नववर्ष पर नव-आशा, नव-विचार युत ....मानव संस्कृति व संस्कार के मूल .....प्रेम व संसृति की नाभि -रूप हेतु प्रस्तुत है एक गीत व एक ग़ज़ल......
एक ग़ज़ल------उन के अश्कों को...
ग़ज़ल.....
उन के अश्कों को पलकों से चुरा लाये हैं |
उनके गम को हम खुशियों से सजा आये हैं
आप मानें या न मानें यह तहरीर मेरी ,
उनके अशआर ही ग़ज़लों में उठा लाये हैं|
उस दिए ने ही जला डाला आशियाँ मेरा ,
जिसको बेदर्द हवाओं से बचा लाये हैं |
याद करने से भी दीदार न होता उनका,
इश्क में यूंही तड़पने की सजा पाए हैं|
प्यार में दर्द का अहसास कहाँ होता है,
प्यार में ज़ज्ब दिलों को ही जख्म भाये हैं|
प्रीति है भीनी सी बरसात, क्या आलम कहिये,
रूह क्या अक्स भी आशिक का भीग जाए है|
श्याम करते हैं सभी शक मेरे ज़ज्वातों पे,
हम से ही दर्द के नगमे जहां में आये हैं||
--- चित्र गूगल साभार....
... और एक गीत ....ये दुनिया हमारी सुहानी न होती.....
----- चित्र ..डा श्याम गुप्त
--- चित्र गूगल साभार....
... और एक गीत ....ये दुनिया हमारी सुहानी न होती.....
ये दुनिया हमारी सुहानी
न होती,
कहानी ये अपनी कहानी न
होती ।
ज़मीं चाँद -तारे सुहाने न होते,
जो प्रिय तुम न होते, अगर तुम न होते।
न ये प्यार होता, ये इकरार होता,
न साजन की गलियाँ, न सुखसार होता।
ये रस्में न क़समें, कहानी न होतीं,
ज़माने की सारी रवानी न
होती ।
हमारी सफलता की सारी
कहानी,
तेरे प्रेम की नीति की
सब निशानी ।
ये सुंदर कथाएं फ़साने न
होते,
सजनि! तुम न होते,जो
सखि!तुम न होते ।
तुम्हारी प्रशस्ति
जो जग ने बखानी,
कि तुम प्यार-ममता
की मूरत-निशानी ।
ये अहसान तेरा सारे
जहाँ पर,
तेरे त्याग-दृड़ता की सारी कहानी ।
ज़रा सोचलो कैसे
परवान चढ़ते,
हमीं जब न होते, जो यदि हम न होते।
हमीं हैं तो तुम हो
सारा जहाँ है,
जो तुम हो तो हम है, सारा जहाँ है।
अगर हम न लिखते, अगर हम न कहते,
भला गीत कैसे
तुम्हारे ये बनते।
किसे रोकते तुम, किसे टोकते तुम,
ये इसरार इनकार, तुम कैसे करते ।
कहानी हमारी-तुम्हारी न
होती,
न ये गीत होते, न संगीत होता।
सुमुखि! तुम अगर जो
हमारे न होते,
सजनि! जो अगर हम तुम्हारे न होते॥
----- चित्र ..डा श्याम गुप्त