भारतीय मंदिरों में पत्थर पर विज्ञान श्रंखला---


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भारतीय मंदिरों में पत्थर पर विज्ञान श्रंखला---
'' वकील साहब '' कुछ करो ,हम तो लुट गए ,पैसे-पैसे को मोहताज़ हो गए ,हमारी बेटी को मारकर वो तो बरी हो गए और हम .....तारीख दर तारीख अदालत के सामने गुहार लगाने के बावजूद कुछ नहीं कर पाए ,क्या वकील साहब अब कहीं इंसाफ नहीं है ? " रोते रोते उसने मेरे सामने अपनी बहन की दहेज़ हत्या में अदालत के निर्णय पर नाखुशी ज़ाहिर करते हुए फूट-फूटकर रोना आरम्भ कर दिया ,मैंने मामले के एक-एक बिंदु के बारे में उससे समझा-बुझाकर जानने की कोशिश की. किसी तरह उसने अपनी बहन की शादी से लेकर दहेज़-हत्या तक व् फिर अदालत में चली सारी कार्यवाही के बारे में बताया ,वो बहन के पति व् ससुर को ,पुलिस वालों को ,अपने वकील को ,निर्णय देने वाले न्यायाधीश को कुछ न कुछ कहे जा रहा था और रोये जा रहा था और मुझे गुस्सा आये जा रहा था उसकी बेबसी पर ,जो उसने खुद ओढ़ रखी थी . जो भी उसने बताया ,उसके अनुसार ,उसकी बहन को उसके पति व् ससुर ने कई बार प्रताड़ित कर घर से निकाल दिया था और तब ये उसे उसकी विनती पर घर ले आये थे ,फिर बार-बार पंचायतें कर उसे वापस ससुराल भेजा जाता रहा और उसका परिणाम यह रहा कि एक दिन वही हो गया जिसका सामना आज तक बहुत सी बेटियों-बहनो को करना पड़ा है और करना पड़ रहा है . ''दहेज़ हत्या'' कोई एक दिन में ही नहीं हो जाती उससे पहले कई दिनों,हफ्तों,महीनो तो कभी सालों की प्रताड़ना लड़की को झेलनी पड़ती है और बार बार लड़के वालों की मांगों का कटोरा उसके हाथों में दे ससुराल वालों द्वारा उसे मायके के द्वार पर टरका दिया जाता है जैसे वह कोई भिखारन हो और मायके वालों द्वारा, जिनकी गोद में वो खेल-कूदकर बड़ी हुई है ,जिनसे यदि अपना पालन-पोषण कराया है तो उनकी अपनी हिम्मत से बढ़कर सेवा-सुश्रुषा भी की है,भी कोई प्यार-स्नेह का व्यव्हार उसके साथ नहीं किया जाता ,समाज के विवाह की अनिवार्यता के नियम का पालन करते हुए जैसे-तैसे बेटी का ब्याह कर उसके अधिकांश मायके वाले उसके विवाह पर उसकी समस्त ज़िम्मेदारियों से मुक्ति मान लेते हैं और ऐसे में अगर उसके ससुराल वाले ,जो कि उन मायके वालों ने ही चुने हैं न कि उनकी बेटी ने ,अपनी कोई अनाप-शनाप ''डिमांड'' रख उनकी बेटी को ही उनके घर भेज देते हैं तो वह उनके लिए एक आपदा सामान हो जाती है और फिर वे उससे मुक्ति का नया हथियार उठाते हैं और ससुराल वालों की मांग कभी थोड़ी तो कभी पूरी मान ''कुत्ते के मुंह में खून लगाने के समान ''अपनी बेटी को फिर बलि का बकरा बनाकर वहीँ धकिया देते हैं . वैसे जैसे जैसे हमारा समाज विकास कर रहा है कुछ परिवर्तन तो आया है किन्तु इसका बेटी को फायदा अभी नज़र नहीं आ रहा है क्योंकि मायके वालों में थोड़ी हिम्मत तो अब आयी है .उन्होंने अब बेटी पर ससुराल में हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठानी तो अब शुरू की है जबकि पहले बेटी को उसकी ससुराल में परेशान होते हुए जानकर भी वे इसे बेटी की और घर की बदनामी के रूप में ही लेते थे और चुपचाप होंठ सीकर बेटी को ससुरालियों की प्रताड़ना सहने को मजबूर करते थे और इस तरह अनजाने में बेटी को मारने में उसके ससुरालियों का सहयोग ही करते थे ,कर तो आज भी वैसे वही रहे हैं बस आज थोड़ा बदलाव है अब लड़की वालों व् ससुरालवालों के बीच में कहीं पंचायतें हैं तो कहीं मध्यस्थ हैं और दोनों का लक्ष्य वही ....