{ डिंपल मिश्र से हुयी बातचीत और जनचर्चाओ तथा मीडिया में आई खबरों पर प्रकाशित}