हाय बड़ा कोहराम मचा है दुनिया भर की गलियों में ,
कफ़न बांध सिर निकली औरत दुनिया भर की गलियों में !
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घूंघट को दो फाड़ किया चूल्हे में उसे जला डाला ,
मर्दों को दी खुली चुनौती ना कोई गड़बड़झाला ,
फौलादी दिल किया सभी ने हुआ आज ये सदियों में !
कफ़न बांध सिर निकली औरत दुनिया भर की गलियों में !
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नहीं कुचलने देंगी कलियाँ नहीं उजड़ने देंगी कोख ,
जग में आने से कन्या को मर्द नहीं सकता अब रोक ,
नहीं बधेंगी औरत हरगिज़ मर्दों की हथकड़ियों में !
कफ़न बांध सिर निकली औरत दुनिया भर की गलियों में !
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कमर से नीचे कमर से ऊपर देह हमारी यूँ ना बाँट ,
आओ हाथ लगाकर देखो हाथ तुम्हारे देंगी काट ,
प्रलय -लहर का मचा है तांडव भोली-भाली नदियों में !
कफ़न बांध सिर निकली औरत दुनिया भर की गलियों में !
शिखा कौशिक 'नूतन'
2 टिप्पणियां:
shandar-sshakt prastuti .aabhar
बहुत बहुत शानदार और ओजपूर्ण प्रस्तुति जितनी तारीफ की जाये कम ही है शिखा जी
नारी विषय पर ही कुछ कविताओं का सृजन मुझसे भी हो गया है। सम्भव हो तो पढ़कर
मार्गदर्शन कीजियेगा
lekhaniblogdj.blogspot.com नारी का नारी को नारी के लिए.
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