लड़की को परिस्थिति से समझौता करने को मजबूर करना और उसे उस ससुराल में मिल-जुलकर रहने को विवश करना जहाँ केवल उसका खून चूसने -निचोड़ने के लिए ही पति-सास-ससुर-ननद-देवर बैठे हैं . आज इसी का परिणाम है कि जो लड़की थोड़ी सी भी अपने दम पर समाज में खड़ी है वह शादी से बच रही है क्योंकि घुटने को वो,मरने को वो ,सबका करने को वो और उसको अगर कुछ हो जाये तो कोई नहीं ,न मायका उसका न ससुराल ,ससुरालियों को बहू के नाम पर केवल दौलत प्यारी और मायके वालों को बेटी के नाम पर केवल इज़्ज़त...प्यारी...ससुरालिए तो पैसे के नाम पर उसे उसके मायके धकिया देंगे और मायके वाले उसे मरने को ससुराल ,कोई उसे रखने को तैयार नहीं जबकि कहने को ''नारी हीन घर भूतों का डेरा ,यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते,रमन्ते तत्र देवता '' ऐसे पवित्र वाक्यों को सभी जानते हैं किन्तु केवल परीक्षाओं में लिखने व् भाषणों में बोलने के लिए ,अपने जीवन में अपनाने के लिए नहीं . बेटी को अगर ससुराल में कुछ हो जाये तो उसके मायके वाले दूसरों को ही कोसते हैं जो कि बहुत आसान है क्यों नहीं झांकते अपने गिरेबान में जो उनकी असलियत को उनके सामने एक पल में रख देगा .भला कोई बताये ,पति हो,सास हो ,ससुर हो,ननद-देवर-जेठ-पुलिस-वकील-जज कौन हैं ये आपकी बेटी के ? जब आप ही अपनी बेटी को आग में झोंक रहे हैं तो इन गैरों पर ऐसा करते क्या फर्क पड़ता है ? पहले खुद तो बेटी-बहन के प्रति इंसाफ करो तभी दूसरों से इंसाफ की दरकार करो .शादी करना अच्छी बात है लेकिन अगर बेटी की कोई गलती न होने पर भी ससुराल वाले उसके साथ अमानवीय बर्ताव करते हैं तो उसका मायका तो उससे दूर नहीं होना चाहिए ,कम से कम बेटी को ऐसा तो नहीं लगना चाहिए कि उसका इस दुनिया में कोई भी नहीं है .केवल दहेज़ हत्या हो जाने के बाद न्यायालय की शरण में जाना तो एक मजबूरी है ,कानून ने आज बेटी को बहुत से अधिकार दिए हैं लेकिन उनका साथ वो पूरे मन से तभी ले सकती है जब उसके अपने उसके साथ हो .अब ऐसे में एक बाप को ,एक भाई को ये तो सोचना ही पड़ेगा कि इन्साफ की ज़रुरत बेटी को कब है -मरने से पहले या मरने के बाद ?
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
अभी अभी प्राप्त समाचारों के अनुसार उत्तर प्रदेश के आगरा में अपार्टमेंट की चौथी मंजिल की बालकनी से गिरने पर महिला की मौत हो गई। घटना को देख मौके पर लोगों की भीड़ जमा हो गई। इस दौरान अपार्टमेंट के लोगों ने महिला के पति सहित तीन लोगों को मौके से दबोच लिया है। महिला अपार्टमेंट में किसी व्यक्ति के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही थी. महिला की उम्र करीब 30 साल थी और उसका नाम रितिका सिंह था. वह फिरोजाबाद के विपुल अग्रवाल के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही थी। महिला का उसके पति आकाश गौतम से विवाद चल रहा था। बताया गया है कि आज आकाश अपने दो परिचितों और परिवार की दो महिलाओं के साथ फ्लैट पर आया था। जिसके बाद आपस में मारपीट हो गई। जिसका यह अंजाम सामने आया है.
