शनिवार, 5 दिसंबर 2015

लिबास-कहानी


लिबास-कहानी 
मंजू ने लम्बी साँस लेते हुए मन में सोचा -''आज सासू माँ की तेरहवीं भी निपट गयी .माँ ने तो केवल इक्कीस साल संभाल कर रखा मुझे पर सासू माँ ने अपने मरते दम तक मेरे सम्मान ,मेरी गरिमा और सबसे बढ़कर मेरी इस देह की पवित्रता की रक्षा की . ससुराल आते ही जब ससुर जी के पांव छूने को झुकी तब आशीर्वाद देते हुए सिर पर से ससुर जी का हाथ पीछे पीठ पर पहुँचते ही सासू माँ ने टोका था उन्हें -'' बिटिया ही समझो ...बहू नहीं हम बिटिया ही लाये हैं जी !''सासू माँ की कड़कती चेतावनी सुनते ही घूंघट में से ही ससुर जी का खिसियाया हुआ चेहरा दिख गया था मुझे . .उस दिन के बाद से जब भी ससुर जी के पांव छुए दूर से ही आशीर्वाद मिलता रहा मुझे .
पतिदेव के खानदानी बड़े भाई जब किसी काम से आकर कुछ दिन हमारे घर में रहे थे तब एक बेटे की माँ बन चुकी थी थी मैं ...पर उस पापी पुरुष की निगाहें मेरी पूरी देह पर ही सरकती रहती .एक दिन सासू माँ ने आखिर चाय का कप पकड़ाते समय मेरी मेरी उँगलियों को छूने का कुप्रयास करते उस पापी को देख ही लिया और आगे बढ़ चाय का कप उससे लेते हुए कहा था -''लल्ला अब चाय खुद के घर जाकर ही पीना ...मेरी बहू सीता है द्रौपदी नहीं जिसे भाई आपस में बाँट लें .'' सासू माँ की फटकार सुन वो पापी पुरुष बोरिया-बिस्तर बांधकर ऐसा भागा कि ससुर जी की तेरहवी तक में नहीं आया और न अब सासू माँ की . चचेरी ननद का ऑपरेशन हुआ तो तीमारदारी को उसके ससुराल जाकर रहना पड़ा कुछ दिन ...अच्छी तरह याद है वहाँ सासू माँ के निर्देश कान में गूंजते रहे -'' ...बचकर रहना बहू ..यूँ तेरा ननदोई संयम वाला है पर है तो मर्द ना ऊपर से उनके अब तक कोई बाल-बच्चा नहीं ...''
आखिरी दिनों में जब सासू माँ ने बिस्तर पकड़ लिया था तब एक दिन बोली थी हौले से -'' बहू जैसे मैंने सहेजा है तुझे तू भी अपनी बहू की छाया बनकर रक्षा करना ..जो मेरी सास मेरी फिकर रखती तो मेरा जेठ मुझे कलंक न लगा पाता .जब मैंने अपनी सास से इस ज्यादती के बारे में कहा था तब वे हाथ जोड़कर बोली थी मेरे आगे कि इज्जत रख ले घर की ..बहू ..चुप रह जा बहू ...तेरी गृहस्थी के साथ साथ जेठ की भी उजड़ जावेगी ..पी जा बहू जहर ..भाई को भाई का दुश्मन न बना ....और मैं पी गयी थी वो जहर ..आज उगला है तेरे सामने बहू !!'' ये कहकर चुप हो गयी थी वे और मैंने उनकी हथेली कसकर पकड़ ली थी मानों वचन दे रही थी उन्हें ''चिंता न करो सासू माँ आपके पोते की बहू मेरे संरक्षण में रहेगी .'' सासू माँ तो आज इस दुनिया में न रही पर सोचती हूँ कि शादी से पहले जो सहेलियां रिश्ता पक्का होने पर मुझे चिढ़ाया करती थी कि -'' जा सासू माँ की सेवा कर ..तेरे पिता जी पर ऐसा घर न ढूँढा गया जहाँ सास न हो '' उन्हें जाकर बताऊँ कि ''सासू माँ तो मेरी देह के लिबास जैसी थी जिसने मेरी देह को ढ़ककर मुझे शर्मिंदा होने से बचाये रखा न केवल दुनिया के सामने बल्कि मेरी खुद की नज़रों में भी .'

शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 24 नवंबर 2015

''दर्द दिल में है तेरे हम जानते हैं !''



दर्द दिल में है तेरे हम जानते हैं !
ज़ख्म गहरे हैं तेरे हम जानते हैं !
..........................................
ग़मों की आग में तपकर मासूम सा ये दिल ,
धधकता सीने में तेरे हम जानते हैं !
.............................................
छलक आते हैं आसूँ  आँखों में बेशरम ,
नहीं बस में हैं तेरे हम जानते हैं !
...........................................
तज़ुर्बा कह रहा हमसे वफ़ा का है सिला धोखा ,
नहीं कुछ हाथ में तेरे हम जानते हैं !
......................................
क्यों सदमा सा लगा तुझको हकीकत जानकर 'नूतन'
नहीं कोई साथ है तेरे हम जानते हैं !


शिखा कौशिक 'नूतन'

सभी ब्लॉगर मित्रों को नमस्कार
बहुत दिन बाद आप मित्रों के सम्मुख आने का मौका मिला , मित्रों नव प्रकाशित हिंदी मासिक पत्रिका "ह्यूमन टुडे " को सम्पादन करने की जिम्मेदारी मिली है. ऐसे में आपलोगों की याद आनी स्वाभाविक है. भले ही इतने दिनों तक गायब रहा लेकिन आपसे दूर नहीं , मैं चाहता हूँ की जो ब्लॉगर मित्र अपनी रचनाओ के माध्यम से मुझसे जुड़ना चाहते है , मै  उनका सहर्ष स्वागत करता हूँ।  सामाजिक सरोकारों से जुडी इस पत्रिका में आपकी रचनाओ का स्वागत है , जो मित्र मुझसे जुड़ना चाहते हैं वे अपनी रचनाएँ मुझे मेल करें। ।
humantodaypatrika@gmail.com
रचनाएँ राजनितिक , सामाजिक व् ज्ञानवर्धक हो। कविता , कहानी व विभिन्न विषयो पर लेख आमंत्रित।
harish singh ---- editor- Humantoday

बुधवार, 11 नवंबर 2015

''इस अमावस को बदल दें चांदनी की रात में ''


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इस बार दीपक वे जगें ,फैले उजाला प्यार का ,
अंत हो इस मुल्क में मज़हबी तकरार का !
.................................................................
हो मिठाई से भी मीठा , मुंह से निकले बोल जो ,
ये ही मौका है मोहब्बत के खुले इक़रार का !
....................................................................
इस अमावस को बदल दें चांदनी की रात में ,
तब मज़ा आएगा असली दीपों के त्यौहार का !
.............................................................
नफ़रतें मिट जाएँ सारी , फिरकापरस्ती दफ़न हो ,
इस दीवाली काट देंगें सिर हर एक गद्दार का !
.................................................
अब दिलों में झिलमिलाएँ प्रेम से रोशन दिए ,
कारोबार ठप्प हो 'नूतन' नफरत-ए-बाजार का !

शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती !-एक लघु कथा


क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती !-एक लघु कथा

'...जिज्जी बाहर निकाल उस मुसलमानी को .!!!'  रमा के घर के बाहर खड़ी भीड़ में से आवाज़ आई .आवाज़ में ऐसा वहशीपन था कि दिल दहल जाये .रमा  ने साडी का पल्ला सिर पर ढका और घर के किवाड़ खोलकर दरवाजे के बीचोबीच खड़ी हो गयी .नज़ारा बहुत खौफनाक था .भीड़ में बबलू का सिर फटा  हुआ था और राजू की कमीज़ फटी हुई थी .खून से सने कपड़ों में खड़ा सोनू ही चीख चीख कर रमा से कह रहा था ''....हरामजादों ने मेरी बहन की अस्मत रौंद डाली ...मैं भी नहीं छोडूंगा इसको ....!!!''रमा  का  चेहरा सख्त हो गया .वो फौलाद से कड़क स्वर में बोली - ''मैं उस लड़की को तुम्हारे  हवाले नहीं करूंगी !!! उसकी अस्मत से खेलकर तुम्हारी बहन की इज्ज़त वापस नहीं आ जाएगी .किसी और की अस्मत लूटकर तुम्हारी बहन की अस्मत वापस मिल सकती है तो ...आओ ..लो मैं खड़ी हूँ ...बढ़ो और .....'' ''जिज्जी !!!!!'' सोनू चीख पड़ा और आकर रमा के पैरों में गिर पड़ा .सारी भीड़ तितर-बितर हो गयी .सोनू को कुछ लोग उठाकर अस्पताल ले गए .रमा पलट कर घर में ज्यों ही घुसी घर में किवाड़ की ओट में छिपी फाटे कपड़ों से बदन छिपती युवती उसके पैरों में गिर पड़ी .फफक फफक कर रोती हुई वो बोली -'' आप न होती तो मेरे जिस्म को ये सारी भीड़ नोंच डालती .मैं कहीं का न रहती !'.रमा ने प्यार से उसे उठाते हुए अपनी छाती से लगा लिया .और कोमल बोली में धैर्य   बंधाते हुए बोली -लाडो डर मत !! धार्मिक उन्मादों में कितनी ही  बहन बेटियों की अस्मत मुझ जैसी औरतों ने बचाई है क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती !!

शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

दुर्गा देवी रहस्य ...डा श्याम गुप्त

      दुर्गा देवी रहस्य ...

महादेवी दुर्गा को तीन महा-शक्तियों --महाकाली, शक्ति की देवी...महालक्ष्मी
,धन-संमृद्धि की देवी तथा महासरस्वती, विद्या व ज्ञान की देवी ....का सम्मिलित अवतार कहा जाता है |
महादेवी दुर्गा समस्त दानवों, असुरों व दुष्टों व दुष्टता के विनाश का कारण बनती हैं...| इस तथ्य का तात्विक अर्थ है कि जब जब समाज में फैले अनाचार, असुरता आदि के विनाश की आवश्यकता होती है तो वे सभी व्यक्ति व विद्वान् जिनके पास धन बल है...शक्ति है एवं वुद्धि व ज्ञान का बल है सभी को समाज से बुराई को दूर करने हेतु संगठित होकर कार्य करना चाहिए |
भगवान राम ने रावण पर विजय से पूर्व इसी महाशक्ति की आराधना की थी | इसका तत्वार्थ है कि सर्व-शक्तिमान भी जब तक प्रकृति -शक्ति से नहीं जुड़ते ..विजयश्री उन्हें प्राप्त नहीं होती |

विश्व की हर सभ्यता व देश में --सिंह वाहिनी देवी की उपस्थिति है--- चित्र -गूगल साभार ---चित्र विवरण के लिए चित्र पर क्लिक करें --बड़े आकार के साथ देखें ---
अतार्गिस--सीरिया

सिबेल्ला-पोम्पेयी


अशीराह---योरोप--हिब्रू

ताजकिस्तान

अल्लत -सीरिया

ग्रीक---देवी जीयससे लड़ते हुए 

स्केमेट- मिश्र  की युद्ध देवी

इन्नाना--सुमेरिया

जेनेट--रूस

आर्ट---लायन गोडेस --कनाडा

मोहन जोदारो


'दुर्गा --भारत'




'सीरिया -अतार्गिस ..'
'वेंशू --चाइनीज़-तिब्बत'
'सेबेल्ला -पोम्पेयी'
'सिंह वाहिनी---चेल्दियांस'
Drshyam Gupta's photo.
ईस्टर--मेसोपोटामिया
Drshyam Gupta's photo.
सिबेले--रोम की ग्रेट मदर
Drshyam Gupta's photo.
श्रीलंका
Drshyam Gupta's photo.
वेंस्हू ---तिब्बत-चीन

