शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

डिजिटल रेप

 


    देशभर में डिजिटल रेप की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं. दिल्ली से सटे नोएडा में आए दिन डिजिटल रेप के नए नए मामले सामने आ रहे हैं इसके साथ ही लोगों की जिज्ञासा बढ़ती जा रही है रेप के मामलों की इस नई शब्दावली में, हर ओर यह चर्चा है कि आखिर यह डिजिटल रेप होता क्या है? यह भी चर्चा में है कि ऑनलाइन रूप से कैसे रेप हो जाता है तो आइये आज आपको हम बताने जा रहे हैं डिजिटल रेप के बारे में. 

      नोएडा में हाल ही में डिजिटल रेप का एक मामला सामने आया है वहां पुलिस ने आरोपी को फेज -2 बस स्टैंड के पास से गिरफ्तार किया. आरोपी ने सात वर्ष की बच्ची के साथ डिजिटल रेप किया था. लोकल इंटेलिजेंस की जांच और सी सी टी वी फुटेज के आधार पर शुभम नाम का ये आरोपी पकड़ा गया. पीड़ित परिवार ने शिकायत की थी कि उनकी 7 वर्षीय बेटी दोपहर में गली में खेल रही थी तभी आरोपी टॉफी का लालच देकर उसे ले गया और  पास ही के एक मकान में ले जाकर उसके साथ गलत काम किया. पुलिस ने इसे डिजिटल रेप का मामला बताया तो यह शब्द चर्चाओं में आ गया. 

       शायद आपने इससे पहले कभी डिजिटल रेप के बारे में सुना नहीं होगा ? अगर नहीं तो हम आपको बताते हैं कि ये घृणित अपराध आखिर होता क्या है? कानून के जानकारों के मुताबिक डिजिटल रेप का मतलब यह नहीं कि, किसी लड़की या लड़के का शोषण ऑनलाइन रूप से जाल में फंसाकर किया जाए. यह शब्द दो शब्दों यानी 'डिजिटल' और 'रेप' से बना है. अंग्रेजी के 'डिजिट' का मतलब जहां अंक होता है. वहीं इंग्लिश डिक्शनरी के मुताबिक उंगली, अंगूठा, पैर की उंगली इन शरीर के अंगों को भी 'डिजिट' से संबोधित किया जाता है. यानी यह रेप की वो स्थिति है, जिसमें उंगली, अंगूठा या पैर की उंगली का इस्तेमाल किसी पीड़िता के नाजुक अंगों पर किया गया हो. डिजिटल रेप एक ऐसा घिनौना अपराध है, जिसमें बिना इजाजत के इंसान किसी के साथ अपनी उंगलियों या पैर के अंगूठे से पेनिट्रेशन करता हो.

     डिजिटल रेप के मामले में पहली बार पिछले साल सितंबर के महीने में उत्तर प्रदेश के नोएडा यानी गौतम बुद्ध नगर की जिला अदालत ने 65 साल के अली अकबर को डिजिटल रेप के मामले में दोषी करार दिया था. अली अकबर को उम्र कैद की सजा सुनाने से साथ 50 हजार का जुर्माना भी लगा था. ये भारत का पहला ऐसा डिजिटल रेप का मामला था, जिसमें आरोपी को उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी. इस घटना को 21 जनवरी 2019 को पश्चिम बंगाल निवासी 65 साल के अली अकबर ने अंजाम दिया था जो सलारपुर गांव में बेटी से मिलने आया था. उसी दौरान आरोपी ने पड़ोस में रहने वाली बच्ची को टॉफी देकर उसके साथ डिजिटल रेप किया था.  

डिजिटल रेप को लेकर कब बना कानून 

    निर्भया केस के बाद डिजिटल रेप शब्द सुनने को मिला. यौन उत्पीड़न की घटनाओं को रोकने के लिए जो कोशिशें हुईं उनमें डिजिटल रेप को अपराध माना गया. इसमें बताया गया है कि हाथ की उंगली या अंगूठे से जबरदस्ती पेनिट्रेशन करना भी यौन अपराध है. इसे सेक्शन 375 और पोक्सों एक्ट की श्रेणी में रखा गया. 2013 से पहले भारत में छेड़खानी या डिजिटल रेप को लेकर कोई ठोस कानून नहीं था लेकिन निर्भया रेप कांड के बाद डिजिटल रेप को भी पोक्सो एक्ट (POCSO Act) के अंदर शामिल किया गया. 

