ईश्वर -- प्रकृति, आद्य-शक्ति - नारी सत्ता ही सृष्टि व सृजन का कारण ...
ईश्वर है या नहीं - यह एक गंभीर विवेचना का विषय है जो युगों से चलता आया है व चलता रहेगा | वस्तुतः यह आस्था का विषय है .."
मानों तो शंकर हैं,
कंकर हैं अन्यथा "
यद्यपि वैदिक साहित्य में ईश्वर के होने के अत्यंत प्रामाणिक, तर्कपूर्ण व सारगर्भित प्रमाण प्रतुत किये गए हैं ..परन्तु है यह आस्था विषय ही | विज्ञान व
कोई भी वैज्ञानिक आज तक ईश्वर की सत्ता को नकार नहीं पाया है अपितु सभी महान वैज्ञानिक अंतत .. अपने जीवन व कृतित्व के अंतिम काल में ईश्वर की सत्ता में विश्वास व्यक्त करते रहे हैं|
देवी-भागवत के अनुसार --आद्य-शक्ति
..नारी तत्व ही सृष्टि का आधार है
| पुरा-वैदिक-विज्ञान व आधुनिक विज्ञान दोनों के ही तात्विक भावानुसार अनुसार --सृजन के प्रत्येक
संक्रांति काल व विभिन्न
स्तर पर नारी-शक्ति का योगदान इस बात को पूर्णतः सत्य ठहराता है | आदि-पुरुष ..परमात्व-तत्व
...सिर्फ इच्छा करता है
..अदि-ऊर्जा ही मूल-दृव्य के रूप में ब्रह्माण्ड की आदि सृजन प्रक्रिया का कारक बनती है| विस्मृति व विभ्रम में पड़े ब्रह्मा की स्मृति -स्फुरणा भी आदि-शक्ति माँ सरस्वती ( अर्थात विज्ञान के अनुसार बुद्धि,
स्मरण,
नवीन प्रयोग, खोज ) ही बनती है जिससे सृष्टि -सृजन पुनः प्रारम्भ हो सका | माहेश्वरी -प्रजा ( मैथुन द्वारा स्वतः प्रजनन की उन्नत प्रक्रिया ) हेतु की सतत प्रक्रिया बार-बार निष्फल होने पर ...नारी-भाव का आविर्भाव ...दक्ष की साठ हज़ार कन्याओं की उत्पत्ति ( विज्ञान के अनुसार --संयोग से लिंग-चयन प्रक्रिया की उत्पत्ति ) पर ही मानव-सृष्टि की सतत स्वतः प्रजनन-उत्पत्ति प्रक्रिया का आरम्भ हुआ|
1 टिप्पणी:
सच्चा-अच्छा ....... आभार
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