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

माँ - ग़ज़ल---ड़ा श्याम गुप्त

माँ का वंदन..श्राद्ध पर्व पर ---ग़ज़ल---ड़ा श्याम गुप्त

                              
श्राद्ध पर्व पर ---
Drshyam Gupta's photo.
माँ का वंदन..
फिर आज माँ की याद आई सुबह सुबह |
शीतल पवन सी घर में आयी सुबह सुबह |

वो लोरियां, वो मस्तियाँ, वो खेलना खाना,
ममता की छाँह की सुरभि छाई सुबह सुबह |

वो चाय दूध नाश्ता जबरन ही खिलाना,
माँ अन्नपूर्णा सी छवि भाई सुबह सुबह |

परिवार के सब दर्दो-दुःख खुद पर ही उठाये,
कदमों में ज़न्नत जैसे सिमट आयी सुबह सुबह |

अब श्याम क्या कहें माँ औ ममता की कहानी,
कायनात सारी कर रही वंदन सुबह सुबह ||

बुधवार, 16 सितंबर 2015

सख्त लहज़े में कहा शौहर ने बीवी से



सख्त लहज़े में कहा शौहर ने बीवी से देखो लियाकत में तुम्हे रहना होगा ,
तुम्हारी हद है मेरे मकान की चौखट अब इसी हद में तुम्हे रहना होगा !


मिला  ऊँचा रुतबा मर्द को औरत से बात दीनी ही नहीं दुनियावी भी ,
मुझको मालिक खुद को समझना बांदी झुककर मेरे आगे तुम्हे रहना होगा !


है मुझे हक मैं करूं शौक पूरे अपने तुम्हे बस फ़र्ज़ ही निभाने हैं ,
ज़ुल्म न कहना  ये ही होता आया  इन्ही पाबंदियों में तुम्हे रहना होगा !


नीची आवाज़ में करनी होगी बातें नज़रें झुकाकर सामने आना ,
शरीक-ए-हयात का दर्ज़ा अगर पाना है कुर्बान खुद को करके तुम्हे रहना होगा !


बेग़म मुझे बेपर्दगी से है नफरत ढककर रखना खुद को ज़माने से ,
बिना मेरे वजूद न  तेरा जान लो 'नूतन' हकीकत में तुम्हे रहना होगा !


शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

राखी व रक्षाबंधन पर्व के निहितार्थ ... डा श्याम गुप्त..

राखी व रक्षाबंधन पर्व के निहितार्थ ... डा श्याम गुप्त..

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                              बहना ने भाई की कलाई पर प्यार बांधा है '... रक्षाबंधन भाई-बहन के शाश्वत प्रेम का प्रतीक है | क्या यह सिर्फ अपने भाई, अपनी बहन के प्रेम का प्रतीक है ? क्या भाई द्वारा अपनी बहन की रक्षा हेतु राखी का बंधन अनिवार्य है, क्या राखी बांधे बिना भाई बहन की समय पर सहायता करना भूल जायगा ? कैसे हो सकता है ? राखे बंधे या न बंधे भाई तो अपनी बहन की रक्षा करेगा ही | फिर रक्षाबंधन का क्या महत्त्व ?