वर्तमान में डिजिटल रेप के कितने केस?

   नोएडा में बीते कुछ सालों में डिजिटल रेप के ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो नोएडा फेज - 3 थाना इलाके में ऐसी एक वारदात में 50 साल के मनोज की गिरफ्तारी हुई थी. नोएडा एक्सटेंशन में भी एक पिता पर पांच साल के बच्ची के साथ डिजिटल रेप करने का आरोप लगा था. इस मामले में बच्ची की मां ने शिकायत की थी. ग्रेनो वेस्ट के एक प्ले-स्कूल में भी ऐसी वारदात हुई थी जिसमें 3 साल की बच्ची का उत्पीड़न हुआ था.

            इस प्रकार यह तो अब साफ हो ही जाता है कि डिजिटल रेप कोई ऑनलाइन या इन्टरनेट रेप नहीं है. इस अपराध को 2013 के आपराधिक कानून संशोधन (Criminal Law amendment 2013) के माध्यम से भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) में शामिल किया गया, जिसे निर्भया अधिनियम (Nirbhaya Act) भी कहा जाता है. 

      साल 2013 के बाद बलात्कार शब्द को अब केवल सहवास तक ही सीमित नहीं रखा गया है. बल्कि अब एक महिला के मुंह, मूत्रमार्ग, योनि या गुदा में किसी भी हद तक प्रवेश को रेप की श्रेणी में शामिल किया गया है. निर्भया एक्ट का खंड-बी विशेष रूप से कहता है कि किसी भी हद तक प्रवेश, किसी भी वस्तु या शरीर का कोई हिस्सा, जो लिंग नहीं है, वो भी अब बलात्कार की परिभाषा के भीतर है.

आईपीसी की धारा 375 इस सम्बन्ध में क्या कहती है - 

एक व्यक्ति को "बलात्कार" करने का आरोपी कहा जाता है यदि वह-

(ए) एक महिला की योनि, मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में किसी भी हद तक अपने लिंग का प्रवेश करता है या उससे या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए कहता है; या

(बी) किसी महिला की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में किसी भी वस्तु या शरीर का कोई हिस्सा, जो लिंग नहीं है, प्रवेश करता है या उसे अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए मजबूर करता है; या

(सी) एक महिला के शरीर के किसी भी हिस्से में हेरफेर करता है ताकि ऐसी महिला की योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या शरीर के किसी भी हिस्से में प्रवेश हो सके या उससे या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए मजबूर हो; या(डी) एक महिला की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग पर अपना मुंह लगाता है या उससे या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए कहता है,

निम्नलिखित सात विवरणों में से किसी के अंतर्गत आने वाली परिस्थितियों में:

पहला- उसकी मर्जी के खिलाफ

दूसरा- उसकी मर्जी के बिना

तीसरा- उसकी सहमति से, जब उसकी सहमति उसे या किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसमें वह रुचि रखती है, मृत्यु या चोट के भय में डालकर प्राप्त की गई है.

चौथा- उसकी सहमति से, जब पुरुष जानता है कि वह उसका पति नहीं है और उसकी सहमति दी गई है क्योंकि वह मानती है कि वह एक और पुरुष है जिससे वह है या खुद को कानूनी रूप से विवाहित मानती है.

पांचवां- उसकी सम्मति से जब ऐसी सम्मति देते समय, मानसिक अस्वस्थता या नशे के कारण या उसके द्वारा व्यक्तिगत रूप से या किसी अन्य मूढ़तापूर्ण या हानिकारक पदार्थ के प्रशासन के कारण, वह उस की प्रकृति और परिणामों को समझने में असमर्थ है. जिस पर वह सहमति देती है.

छठा- उसकी सहमति से या उसके बिना, जब वह अठारह वर्ष से कम आयु की हो.

सातवीं- जब वह सहमति संप्रेषित करने में असमर्थ हो.


