वे खास लड़कियां-कहानी
यूँ वे भी लड़कियां थी पर खास थी .खास यूँ क्योंकि वे शहर से कस्बे में आयी थी .कस्बे के महिला डिग्री कॉलेज में एक ऐसे विषय में एम्. ए. खुल गया था .इसलिए कस्बे में आना उन शहरी लड़कियों की मजबूरी थी .कॉलेज में तीन संस्कृतियों की लड़कियों का संगम हो रहा था .आस-पास के गांवों की ठेठ ,अक्खड़ ,जुझारू लड़कियां +कस्बे की 'शहर की ओर देखो' संस्कृति वाली लड़कियां+''वी आर दी बेस्ट ' सोच वाली शहरी लड़कियां .ये संगम गंगा+जमुना+सरस्वती वाला कतई न था . चूंकि शहरी लड़कियां संख्या में कॉलेज में काफी कम थी या दूसरे शब्दों में कहें अल्पसंख्यक वर्ग से थे इसलिए कस्बे की लड़कियों से मित्रता करना उनकी मजबूरी थी पर इसका तात्पर्य यह नहीं था कि शहर का होने का अभिमान वे किराये के कमरे में रख आयेंगी .वो अहंकार अपनी पूरी गंध के साथ उन लड़कियों द्वारा लगाये जाने वाले इत्र में मिलकर उन शहरी लड़कियों को महकाता रहता . वे खास लड़कियां कहती- ''हम जिधर से भी गुजरते हैं कस्बे के लोग हमें घूर-घूर कर देखते हैं .'' कहते हुए हिचक होती पर सड़क से गुजरते पिल्ले तक को कस्बे के लोग घूर-घूर कर ही देखते हैं ..समय है उनके पास और रही बात शहर की तो वहाँ इतनी आबादी है कि कौन किसे देखेगा ..पर शहर की लड़कियों ने इसे भी अपनी खासियत माना . शहरी लड़कियों का दम्भ उस समय सातवे आसमान पर जा पहुंचा जब कस्बे की एक दूकान से सामान लेते समय दूकानदार ने उनसे यह कह दिया -'' आप यहाँ की तो नहीं लगती !''एकाएक उन्हें अपने रहन-सहन ,भाषा ,हाव-भाव पर गर्व हो आया .मन ही मन आश्वस्त हो उठी वे ''हो न हो हममें कुछ न कुछ विशिष्ट है तभी तो एक कस्बाई दूकानदार को हम कस्बे के न लगकर बाहर के लगे ..हम हर प्रकार से कस्बे की लड़कियों से ज्यादा काबिल हैं ..सभ्य हैं और स्मार्ट हैं .'' तुरंत अभिमानी स्वर में उन शहरी लड़कियों ने जवाब दिया -'' हाँ हम शहर से हैं .'' बेचारी स्मार्ट बनने के चक्कर में ये तक नहीं समझ पाई कि दूकानदार तो मनमाने दाम वसूलने के लिए कंफर्म कर रहा था कि कहीं ये कस्बे के ही किसी जानकार के घर से न हो .खैर ये शहरीपन का घमंड गांव की उस लड़की के सामने भी कम हो जाता जो अपनी कार से कॉलेज आती .''गांव की है तो क्या अमीर है ..इस लड़की से मित्रता की जा सकती है !'' शहरी लड़कियों ने अपने सिद्धांतों में थोड़ी ढील दे दी .इसे कहते हैं दर्शन ...दूरदर्शन .गांव की लड़की से ज्यादा उसकी कार के आकर्षण में बंध गयी शहर की लड़कियां . ''कार में बैठकर गांव घूम आते हैं''-.शहर की लड़कियां गांव घूमने गयी .गांववालों का सौभाग्य ...गन्ना खाएंगी ..पर कैसे ..हम तो शहर की लड़कियां हैं ..गन्ना कभी खाया ही नहीं ..हमें नहीं आता !'' नहीं आने में भी गर्व का अनुभव . ''बिजली कितनी आती है यहाँ ...शहर में तो चौबीस घंटे आती है ..शाम होते ही अँधेरा हो जाता है यहाँ ..शहर में तो देर रात तक घुमते -फिरते हैं सब .'' शहरी होने के लाभ गिनाती हैं गांवों के घर में बैठकर . ''कितना तेल लगाती हैं गांव की लड़कियां बालों में ...छिः और आँखों में कितना काजल ..उफ्फ ! ''एक दुसरे के कान में कहकर मुंह बिचकाती हैं .शहर की लड़कियां यूँ ही ख़ास नहीं हैं ...वे शैम्पू से धोकर रखती हैं बाल ..एकदम हल्के-हल्के .......कंडीशनर ,फेसपैक ,थ्रेडिंग और भी बहुत कुछ है उनके पास ख़ास जो गांव की गंवार लड़कियों को नहीं पता पर इन शहरी लड़कियों के कसबे में आने से चल निकला है ''ब्यूटी पार्लर ''का धंधा .गांव-गांव खुलेंगें ब्यूटी पार्लर .अब हाथ के नल से पानी भरकर लती गांव की लड़की मुल्तानी मिटटी मुंह पर लगाये न दिखेगी ..वो भी जायेगी ब्यूटी पार्लर .फेसपैक लगवाएगी .शहरी लड़कियों जैसा दिखने की चाह कसबे की लड़कियों से गांव की लड़कियों तक पहुँच गयी मानों कोई संक्रामक बीमारी हो .मासूम गांव की लड़कियां नहीं जानती वे खास शहरी लड़कियां तब भी गांव की लड़कियों को उपेक्षा के भाव से ही देखेंगी क्योंकि सर्व विदित तथ्य ये है कि वे शहर की हैं और इसी बात का गुरूर है .मगर एक पेंच फंस ही गया जब शहर की लड़कियों को दिखा कि कुछ कस्बे की लड़कियां तो उनसे भी ज्यादा स्मार्ट है पर फिर उनके शहरी होने के दम्भ ने चेताया -'' होने do हैं तो कस्बे की ही ..हम तो शहर के हैं .'' किसी दिन कस्बे के किसी घर में चाय पी रही हैं शहरी खास लड़कियां और चाय पर कमेंट -'' यहाँ की चाय पीकर तो हमारे होंठ चिपक जाते हैं .'' अब कौन यकीन करे इस बात पर जिन शहरी लड़कियों के होंठ अपने द्वारा बनाई गयी कॉफी की हाई शुगर से नहीं चिपकते वे कस्बे की चाय से चिपक जाते है ...घोर आश्चर्य .यहाँ भी एक वर्गीकरण कर दिया है खास लड़कियों ने ''चाय को कस्बाई '' और कॉफी को शहरी'' के वर्ग में रखा है .ऐसी खास लड़कियों के दिमाग में एम्.ए. की पढ़ाई घुसी या नहीं पर उनका शहरीपन पूरे सत्र के दौरान उनके दिमाग में छाया रहा .इन खास लड़कियों की खास सोच इन्हें खास बनाये रही और वे एम्.ए. में औसत अंक लेकर कस्बे से विदा हो गयी अपने उसी खास......... पन के साथ .
शिखा कौशिक 'नूतन'
2 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन १७ साल पुराने मामले मे रेलवे देगा हर्जाना - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
--- सड़क से गुजरते पिल्ले तक को कस्बे के लोग ( नहीं = सभी लोग ) घूर-घूर कर ही देखते हैं ..
--ये घूरने का मनोविज्ञान है...
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