                                 क्या भाई को केवल बहन की ही रक्षा करना चाहिए ...पुत्र को माँ की या पिता की नहीं, या पिता को पुत्री की, पति को पत्नी की नहीं | वास्तव में यह सिर्फ भाई द्वारा बहन की रक्षा का ही नहीं अपितु प्रत्येक पुरुष द्वारा प्रत्येक स्त्री की ...प्रत्येक बहन..बहनों की रक्षा हेतु स्वयं बंधन- संकल्प का पर्व है | परिवार, पडौस, समाज की, नगर की, ग्राम की, विश्व की प्रत्येक महिला, स्त्री, बच्ची को बहन की निगाहों से देखने के संकल्प का पर्व है |
प्रत्येक पुरुष को सभी स्त्रियों को माँ-बहन की भांति देखना चाहिए | यद्यपि छोटी बच्ची को माँ न कहा जासके ( यद्यपि पुरा काल में सभी स्त्रियों को माँ कहकर ही पुकारा जाता था चाहे छोटी हो या बड़ी --आज भी भारत के दक्षिण के राज्यों में हर उम्र की स्त्री को माँ या अम्मा कह कर पुकारा जाता है...चाहे अपनी स्वयं की माँ को आई कहा जाता हो ..) परन्तु बहन के लिए कोइ उम्र सीमा नहीं होती ...एक वर्ष की बच्ची भी बहन हो सकती है ७० वर्ष की वृद्धा भी |
                                 इसीलिये आज का दिन यह संकल्प का है कि प्रत्येक पुरुष प्रत्येक स्त्री को बहन के समान समझे एवं उसी प्रकार व्यवहार करे ..उसके मान-सम्मान की रक्षा हेतु न सिर्फ स्वयं तत्पर रहे अपितु अन्य भी करें एवं उसका सामाजिक, मानसिक व शारीरिक उत्प्रीणन न हो यह सुनिश्चित करे | इसीलिये रक्षाबंधन को भाई-बहन का त्यौहार कहा जाता है |

                               यदि हम आज के दिन इस पर्व का वास्तविक निहितार्थ समझें, यथा भाव संकल्प करें तो निश्चय ही हम न किसी बच्ची, युवती, महिला का उत्प्रीणन करेंगे न होने देंगे तभी समाज में उच्च मानव आचरण , व्यावहारिक आदर्शों व संस्कारों की स्थापना होगी और हमारे समाज से स्त्रियों पर आये दिन होने वाले अनाचार,अत्याचार, उत्प्रीणन , हिंसा, बलात्कार , यौन उत्प्रीरणन ... आदि का कलंक मिट सकता है | यही एक मात्र उपाय है तभी हम इस पर्व को मनाने के सच्चे अधिकारी होंगे |

शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

आखिर कब तक

आखिर कब तक
झूठी इज्ज़त के नाम पर समाज
को बलि चढ़ती रहेगी लडकियाँ

आखिर कब तक
संस्कारों के नाम पर
दबती रहेगी लडकियाँ

आखिर कब तक
अपनों की ख़ुशी के लिये अपनी
हर खुशी ठुकराती रहेगी लडकियाँ

आखिर कब तक
यू ही दुनिया के आगे
डर डर के जीती रहेगी लडकियाँ

आखिर कब तक
लोगो के सवालो के कटघरो
में खड़ी रहेगी लडकियाँ

आखिर कब तक
इज्ज़त और मान के
लिये तरसती रहेगी लडकियाँ

आखिर कब तक
अपने छोटे छोटे हक़
के लिए लड़ती रहेगी लडकियाँ

आखिर कब तक
आखिर कब तक ...........





शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

दर्द ( एक बेटी का )

अपना सबने कहा पर अपना कोई न सका
मुझे जाना सबने पर समझ कोई न सका

  मेरे चेहरे की मुस्कान सबने देखी पर
  मेरी आखों का दर्द कोई न देख सका

मेरी जरुरतो को तो पूरा किया पर
चाहतो को हमेशा अनदेखा किया

  मुझे सहारा तो सबने दिया पर
  अपने पैरो पर उठना किसी न सिखाया

मुझे सही गलत का फर्क तो बताया
पर गलत के खिलाफ लड़ना न सिखाया

  मुझे सपने देखने की इज़ाज़त तो दी पर
  उन्हें पूरा करने की शक्ति नहीं दी

मेरे रूप रंग को सबने निहारा पर
मेरे मन को कभी किसी का न मिला सहारा

      मुझे पंख तो मिले पर
      उड़ने की इज़ाज़त नही

मुझे बेटी होने का हक़ तो दिया पर
बेटी का सम्मान नहीं .............



  
  

बुधवार, 29 जुलाई 2015

बलात्कार तब तक नहीं रुकेंगें


बलात्कार तब तक नहीं रुक सकते
जब तक नहीं रुकेगा
स्त्री को जिम्मेदार ठहराना  और

पुरुष का अपने ही कुकृत्य पर
ठहाका लगाना !