अब देखिए इसी सम्बन्ध में पॉक्सो एक्ट में क्या प्रावधान किया गया है - 

 दरअसल, POCSO (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस) एक्ट के तहत भी 'पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट' की इसी तरह की परिभाषा दी गई है.पॉक्सो (POCSO) की धारा 3 में 'पेनेट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट' को ऐसे परिभाषित किया गया है-

एक व्यक्ति को पेनेट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट करने का आरोपी कहा जाता है यदि-

(ए) वह अपना लिंग, किसी भी हद तक योनि, मुंह, मूत्रमार्ग या बच्चे की गुदा में प्रवेश करता है या बच्चे को अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए कहता है; या

(बी) वह किसी भी हद तक, किसी भी वस्तु या शरीर का कोई हिस्सा, जो लिंग नहीं है, बच्चे की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में डालता है या बच्चे को उसके या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए कहता है; या

(सी) वह बच्चे के शरीर के किसी भी हिस्से में हेरफेर करता है ताकि योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या बच्चे के शरीर के किसी भी हिस्से में प्रवेश हो सके या बच्चे को उसके या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए कहें; या

(डी) वह बच्चे के लिंग, योनि, गुदा, मूत्रमार्ग पर अपना मुंह लगाता है या बच्चे के साथ ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति से ऐसा करवाता है.

     पॉक्सो अधिनियम की धारा 3 के तहत ऐसे मामले में दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को न्यूनतम 7 वर्ष कारावास और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा दिए जाने का प्रावधान है. इसके अलावा, पॉक्सो अधिनियम धारा 5 के तहत 'गंभीर यौन हमले' के लिए न्यूनतम 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की कठोर सजा का प्रावधान है, जिसमें एक बच्चे पर या 12 साल से कम उम्र के बच्चे पर हमले के बार-बार या कई कृत्य शामिल हैं.पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के तहत एक बच्चे के निजी अंगों को छूने के कार्य को यौन हमले का अपराध माना जाता है, जिसमें न्यूनतम 3 साल की सजा का प्रावधान है.

    और अब एक जुलाई 2024 को भारतीय दंड संहिता 1860 का नवीन रूप भारतीय न्याय संहिता 2023 के रूप में लागू होने जा रहा है जिसमें धारा 375 को धारा 63 में पूर्ण रूप से समाहित कर दिया गया है. 



द्वारा 

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

      

बुधवार, 24 जुलाई 2024

महिला मतलब नासमझ

 बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी से क्या आप सहमत हैं?



गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

राजनीति नारी का अपमान न करे

  भाजपा और अंधभक्त आज सत्ता के नशे में चूर नजर आ रहे हैं और इसका जीता जागता प्रमाण वे स्वयं प्रस्तुत कर रहे हैं. विपक्ष के नेताओं को लेकर भाजपा के बड़े बड़े नेताओं से लेकर छुटभैये कार्यकर्ताओं द्वारा भी भारतीय संस्कृति और सभ्यता की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. अभी तक भाजपाइयों द्वारा राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को लेकर मात्र पप्पू और पिंकी शब्दावली का ही प्रयोग किया जा रहा था, किन्तु अपने बड़े नेताओं द्वारा इनके लिए असभ्य शब्दों का धड़ल्ले से इस्तेमाल किए जाने पर छुटभैये भाजपाइयों की भी ढीठ खुलती हुई नजर आ रही है. राहुल गांधी जी को लेकर तो अपशब्द भाजपा के शीर्ष से पहले ही जारी थे किंतु अब प्रियंका गांधी जी के भी चुनाव प्रचार में उतरने पर देश की सभ्यता संस्कृति की ठेकेदार बनने वाली भाजपा के कार्यकर्ताओं द्वारा प्रियंका गांधी जी के लिए जिन अपशब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है उसका लिया जाना भी एक सभ्य भारतीय अपने सपने में भी सोच नहीं सकता. 

