शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

टिप्पणी है या धमकी -संभल जा ओ सनकी !


टिप्पणी  है या धमकी -संभल जा ओ सनकी !



मेरी पिछली एक पोस्ट [बाबा भाग न जाना  (नवभारत टाइम्स पर )]पर आई एक टिप्पणी ने इस पोस्ट को लिखने के लिए मजबूर कर दिया . .एक  महिला  ब्लोगर  की पोस्ट पर ऐसी टिप्पणी करना शर्मनाक तो  है ही आपराधिक गतिविधि भी  है.  टिप्पणी के रूप में ऐसी धमकी कोई गुंडा या लड़कियों का दलाल ही दे सकता है .टिप्पणीकार ने लिखा  -'कुतिया लिखना बंद कर वरना बाज़ार में जाकर बेच दूंगा .''इस टिप्पणीकार का IP ADD मैंने नोट कर लिया है .आवश्यक कार्यवाही हेतु  .जिसको मेरी पोस्ट पर एतराज हो वो सभ्यता की सीमा में रहकर टिप्पणी कर सकता है पर ऐसी टिप्पणी को एक स्त्री होकर यदि मैं बर्दाश्त करती हूँ तो समस्त स्त्री-जाति को अपमानित करती हूँ .''बाज़ार में बेच दूंगा '' -किस प्रकार  की मनोवृति का व्यक्ति  धमकी दे रहा  है .यदि ये बाबा रामदेव का समर्थक है तो असहमति प्रकट करे  पर इस टिप्पणीकार ने तो भारतीय  दंड  संहिता  की निम्न   धारा में ये अपराध कर डाला है -
''अनुराधा  बनाम महाराष्ट्र राज्य १९९१ क्रि.ला. j.410 [महाराष्ट्र ]में यह विनिश्चित किया गया की किसी महिला के प्रति धमकी भरी गलियां व् अपशब्दों का इस्तेमाल धारा ५०३ के अंतर्गत दंडनीय अपराध होगा जिसके  लिए धारा ५०६ में  २ साल के कारावास की सजा व् जुर्माने या दोनों  का प्रावधान है.''

                                                 कानूनी रूप से तो मैं इस व्यक्ति के खिलाफ  कड़ी  कार्यवाही  कर ही सकती हूँ साथ ही यदि किसी ने ''श्री दुर्गा सप्तशती ''का पाठ कभी किया हो तो वो जानता ही होगा कि संसार में जितनी भी स्त्रियाँ  हैं देवी का ही रूप हैं .इस टिप्पणी ने मेरे प्राणों  में आग लगा दी है .एक स्त्री को बेचने की धमकी देना इंसानियत को शर्मसार करना है पर ऐसा व्यक्ति ये क्यों भूल जाता है कि-स्त्री शक्ति रूपा भी है .ओ दुष्ट तेरी टिप्पणी का जवाब ये है -

ओ दुष्ट संभल और जान ले  ये 'मैं भारत  की नारी हूँ '
मैं आदि शक्ति सृष्टि की  सम्मान की मैं अधिकारी हूँ .

अपशब्द मुझे कहकर  तूने सब पुण्य नष्ट अपने  ;
तू चला गिराने मान मेरा क्यूँ दिन में देख रहा सपने .

मुझ शक्ति रूपा स्त्री को ''अपशब्द''कहे  तूने ऐसे ;
हो खंड खंड मस्तक तेरा ये श्राप ना दूं तुझको कैसे ?


तू चंड-मुंड का  वंशज है मैं पुत्री  हूँ चामुंडा की ;
कर दूं धड से तेरा शीश अलग है यही सजा दुर्वचनों की .


ओ रक्तबीज के दूत दुष्ट तू नहीं जानता मुझको है ;
तू बेचेगा जगजननी को धिक्कार तेरी माता को है !

कुत्सित भावों की खड़क से ये भीषण प्रहार किया तूने ;
मत भूल रूप धर चंडी का दानव संहार किया मैंने .


मेरे  प्राणों में आग लगी ये भस्म तुझे अब कर देगी  ;
ले दुर्वचनों का बोझ तेरी रूह जन्मों जन्मों तक भटकेगी .

तू देख जरा ऊपर नीचे दायें बाएं और यहाँ वहां 
हर ओर खडी मैं ही मैं हूँ ; मैं काली गौरी जगदम्बा .

जग  की सारी नारी देवी तू उसको गाली देता है ,
है कोख अभागिन बहुत बड़ी जिसने जन्मा ये बेटा है .

तू हाथ बढ़ा नारी की तरफ  मैं हाथ काट कर रख दूँगी ,
अगली पिछली तेरी पीढ़ी का सर्वनाश मैं कर दूँगी .

 [ अंत मे  -'नवभारत  टाइम्स' को भी चाहिए  की  वो   अपनी   महिला   ब्लोगर्स के ब्लॉग पर   टिप्पणी   करने   वालों  के लिए   कड़े नियम  बनायें  .]

                                 शिखा कौशिक 




3 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

क्या बात है शिखा जी वास्तव में आपकी ये पोस्ट नारी जाति के सम्मान से जुडी है aur वास्तव में yahee lag रहा है जैसे माँ काली ही प्रत्यक्ष आ गयी हों .ऐसे dushton ko ऐसे ही जवाब देने chahiye .आप लिखिए हम सभी आप के साथ है.ऑनर किलिंग:सजा-ए-मौत की दरकार नहीं

रविकर ने कहा…

सटीक जवाब |
सम्मान करना सीखना ही पड़ेगा ||
बधाई ||

डा श्याम गुप्त ने कहा…

बहुत सटीक उत्तर है.... धिक्कार है एसे व्यक्ति को ...पुत्र को जो अपनी माँ को लज्जित/ असम्मानित कर रहा है....