**************************

बलात्कार तब तक नहीं रुक सकते
जब तक नहीं रुकेगा

धर्म गुरु  द्वारा
जनता को 
भटकानाऔर नेताओं का
राजनीति चमकाना .

******************************
बलात्कार तब तक नहीं रुक सकते
जब तक नहीं रुकेगा

पुत्री  पर मर्यादा के
नाम पर प्रतिबन्ध लगाना
और पुत्रों का  संस्कारों से
परिचय न करवाना .


शिखा कौशिक 'नूतन''

गुरुवार, 9 जुलाई 2015

शुभकामनाओं की प्रबल आकांक्षा है !


मेरी लघु-कथाओं का प्रथम संग्रह अंजुमन प्रकाशन [इलाहाबाद ] से शीघ्र ही प्रकाशित हो रहा है .आप सभी की शुभकामनाओं की प्रबल आकांक्षा है !

https://www.facebook.com/anjumanpublication?pnref=lhc
-डॉ. शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

वैदेही सोच रही मन में


वैदेही सोच रही मन  में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!
वैदेही सोच रही मन  में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते ,
लव-कुश की बाल -लीलाओं  का आनंद प्रभु संग में लेते .
जब प्रभु बुलाते लव -कुश को आओ पुत्रों समीप जरा ,
घुटने के बल चलकर जाते हर्षित हो जाता ह्रदय मेरा ,
फैलाकर बांहों का घेरा लव-कुश को गोद उठा लेते !
वैदेही सोच रही मन  में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!

ले पकड़ प्रभु की ऊँगली जब लव-कुश चलते धीरे -धीरे ,
किलकारी दोनों की सुनकर मुस्कान अधर आती मेरे ,
पर अब ये दिवास्वप्न है बस रोके आंसू बहते-बहते .
वैदेही सोच रही मन  में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!

लव-कुश को लाकर उर समीप दोनों का माथा लिया चूम ,
तुम केवल वैदेही -सुत हो ; जाना पुत्रों न कभी भूल ,
नारी को मान सदा देना कह गयी सिया कहते -कहते .
वैदेही सोच रही मन  में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!

शिखा कौशिक 'नूतन '

बुधवार, 1 जुलाई 2015

आधुनिक महिलाएं और मासूम बच्चियों के प्रति यौन अपराध





''आंधी ने तिनका तिनका नशेमन का कर दिया ,
पलभर में एक परिंदे की मेहनत बिखर गयी .''
फखरुल आलम का यह शेर उजागर कर गया मेरे मन में उन हालातों को जिनमे गलत कुछ भी हो जिम्मेदार नारी को ठहराया जाता है जिसका सम्पूर्ण जीवन अपने परिवार के लिए त्याग और समर्पण पर आधारित रहता है .किसी भी सराहनीय काम का श्रेय लेने के नाम पर जब सम्पूर्ण समाज विशेष रूप से पुरुष वर्चस्ववादी समाज आगे बढ़ सीना तान कर खड़ा हो जाता है तो समाज में घटती अशोभनीय इन वारदातों का ठीकरा नारी के सिर क्यों फोड़ते हैं ?जबकि मासूम बच्चियां जिस यौन दुर्व्यवहार की शिकार हो रही हैं उसका कर्ता-धर्ता तो पुरुष ही है .
आधुनिक महिलाएं आज निरंतर प्रगति पथ पर आगे बढ़ रही हैं और ये बात पुरुष सत्तात्मक समाज को फूटी आँख भी नहीं सुहाती और इसलिए सबसे अधिक उसकी वेशभूषा को ही निशाना बनाया जाता है .सबसे ज्यादा आलोचना उसके वस्त्र चयन को लेकर ही होती है .जैसे कि एक पुराने फ़िल्मी गाने में कहा गया-
''पहले तो था चोला बुरका,
फिर कट कट के वो हुआ कुरता ,
चोले की अब चोली है बनी
चोली के आगे क्या होगा ?
ये फैशन यूँ ही बढ़ता गया ,
और कपडा तन से घटता गया ,
तो फिर उसके बाद ......''