    भारतीय संस्कृति में नारी का जो स्थान है उसे इतना भ्रष्ट स्वरुप कभी भी प्राप्त नहीं हुआ होगा, जितना बीजेपी के मौजूदा कार्यकाल में दिखाई दिया है. भारतीय संस्कृति में नारी को बहुत उच्च दर्जा प्रदान किया गया है - 

भारतीय संस्कृति में नारी का महत्व

       हर धर्म में महिला शक्‍त‍ि को सर्वोच्‍च स्‍थान द‍िया गया है। इस फेर में यहां तक कहा जाता है कि जहां नारी की पूजा नहीं होती वहां देवताओं का वास नहीं होता।

     भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- 'यत्र पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:। अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। महाभारत में कहा गया है कि जिस कुल में नारियों को उपेक्षा भाव से देखा जाता है उस कुल का सर्वनाश हो जाता है। शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि नारी नर की आत्मा का आधा भाग है। नारी के बिना नर का जीवन अधूरा है इस अधूरेपन को दूर करने और संसार को आगे चलाने के लिए नारी का होना जरूरी है। नारी को वैदिक युग में देवी का दर्जा प्राप्त था। नारी की स्थिति से समाज और देश के सांस्कृतिक और बौद्धिक स्तर का पता चलता है। यदि नारी को धर्म, समाज और पुरुष के नियमों में बांधकर रखा गया है तो उसकी स्थिति बदतर ही मानी जा सकती है।

अथर्ववेद का एक श्लोक है- 

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। 

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।।

जिस कुल में नारियों की पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण, दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं। नारी ही मां है और नारी ही सृष्टि। एक सृष्टि की कल्पना बगैर मां के नहीं की जा सकती है। मां अर्थात माता के रूप में नारी, धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। 

       वेदों में 'मां' को 'अंबा', 'अम्बिका', 'दुर्गा', 'देवी', 'सरस्वती', 'शक्ति', 'ज्योति', 'पृथ्वी' आदि नामों से संबोधित किया गया है। इसके अलावा 'मां' को 'माता', 'मात', 'मातृ', 'अम्मा', 'जननी', 'जन्मदात्री', 'जीवनदायिनी', 'जनयत्री', 'धात्री', 'प्रसू' आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है। सामवेद में एक प्रेरणादायक मंत्र मिलता है, जिसका अभिप्राय है, 'हे जिज्ञासु पुत्र! तू माता की आज्ञा का पालन कर, अपने दुराचरण से माता को कष्ट मत दे। अपनी माता को अपने समीप रख, मन को शुद्ध कर और आचरण की ज्योति को प्रकाशित कर।'

एक ब्रह्मा नैं शतरूपा रच दी, जबसे लागी सृष्टि हौण।'

अर्थात, यदि नारी नहीं होती तो सृष्टि की रचना नहीं हो सकती थी। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक सृष्टि की रचना करने में असमर्थ बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने नारी की रचना की, तभी से सृष्टि की शुरुआत हुई।

     हिंदू धर्म में देवियों की होती है पूजा. नवरात्रि पर्व में भाजपा नेतृत्व और भाजपाइयों द्वारा बढ़ चढ़ कर कन्या पूजन किया जाता है. अभी नवरात्रि पर्व पूर्ण हुए हैं और कन्या की देवी के रूप में हिन्दुओं द्वारा बहुत पैर छू छूकर पूजा की गई है. क्या देश पर प्राण न्यौछावर करने वाले प्रधानमंत्री स्व श्री राजीव गांधी जी की पुत्री प्रियंका गांधी एक पुत्री, एक देवी नहीं हैं? 

       सनातन वैदिक हिन्दू धर्म में जहां पुरुष के रूप में देवता और भगवानों की पूजा-प्रार्थना होती थी वहीं देवी के रूप में मां सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा का वर्णन मिलता है। वैदिक काल में नारियां मां, देवी, साध्वी, गृहिणी, पत्नी और बेटी के रूप में ससम्मान पूजनीय मानी जाती थीं। प्रियंका गांधी एक बेटी हैं, बहन हैं, पत्नी हैं, बहू हैं, दो बच्चों की माँ हैं क्या हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार वे ससम्मान पूजनीय की श्रेणी में नहीं आती? नहीं आती तो क्यूँ नहीं आती? 

