इनसे कुछ नहीं होगा
-----आदिशक्ति...नारी
सृष्टि का आधार है, परन्तु ‘एकोहं बहुस्यामि’ के सृष्टि-विचार का आधार तो
ब्रह्म...पुरुष ही है |
---मनुस्मृति-पुरुष ही
लिखता है, किसी भी नारी ने कोई महान कालजयी ग्रन्थ की रचना की है?..नहीं|
इसमें पुरुष-प्रधान समाज का घिसा-पिटा गाना गाया जासकता है परन्तु उस समाज में तो
नारी-पुरुष का समान अधिकार था | तभी तो लोपामुद्रा, घोषा, अपाला, यमी, भारती आदि
ऋषिकाओं की उपस्थिति है |
----जब जब भी पुरुष निर्बल,
असहाय होजाता है तब-तब नारी दुर्गा रूप लेकर युद्धरत होती है ..यह अवधारणा
केवल भारत में ही है, अन्य कहीं है भी तो यहीं से गयी हुईं, फ़ैली हुई संस्कृतियों
में व उनकी स्मृतियों/ कथाओं में हैं| परन्तु दुर्गा को बल ब्रह्मा, विष्णु,
शिव व अन्य देवता, अर्थात पुरुष ही, अपनी शक्तियों के रूप में देते हैं तब दुर्गा में शक्ति का अवतरण होता है | उस
प्रचंड शक्ति के काली रूपमें
उद्दाम, असंयमित वेग को पुरुष (महादेव) ही रोकता है, नियमित करता है
|
-----पुरुष-श्री कृष्ण के
गुणों पर नारियां रीझती हैं, विष्णु को पति रूप में पाने हेतु, शिव के लिए भी तप
करती हैं ..परन्तु कोइ एसा केंद्रीय नारी चरित्र नहीं है जिसके गुणों पर संसार भर
के पुरुष रीझ जाएँ | हाँ शारीरिक रूप सौन्दर्य के दीवानों की गाथाएँ अवश्य मिलतीं
हैं |
अतः
निश्चय ही सृष्टि की जनक नारी है परन्तु पुरुष की नियमन व्यवस्था के अनुसार
| अतः आज के परिप्रेक्ष्य में ---
-----वे पुरुष के आचरण
सुधार की बातें करती रहेंगी एवं स्वयं सलमान खान व शाहरुख के पीछे भागती रहेंगीं|
-----वे हीरोइनों के
वस्त्राभूषणों की नक़ल करेंगीं, स्वतंत्र रूप से रात-विरात अकेली स्वच्छंदता का भी
अनुसरण करेंगीं (जबकि हीरोइनें तो बोडीगार्ड के साथ रहती हैं)| हीरोइनों के पीछे भागने की वजाय सलमान, शाहरुख
के पीछे भागेंगी | ( कुछ विद्वान नारियां हर काल की तरह अपवाद भी होती हैं )
------वे कहेंगीं कि समाज
अपनी सोच बदले | समाज में तो स्त्री-पुरुष दोनों ही होते हैं अकेले पुरुष से कब
समाज बनाता है अतः दोनों को ही सोच बदलनी चाहिए |
-----वे पुरुष को साधू-संत
बनाने को कहेंगीं परन्तु स्वयं डायरेक्टर की इच्छा/आज्ञा पर /पैसे के लिए वस्त्र
उतारती रहेंगीं |
------ वे देह –दर्शना
वस्त्र पहनती रहेंगीं, उनका तर्क है की छोटी-छोटी बालिकाओं से, गाँव में
पूरे वस्त्र पहने महिलाओं से भी वलात्कार होता है अतः वस्त्र कम पहनने से कुछ नहीं
होता अपितु पुरुष व समाज को अपनी मानसिकता बदलनी होगी| वे भूल जाती हैं कि- कम
वस्त्रों, अश्लील चित्रों, सिनेमा, विज्ञापन आदि से जाग्रत उद्दाम वासना से जो भी
व्यक्ति की पहुँच में होगा वही प्रभावित होगा | आप तो बाडीगार्ड, परिवार आदि की
सुरक्षा में हैं, कौन हाथ डालने की हिंम्मत करेगा| चोर किसी प्रधानमन्त्री या
पुलिस वाले के घर चोरी करने थोड़े ही जायेगा, जहां सुरक्षा कम है वहीं दांव लगाएगा
|
------- इनसे कुछ नहीं होगा |
अतः हे पुरुषो ! ब्रह्म रूप बनो,
अपनी ज्ञान, विवेक व सदाचरण रूपी दैविक शक्तियां जाग्रत करो...उदाहरण बनो और अपनी
जाग्रत शक्तियों को प्रदान करो नारी को ताकि वह पुनः दुर्गा का दुष्ट दलन रूप बनकर
समाज में पूज्य बने | और आप सच में ही---“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र
देवता” के महामंत्र के गान के योग्य बनें |
3 टिप्पणियां:
bahut hi samyik aalekh .aabhar
bahut hi samyik aalekh .aabhar
धन्यवाद शिखा जी ......
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