यौन दुर्व्यवहार के लिए कपड़ों को दोषी ठहराया जा रहा है .यह धारणा भी बलवती की जा रही है कि यदि दो लड़कियां साथ जा रही हैं और उनमे से एक पूरी तरह से ढकी-छिपी हो और दूसरी आधुनिक वस्त्रों में हो तो वह आधुनिक वस्त्रों वाली ही छेड़खानी का शिकार होती है और यदि इसी धारणा पर  विश्वास किया जाये तो दिल्ली गैंगरेप कांड तो होना ही नहीं चाहिए था  क्योंकि उसमे दामिनी के भाई के अनुसार वह लम्बे गर्म ओवरकोट में थी .
ऐसे में मासूम बच्चियों के साथ यौन दुर्व्यवहार के लिए महिलाओं के आधुनिक होने को यदि उत्तरदायी ठहराने की कोशिश की जाती है तो ये सरासर नाइंसाफी होगी समस्त नारी समुदाय के साथ, क्योंकि बच्चियों के मामले में पहले तो ये मासूम न तो कपड़ों के सम्बन्ध में कोई समझ रखती हैं और न ही यह जानती हैं कि जो व्यवहार उनके साथ किया जा रहा है वह एक गंभीर अपराध है .हम स्वयं देखते हैं कि बच्चे कैसे भी कहीं घूम फिर लेते हैं और खेलते रहते हैं वे अगर इन दुनियावी  बातों में फसेंगे तो बचपन शब्द के मायने ही क्या रह जायेंगे जो जिंदगी के औपचारिक अनौपचारिक तथ्यों से अंजान रहता है और एक शांत खुशहाल समय गुजारता है .
ऐसे में ये सोचना कि बच्चे ये देखेंगे या महसूस करेंगे कि उनकी वेशभूषा अश्लील है या उत्तेजनात्मक ,मात्र कोरी कल्पना है साथ ही उनके बारे में सोचते हुए उनकी माँ ये सोचेगी कि मेरा बच्चा इस तरह अभद्र लग रहा है और हर वक्त घर में भी उसके कपड़ों को देखती रहेगी तो असम्भव ही कहा जायगा क्योंकि जो बच्चे इसका शिकार हो रहे हैं वे इतने छोटे हैं कि उनके बारे में उनके बड़े ये कल्पना भी नहीं कर सकते कि उनके साथ कोई ऐसा करने की सोच भी सकता है .इतनी छोटी बच्चियों के शरीर भले ही कपड़ों से ढके हो या न ढके हों कभी भी उनकी यौन प्रताड़ना का कारण नहीं होते ,उनकी यौन प्रताड़ना का एकमात्र कारण है ''उनकी मासूमियत ,जिसके कारण वे न तो उस व्यवहार को जान पाते हैं और न ही किसी को उसके बारे में बता पाने की स्थिति में होते हैं .जैसे कि मोबिन धीरज लिखते हैं -
''मुहं से निकले तो ज़माने को पता चलता है ,
घुट के रह जाये जो आवाज कोई क्या जाने .''
बिल्कुल यही कारण है कि वहशी दरिन्दे को अपनी हवस बुझाने के लिए इन बच्चियों के शरीर के रूप में एक महिला का शरीर मिलता है और उसका शिकार वह बच्ची न तो उसका प्रतिरोध ही कर सकती है और न ही उसका अपराध दुनिया के सामने उजागर .