       हिंदू धर्म में परम्परा के अनुसार धन की देवी 'लक्ष्मी मां', ज्ञान की देवी 'सरस्वती मां' और शक्ति की देवी 'दुर्गा मां' मानीं गई हैं। नवरात्रों में 'मां' को नौ विभिन्न रूपों में पूजा जाता है और प्रियंका गांधी इन तीनों ही स्वरुपों मे सम्मानित और पूजनीय हैं पर भाजपा और इनके अनुयायी इनके लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल केवल इसलिए कर रहे हैं क्योंकि ये बीजेपी की नीतियों के खिलाफ और जनता जनार्दन पर भाजपा द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ बोल रही हैं, भाजपा और उसके अनुयायी नहीं सोच रहे हैं कि इस तरह से तुम न केवल अपने कुसंस्कार दिखा रहे हो बल्कि साथ ही, उनकी अभद्र शब्दावली केवल प्रियंका गांधी को ही अपमानित नहीं कर रही है बल्कि भाजपा और उसके अनुयायियों की माँ, बहन, पत्नी, बहू सहित सम्पूर्ण नारी जाति का अपमान कर रही है। 

     आज बीजेपी के राज में श्री राम के नाम पर सत्ता प्राप्ति की कोशिशें बीजेपी द्वारा की जा रही हैं और श्री राम के विषय में उनके नारी सम्मान को लेकर रावण वध तक कर दिए जाने की ही भावना को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया है. क्या भारत के पूर्व प्रधान मंत्री स्व राजीव गांधी जी की पुत्री और एक ऐसे प्रधानमंत्री की पुत्री जिन्होंने अपने प्राण देश के लिए न्यौछावर कर दिए हों, उन प्रियंका गांधी के साथ असभ्यता की हदें पार कर छींटाकशी किया जाना, प्रियंका गांधी जैसी भारतीय संस्कृति, सभ्यता के उच्च आदर्शों का पालन करने वाली नारी या किसी भी नारी के लिए ऐसे अपशब्दों का इस्तेमाल करने वाली भाजपा या इसके अनुयायियों द्वारा स्वयं को श्री राम के भक्तों की श्रेणी में रखना कहीं से भी सही कहे जाने की श्रेणी में रखा जाएगा? क्या राम नाम की परिभाषा का अ ब स द भी जानते या मानते हैं भाजपा और इसके अनुयायी? 

       भारत में सर्वव्यापी ईश्वर के रूप में पूजित श्री राम को तुलसीदास जी ने एक आदर्श पुरुष के रूप में चित्रित किया है, जिनमें सभी प्रकार के गुणों का समावेश है। वे करुणा, दया, क्षमा, सत्य, न्याय, सदाचार, साहस, धैर्य, और नेतृत्व जैसे गुणों के धनी हैं। वे एक आदर्श पुत्र, भाई, पति, राजा, और मित्र हैं। रामायण में श्रीराम अपने श्रीमुख से 'मां' को स्वर्ग से भी बढ़कर मानते हैं। वे कहते हैं-

'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।'

(अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।) श्री राम के आदर्शों का वर्णन करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान ही कहा जाएगा. श्री राम गुणों की खान हैं. श्री राम नारी का सम्मान करते हैं. माता सीता से विवाह के पश्चात श्री राम ने राजाओं के यहां कई पत्नियां होने का रिवाज कहते हुए उन्हें एक पत्नि व्रत का वचन प्रथम भेंट के रूप में देते हुए पत्नी के, नारी के सम्मान को उच्च स्तर प्रदान किया. श्री राम ने माता सीता का हरण करने पर रावण से किए जाने वाले युद्ध को अखिल जगत की नारी के सम्मान हेतु उठाया गया कदम बताया. 

         इस तरह, श्री राम मन्दिर की स्थापना का श्रेय लेकर भाजपा और उसके अनुयायी यदि यह सोचते हैं कि उन्हें नारी जगत का इस तरह से अपमान करने का अधिकार मिल गया है तो यह घोर पाप है, अखिल विश्व की नारी जाति के सम्मान हेतु एक वनवासी श्री राम के लिए यदि भाजपा और उसके अनुयायी जरा भी श्रद्धा रखते हैं तो उन्हें प्रियंका गांधी से स्वयं आगे बढ़कर क्षमा माँगनी चाहिए क्योंकि अब ये पाप प्रभु श्री राम नहीं होने देंगे क्योंकि अब तो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा उनकी प्राण प्रतिष्ठा भी की जा चुकी है. जय सियाराम जी की 🌹🙏🌹

