मैं क्यों अग्नि-परीक्षा देती रहूँ ?
नवभारत टाइम्स की वेबसाईट पर ये खबर पढ़ी -
''इस सप्ताह प्रीति जिंटा की बारी है अपने सबसे बड़े हेटर (नफरत करने वाले) चिराग महाबल से टकराने की। चिराग महाबल ने जिंटा की यह कहते हुए आलोचना की कि वह आईपीएल में इसलिए शामिल हुईं क्योंकि उनका फिल्मी करियर ठीक नहीं चल रहा था। महाबल के मुताबिक बॉलिवुड हस्तियों के शामिल होने की वजह से शो बिज आईपीएल से हट गया।
अपने बचाव में प्रीति जिंटा ने कहा, ' मैंने क्रिकेट की दीवानगी सीखी यहां। पहले मैं क्रिकेट के बारे में कुछ नहीं जानती थी। आईपीएल क्रिकेट सबसे बड़ी मंदी से ठीक पहले लॉन्च हुआ। यह मेरा खून-पसीने से कमाया हुआ पैसा था जो मैंने आईपीएल में डाला। मैंने कोई घपला नहीं किया, मैं किसी के साथ नहीं सोई। '
अपने बचाव में प्रीति जिंटा ने कहा, ' मैंने क्रिकेट की दीवानगी सीखी यहां। पहले मैं क्रिकेट के बारे में कुछ नहीं जानती थी। आईपीएल क्रिकेट सबसे बड़ी मंदी से ठीक पहले लॉन्च हुआ। यह मेरा खून-पसीने से कमाया हुआ पैसा था जो मैंने आईपीएल में डाला। मैंने कोई घपला नहीं किया, मैं किसी के साथ नहीं सोई। '
''इस खबर की यह पंक्ति वास्तव में स्त्री होने का खामियाजा भुगतना ही प्रतीत होती है कि -''मैं किसी के साथ नहीं सोयी ''
त्रेता युग से हर स्त्री अपनी शुद्धता का प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए ऐसी ही अग्नि परीक्षाओं से गुजर रही है पर पुरुष प्रधान समाज के पास तो स्त्री को अपमानित करने का बस यही ब्रह्मास्त्र है कि -''देखो यह स्त्री दुश्चरित्र है ....कलंकनी है .....मर्यादाहीन है .''
ऐसे में स्त्री को भी अब पुरुष समाज को चुनौती देते हुए कहना चाहिए कि -आप प्रमाणित कीजिये मैं किसके साथ सोयी ?मैं क्यों अग्नि-परीक्षा देती रहूँ ?
शिखा कौशिक
3 टिप्पणियां:
----और प्रमाणित करने के चक्कर में छीछालेदर किसकी होगी....यह भी युग-प्रश्न है...
---और इसका कोई प्रमाण भी होता है क्या ?
ऐसा नही लगता की प्रीति जिंटा जी कुछ ज्यादा ही बोल गई , ''मैंने कोई घपला नहीं किया, मैं किसी के साथ नहीं सोई''। समय के साथ समाज में काफी परिवर्तन आ रहे हैं ,पुरुष प्रधान समाज में नारी ने वह मुकाम अपनी योग्यता के बल से हासिल किया है ,जिसका लोहा सभी मानते हैं.
v7: स्वप्न से अनुराग कैसा........
---इसका अर्थ है कि प्रीति ज़िन्टा जानती है कि समाज में यह सब चल रहा है....खासकर सभी शो-बिजिनेसों में ....
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