इसके साथ ही आधुनिक महिलाओं पर यह जिम्मेदारी डाली जा रही है तो ये नितान्त अनुचित है क्योंकि यह कृत्य इन बच्चियों के साथ या तो घर के किसी सदस्य द्वारा ,या स्कूल के किसी कर्मचारी या शिक्षक द्वारा ,या किसी पडौसी द्वारा किया जाता है और ऐसे में ये कहना कि वह उसकी वेशभूषा देख उसके साथ ऐसा कर गया ,पूर्ण रूप से गलत है यहाँ महिलाओं की आधुनिकता का तनिक भी प्रभाव नहीं कहा जा सकता .
मासूम बच्चियों के प्रति यौन दुर्व्यवहार का पूर्ण रूप से जिम्मेदार हमारा समाज और उसकी सामंतवादी सोच है ,जिसमे पुरुषों के लिए किसी संस्कार की कोई आवश्यकता नहीं समझी जाती ,उनके लिए किसी नैतिक शिक्षा को ज़रूरी नहीं माना  जाता . यह सब इसी सोच का दुष्परिणाम है .ऐसे में समाज में जो थोड़ी बहुत नैतिकता बची है वह नारी समुदाय की शक्ति के फलस्वरूप है और यदि नारी को इसी तरह से दबाने की कोशिशें जारी रही तो वह भी नहीं बचेंगी और तब क्या हल होगा उनकी सहज कल्पना की जा सकती है .इसलिए नारी पर इस तरह से दोषारोपण करने वालो को ''नवाज़ देवबंदी''के इस शेर को ध्यान में रखना होगा -
''समंदर के किसी भी पार रहना ,
मगर तूफान से होशियार रहना ,
लगाओ तुम मेरी कीमत लगाओ
मगर बिकने को भी तैयार रहना .''


शालिनी कौशिक
[कौशल ]


शनिवार, 27 जून 2015

वो लड़की- रौद दी जाती है अस्मत जिसकी


 वो लड़की
रौंद दी जाती है  अस्मत जिसकी  ,
करती है नफरत
अपने ही वजूद से
जिंदगी हो जाती है बदतर उसकी
मौत से .

 वो लड़की
रौद दी जाती है अस्मत जिसकी ,
घिन्न आती है उसे
अपने ही जिस्म से ,
नहीं चाहती करना
अपनों का सामना ,
वहशियत की शिकार
बनकर लाचार
घबरा जाती है हल्की सी
आहट से .

 वो लड़की
रौद दी जाती है अस्मत जिसकी
समझा नहीं पाती खुद को ,
संभल नहीं पाती
उबर नहीं पाती हादसे से ,
चीत्कार करती है उसकी आत्मा
चीथड़े -चीथड़े उड़ गए हो
जिसकी गरिमा के
जिए तो जिए कैसे ?

 वो लड़की
 रौद दी जाती है अस्मत जिसकी
घर  से बहार निकलना
उसके लिए है मुश्किल
अब सबकी नज़रे
वस्त्रों में ढके उसके जिस्म पर
आकर जाती है टिक ,
समाज की कटारी नज़र
चीरने लगती है उसके पहने हुए वस्त्रों को ,
वो महसूस करती है खुद को
पूर्ण नग्न ,
छुटकारा नहीं मिलता उसे
म्रत्युपर्यन्त   इस मानसिक दुराचार से .
वो लड़की
रौद दी जाती है अस्मत जिसकी ........

                               शिखा कौशिक 'नूतन '





बुधवार, 17 जून 2015

अग्नि-परीक्षा सीता की अपराध था घनघोर

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भूतल  में  समाई  सिया  उर कर रहा धिक्कार
पितृ सत्ता के समक्ष लो  राम गया  हार   !

देवी अहिल्या को लौटाया नारी  का सम्मान
अपनी  सिया का साथ न दे  पाया किन्तु  राम
है वज्र सम ह्रदय मेरा करता हूँ मैं स्वीकार !
पितृ सत्ता के समक्ष  ........

वध किया  अनाचारी का बालि हो या  रावण
नारी को मिले मान बस था यही कारण
पर दिला पाया कहाँ सीता को ये अधिकार !
पितृ सत्ता के समक्ष .......
नारी नर समान है ;  वस्तु नहीं नारी
एक पत्नी व्रत लिया इसीलिए  भारी
पर तोड़ नहीं पाया पितृ सत्ता की दीवार !
पितृ सत्ता के समक्ष .....

अग्नि-परीक्षा सीता की अपराध था घनघोर
अपवाद न उठे कोई इस बात पर था जोर
फिर  भी  लगे सिया पर आरोप निराधार !
पितृ सत्ता के समक्ष लो राम गया हार !!

शिखा कौशिक