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट

कैराना (शामली)

सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

दहेज कुप्रथा से बेटी को बचाने में सरकार और कानून असफल

 


आजकल रोज समाचारपत्रों में महिलाओं की मौत के समाचार सुर्खियों में हैं जिनमे से 90 प्रतिशत समाचार दहेज हत्याओं के हैं. जहां एक ओर सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए गाँव और तहसील स्तर पर "मिशन शक्ति" कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों की जानकारी न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं द्वारा मुफ्त में उपलब्ध करायी जा रही है, सरकारी आदेशों के मुताबिक परिवार न्यायालयों में महिला के पक्ष को ही ज्यादा मह्त्व दिया जाता है वहीं सामाजिक रूप से महिला अभी भी कमजोर ही कही जाएगी क्योंकि बेटी के विवाह में दिए जाने वाली "दहेज की कुरीति" पर नियंत्रण लगाने में सरकार और कानून दोनों ही अक्षम रहे हैं.  

        एक ऐसा जीवन जिसमे निरंतर कंटीले पथ पर चलना और वो भी नंगे पैर सोचिये कितना कठिन होगा पर बेटी ऐसे ही जीवन के साथ इस धरती पर आती है .बहुत कम ही माँ-बाप के मुख ऐसे होते होंगे जो ''बेटी पैदा हुई है ,या लक्ष्मी घर आई है ''सुनकर खिल उठते हों .

                 'पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी ,

                उम्मीदों का बवंडर उसी पल में थम गया .''

बचपन से लेकर बड़े हों तक बेटी को अपना घर शायद ही कभी अपना लगता हो क्योंकि बात बात में उसे ''पराया धन ''व् ''दूसरे घर जाएगी तो क्या ऐसे लच्छन [लक्षण ]लेकर जाएगी ''जैसी उक्तियों से संबोधित कर उसके उत्साह को ठंडा कर दिया जाता है .ऐसा नहीं है कि उसे माँ-बाप के घर में खुशियाँ नहीं मिलती ,मिलती हैं ,बहुत मिलती हैं किन्तु ''पराया धन '' या ''माँ-बाप पर बौझ '' ऐसे कटाक्ष हैं जो उसके कोमल मन को तार तार कर देते हैं .ऐसे में जिंदगी गुज़ारते गुज़ारते जब एक बेटी का ससुराल में पदार्पण होता है तब उसके जीवन में उस दौर की शुरुआत होती है जिसे हम अग्नि-परीक्षा कह सकते हैं                  इस तरह माँ-बाप के घर नाजुक कली से फूल बनकर पली-बढ़ी बेटी को ससुराल में आकर घोर यातना को सहना पड़ता है. दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार दहेज लेने, देने या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। दहेज के लिए उत्पीड़न करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए जो कि पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा सम्पत्ति अथवा कीमती वस्तुओं के लिए अवैधानिक मांग के मामले से संबंधित है, के अन्तर्गत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। धारा 406 के अन्तर्गत लड़की के पति और ससुराल वालों के लिए 3 साल की कैद अथवा जुर्माना या दोनों, यदि वे लड़की के स्त्रीधन को उसे सौंपने से मना करते हैं।

       यदि किसी लड़की की विवाह के सात साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में मौत होती है और यह साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के अन्तर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।

     दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा-3 के अनुसार - 

    दहेज लेने या देने का अपराध करने वाले को कम से कम पाँच वर्ष के कारावास साथ में कम से कम पन्द्रह हजार रूपये या उतनी राशि जितनी कीमत उपहार की हो, इनमें से जो भी ज्यादा हो, के जुर्माने की सजा दी जा सकती है लेकिन शादी के समय वर या वधू को जो उपहार दिया जाएगा और उसे नियमानुसार सूची में अंकित किया जाएगा वह दहेज की परिभाषा से बाहर होगा।

धारा 4 के अनुसार - 

दहेज की मांग के लिए जुर्माना-

       यदि किसी पक्षकार के माता पिता, अभिभावक या रिश्तेदार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दहेज की मांग करते हैं तो उन्हें कम से कम छः मास और अधिकतम दो वर्षों के कारावास की सजा और दस हजार रूपये तक जुर्माना हो सकता है।

