बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

जिम्मेदारी -लघु कथा

''दीदी शाम हो चुकी है ..आप रहने दो ..मैं ही बदल कर ले आउंगा माँ की साड़ी की फॉल.. ...माँ भी ना देखकर नहीं ला सकती हैं पहली बार में ..!'' वासु ने सड़क पर साइकिल थामे दो वर्ष बड़ी अपनी पंद्रह वर्षीय बहन गिन्नी से ये कहा तो उसने तुरंत साइकिल वासु को थमाते हुए कहा -'' अब तू सच में बड़ा हो गया है वरना कितनी भी शाम हो रही हो तुझे बस खेलने की चिंता रहती और साइकिल मुझे पकड़ाकर भाग जाता ...मैं कितना कहती ''भाई मेरे साथ चल'' पर तुझे तो बस खेलने की पड़ी रहती ..'' गिन्नी के उलाहने पर वासु मुस्कुरा दिया और घर की चौखट पर खड़ी माँ ने मन में सोचा -''चलो वासु को एक बड़ी बहन का भाई होने की जिम्मेदारी का अहसास तो हुआ .''
शिखा कौशिक 'नूतन'

3 टिप्‍पणियां:

डा श्याम गुप्त ने कहा…

अच्छी लघु कथा.....

Rachana ने कहा…

sahi likha hai
rachana

Unknown ने कहा…

अहसास नहीं ड़र