यह केवल एक घटना नहीं है बल्कि आज ये रोजमर्रा की जिंदगी में अमल में आ चुकी है. नारी सशक्तिकरण के इस दौर में नारी शक्ति से भी ऊपर का स्वरुप धारण करती जा रही है. पहले कभी होते थे, या अब भी होते होंगे पुरुषों के विवाहेत्तर सम्बन्ध, पर अब स्त्रियों ने भी बाजी मारी है और रोशन किया है स्त्रियों का नाम भी विवाहेत्तर सम्बन्धों की गली में, आज समाज में ऐसी स्त्रियाँ भी चर्चा में बनी हुई हैं जिनका अपने पहले पति से सम्बन्ध विच्छेद नहीं होता और वे दूसरे के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहना आरंभ कर देती हैं. यही नहीं, जो जो कार्य पहले पुरुष करते थे, आज स्त्रियाँ उन किसी भी कार्य में पीछे नहीं रहना चाहती हैं. पहले पुरुष अपनी पत्नी से चिढ़कर उसे जिंदगी भर के लिए खुद की ही पत्नी का जीवन जीने के लिए बाध्य करने के लिए आसानी से तलाक द्वारा आजादी नहीं देता था, आज वह स्त्री कर रही है. पति की संपत्ति हथियाने और स्वयं के नाम के साथ समाज में पति का नाम जुड़ा रखने के लिए तलाक की प्रक्रिया को निस्तारण तक पहुंचने ही नहीं दे रही है और क्योंकि भारतीय कानून का स्त्रियों के प्रति नर्म रुख रहा है तो ऐसे में पत्नी से तलाक मिलना भी पुरूषों के लिए टेढ़ी खीर हो गया है.
ऐसे में, रितिका सिंह का यह मामला कानून की नजर में भले ही रितिका के पक्ष में जाए किन्तु भारतीय समाज और संस्कृति को देखते हुए रितिका सिंह को अतिक्रमण कारी ही कहा जाएगा और यही कहा जाएगा कि आज हम भले ही आधुनिकीकरण के दौर में प्रवेश कर चुके हों, किंतु समाज के द्वारा निर्मित मानकों की अवहेलना लक्ष्मण रेखा पार करने के रूप में यदि माता सीता जैसी पतिव्रता नारी पर भारी पड़ सकती है तो समाज की अन्य नारियों की तो बिसात ही क्या है? भारतीय संस्कृति में पहले तो नारी के दूसरे विवाह की संकल्पना ही नहीं थी, अब अगर कानून ने दूसरे विवाह का भारतीय नारी को अधिकार दिला ही दिया है तो उसका मतलब ऐसे नाजायज संबंधों की ओर बढ़ना तो बिल्कुल भी नहीं है. कम से कम पहले विवाह के कानूनी रूप से पूरी तरह खत्म होने तक तो समाज के रीति रिवाजों का संस्कारों का सम्मान रखना ही चाहिए.
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली)
आज भारत में बहुत परिवर्तन आये हैं. बहुत से परिवर्तन दुःखद हैं तो कुछ सुखद भी हैं और उन परिवर्तनों में सबसे बड़े परिवर्तन ये हैं कि आज भारत का वह समाज, जो हमेशा से हमारे आदिवासी समाज के अधिकार छीनने का कार्य करता था, आज वह उसे समाज में अग्रणी का अधिकार देने के लिए आगे आ रहा है और यही नहीं कि आदिवासी समाज को बल्कि आदिवासी समाज की महिला को देश का सर्वोच्च पद देने की तैयारी की जा रही है और वह भी उस दल द्वारा, जिसने कभी उच्च पद के लिए अपने दल की ही बहुत सी श्रेष्ठ व्यक्तित्व की धनी महिलाओं की अनदेखी की, वह भी मात्र इसलिए कि वे महिलाएं थी, पर आज ये परिवर्तन आ रहे हैं भले ही राजनीतिक लाभ लेने के लिए आ रहे हैं, किन्तु सुखद हैं क्योंकि इनसे सदियों से दबे कुचले आदिवासी समुदाय और महिलाओं को आगे बढ़कर अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सुअवसर प्राप्त हो रहे हैं. एक संघर्षशील महिला, आदिवासी समुदाय की महिला श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को एनडीए का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया गया है और जहां तक आज संसद में और भारतीय राज्यों की विधानसभाओं में एनडीए का प्रतिनिधित्व है, द्रौपदी मुर्मू जी का भारत का राष्ट्रपति चुना जाना लगभग तय है. ऐसे में, भले ही राजनीतिक लाभ के लिए, महिला सशक्तिकरण के एक और नए युग के आरंभ के लिए भारतीय जनता पार्टी, एनडीए का बहुत बहुत धन्यवाद और देश की आगामी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी और समस्त भारतीय महिलाओं को हार्दिक शुभकामनाएं.
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली)