हम सब की माएं
ये ऐसा बंधन है कभी टूट नहीं सकता ,
ये ऐसी दौलत है कोई लूट नहीं सकता ,
जीवन भर देती हम सबको दुआएं
हम सब की माएं ;हम सबकी माएं.
वो अपना निवाला बच्चे को दे देती ,
बदले में बच्चे से भला माँ है क्या लेती ?
अपने पर ले लेती वो सारी बलाएँ ,
हम सबकी माएं,हम सब की माएं
जो भटके कभी हम वो राह दिखाती,
जीने का सलीका माँ ही तो सिखाती
ममता के मोती बच्चों पे लुटाएं ,
हम सबकी माएं.हम सबकी माएं .
जो गोद में लेकर रोते को हँसाती;
जो ऊँगली पकड़कर चलना है सिखाती ,
जो खुद जगती रहकर बच्चे को सुलाएं
हम सब की माएं ,हम सबकी माएं .
शिखा कौशिक
5 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी पोस्ट ||
बधाई ||
बहुत सुन्दर ..!
सुंदर,लाजबाब पोस्ट,..
शिखा जी ,नमस्कार आपकी रचना आपकी आवाज में सुनकर अच्छा लगा | दरअसल माँ का स्थान है ही ऐसा जितना लिखा जाये या कहा जाये तब भी ऐसा महसूस होता है जैसे बहुत कुछ छूट गया है |
शिखा जी अभिवादन,
माँ की सुन्दर अभिव्यक्ति। आपने माँ और मेरा
बचपन याद दिया। बधाई एवं धन्यवाद।
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