    हमारा दहेज़ कानून दहेज़ के लेन-देन को अपराध घोषित करता है किन्तु न तो वह दहेज़ का लेना रोक सकता है न ही देना क्योंकि हमारी सामाजिक परम्पराएँ हमारे कानूनों पर आज भी हावी हैं .स्वयं की बेटी को दहेज़ की बलिवेदी पर चढाने वाले माँ-बाप भी अपने बेटे के विवाह में दहेज़ के लिए झोले लटकाए घूमते हैं, किन्तु जिस तरह दहेज़ के भूखे भेड़ियों की निंदा की जाती है उस तरह दहेज के दानी कर्णधारों की आलोचना क्यूँ नहीं की जाती है. 

      जब हमारे कानून ने दहेज के लेन और देन दोनों को अपराध घोषित किया है तो जब भी कोई दहेज हत्या का केस कोर्ट में दायर किया जाता है तो बेटी के सास ससुर के साथ साथ बेटी के माता पिता पर केस क्यूँ नहीं चलाया जाता है. हमारे समाज में बेटी की शादी किया जाना जरूरी है किन्तु क्या बेटी की शादी का मतलब उसे इस दुष्ट संसार में अकेले छोड़ देना है. बेटी के सास ससुर बहू को अपने बेटे के लिए ब्याह कर अपने घर लाते हैं वे उसे पैदा थोड़े ही करते हैं किन्तु जो माँ बाप उसे पैदा करते हैं वे उसे कैसे ससुराल में दुख सहन करने के लिए अकेला छोड़ देते हैं. आज तक कितने ही मामले ऐसे सामने आए हैं जिनमें दहेज के लोभी ससुराल वालों से तंग आकर बहू ने ससुराल में आत्महत्या कर ली और उस आत्महत्या की जिम्मेवारी भी ससुरालवालों पर डालकर केवल उन्हीं पर केस दर्ज किया गया और न्यायालयों द्वारा उन्हें ही सजा सुनाई गई जबकि ससुराल में बहुओं द्वारा आत्महत्या का एक पक्ष यह भी है कि जब मायके वालों ने भी साथ देने से हाथ खड़े कर दिए तो उस बहू /बेटी के आगे अपनी जिंदगी के ख़त्म करने के अलावा कोई रास्ता न बचने पर उसने आत्महत्या जैसे खौफनाक कदम को उठाने का फैसला किया और ऐसे में जितने दोषी ससुराल वाले होते हैं उतने ही दोषी बहू/बेटी के मायके वाले भी होते हैं किन्तु वे बेचारे ही बने रहते हैं. 

         बेटी को उसके ससुराल में खुश दिखाने का दिखावा स्वयं बेटी पर कितना भारी पड़ सकता है इसका अंदाजा हमारे समाज में निश दिन आने वाली दहेज हत्या या बहू द्वारा आत्महत्याओं की खबरें हैं. जिन पर रोक लगाने के लिए सरकार और कानून से भी आगे बेटी के माँ बाप को ही आना होगा और उन्हें यह समझना होगा कि बेटी की शादी जरूरी है किन्तु उसका साथ छोड़ना जरूरी नहीं है. यदि ससुराल वाले बेटी को दहेज के लिए प्रताडित करते हैं, तंग करते हैं तो अपनी बेटी को अपने घर वापस लाकर जिंदगी दीजिए और तब कानून की शरण में जाकर उसे न्याय दिलाईये, यह नहीं कि पहले ससुराल वालों की प्रताड़ना से बचाने के लिए उनकी गलत मांगों को पूरा करते रहें और फिर उनके द्वारा बेटी की हत्या कर दिए जाने पर उन्हें सजा दिलाएं और मृत पुत्री को न्याय क्योंकि मृत्यु के बाद जब शरीर से आत्मा मुक्त हो जाती है तो बेटी को दुख में अकेले छोड़ देना पुत्री के माता पिता के भी पाप में ही आता है और जब तक बेटी को अपने माता पिता का ऐसा मजबूत साथ नहीं मिल जाता है तब तक बेटी का जीवन बचाने में वास्तव में सरकार और कानून भी असफल ही नजर आता है. 

                शालिनी कौशिक

                       एडवोकेट 

                 कैराना (शामली)