कवयित्री पत्नी -लघु-कथा
सारिका के पतिदेव चतुर बनते हुए बोले -'' तुम एक कवयित्री हो , मुझसे ज्यादा प्रेम काव्य से है तुम्हें, काव्य ही तुम्हारा श्रृंगार है फिर क्यूँ न मैं तुम्हें विवाह की वर्षगांठ पर इस बार सोने के किसी आभूषण की जगह काव्य की कोई उत्तम पुस्तक भेंट में दूं ?'' सारिका अपने कंजूस पतिदेव की मंशा को समझते हुए बोली -'' जैसी आपकी इच्छा पर एक कवयित्री होने के नाते मुझे भी अपने कर्तव्य का निर्वाह करना चाहिए ....कल से सुबह की चाय की जगह लेगी मेरी लिखी कोई क्षणिका !....और नाश्ते में मिलेगी चटपटी हास्यपूर्ण कविता !......दिन व् रात के भोजन में हाइकू ,हाइगा और मात्रिक-शाब्दिक छंदों की रोटी ,चटनी ,दाल ,पापड़ ,सब्जी ,अचार ....एक कवयित्री पत्नी के इस परिश्रम से आपको कोई कष्ट तो नहीं होगा पतिदेव ?'' पत्नी श्री के इस ब्रह्मास्त्र से पतिदेव हड़बड़ाते हुए बोले -'' पत्नी श्री आप केवल अन्नपूर्णा बनकर ही रहे मैं सोने की जगह हीरे का आभूषण लाकर दूंगा भेंट में ...बस काम से जब मैं घर लौटूं तब मुझे यही लगे कि मैं अपने घर आया न कि किसी कवि-सम्मलेन में .'' पतिदेव की इस बात को सुनकर सारिका मुस्कुराने लगी और पतिदेव अपनी योजना विफल होने के कारण खिसियाया हुआ मुख लेकर वहाँ से खिसक लिए .
शिखा कौशिक 'नूतन'
4 टिप्पणियां:
chatur patni ka uchit nirnay....
सुन्दर कथा...जैसे को तैसा....
क्या बात है......बेचारे पतिदेव ....
सच हैं ऐसा भी होता हैं कभी,,,,
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