गुरुवार, 11 अगस्त 2022

भारतीय मंदिरों में पत्थर पर विज्ञान श्रंखला--- कम्प्यूटर और कीबोर्ड---

 भारतीय मंदिरों में पत्थर पर विज्ञान श्रंखला---

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कम्प्यूटर और कीबोर्ड---
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1400 साल पहले, पल्लव राजा नरसिंह द्वितीय दृारा निर्मित...
लालगिरी मंदिर में, एक कम्प्यूटर और कीबोर्ड के साथ, पत्थर की दीवार पर एक मूर्ति उकेरी गई है...!
तब ये आधुनिक बिजली भी नहीं थी...ये आधुनिक तकनीकी यंत्र भी नहीं थे..!
उन्होंने इस की कल्पना किस तरह की होगी...?!
देखने से पूरी तरह स्पष्ट होता है कि यह एक हाईटेक कंट्रोल रूम या किसी उन्नत अंतरिक्ष-यान का सटीक चित्रण किया गया है...!
🚩सत्य सनातन धर्म की जय 🚩व्हाट्स एप से -
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गुरुवार, 21 जुलाई 2022

दहेज - इकलौती पुत्री की आग की सेज

 


 एक ऐसा जीवन जिसमे निरंतर कंटीले पथ पर चलना और वो भी नंगे पैर सोचिये कितना कठिन होगा पर बेटी ऐसे ही जीवन के साथ इस धरती पर आती है .बहुत कम ही माँ-बाप के मुख ऐसे होते होंगे जो ''बेटी पैदा हुई है ,या लक्ष्मी घर आई है ''सुनकर खिल उठते हों .
  'पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी ,
                उम्मीदों का बवंडर उसी पल में थम गया .''

बचपन से लेकर बड़े होने तक बेटी को अपना घर शायद ही कभी अपना लगता हो क्योंकि बात बात में उसे ''पराया धन ''व् ''दूसरे  घर जाएगी तो क्या ऐसे लच्छन [लक्षण ]लेकर जाएगी ''जैसी उक्तियों से संबोधित कर उसके उत्साह को ठंडा कर दिया जाता है .ऐसा नहीं है कि उसे माँ-बाप के घर में खुशियाँ नहीं मिलती ,मिलती हैं ,बहुत मिलती हैं किन्तु ''पराया धन '' या ''माँ-बाप पर बौझ '' ऐसे कटाक्ष हैं जो उसके कोमल मन को तार तार कर देते  हैं .ऐसे में जिंदगी गुज़ारते गुज़ारते जब एक बेटी और विशेष रूप से इकलौती बेटी का ससुराल में पदार्पण होता है तब उसके जीवन में और अधिकांशतया  इकलौती पुत्री के जीवन में उस दौर की शुरुआत होती है जिसे हम अग्नि-परीक्षा कह सकते हैं .
               एक तो पहले ही बेटे के परिवार वाले बेटे पर जन्म से लेकर उसके विवाह तक पर किया गया खर्च बेटी वाले से वसूलना चाहते हैं उस पर यदि बेटी इकलौती हो तब तो उनकी यही सोच हो जाती है कि वे अपना पेट तक काटकर उन्हें दे दें .इकलौती बेटी को बहू बनाने  वाले एक परिवार के  सामने जब बेटी के पिता के पास किसी ज़मीन के 10-12 लाख रूपए आये तो उनके लालची मन को पहले तो ये हुआ कि ये  अपनी बेटी को स्वयं देगा और जब उन्होंने कुछ समय देखा कि बेटी को उसमे से कुछ नहीं दिया तो कुछ समय में ही उन्होंने अपनी बहू को परेशान करना शुरू कर दिया.हद तो यह कि बहू के लिए अपने बेटे से कहा ''कि इसे एक बच्चा गोद में व् एक पेट में डालकर इसके बाप के घर भेज दे .''उनके मन कि यदि कहूं तो यही थी कि बेटी का होना इतना बड़ा अपराध था जो उसके मायके वालों ने किया था कि अब बेटी की शादी के बाद वे पिता ,माँ व् भाई बस बेटी के ससुराल की ख़ुशी ही देख सकते थे और वह भी अपना सर्वस्व अर्पण करके.
     एक मामले में पांच भाइयों की अकेली बहन को दहेज़ की मांग के कारण बेटे के पास न भेजकर सास ने  अपनी ही सेवा में रखा जबकि सास कि ऐसी कोई स्थिति  नहीं थी कि उसे सेवा करवाने की आवश्यकता हो.ऐसा नहीं कि इकलौती बेटी के साथ अन्याय केवल इसी हद तक सीमित रहता हो बेटे वालों की भूख बार बार शांत करने के बावजूद बेटी के विवाह में 12  लाख रूपए जेवर और विवाह के बाद बेटी की ख़ुशी के लिए फ्लैट देने के बावजूद इकलौती बेटी को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझा जाता है और उच्च शिक्षित होते हुए भी उसके माँ-बाप ससुराल वालों के आगे लाचार से फिरते हैं और उन्हें बेटी के साथ दरिंदगी का पूरा अवसर देते हैं और ये दरिंदगी इतनी हद तक भी बढ़ जाती है कि या तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है या वह स्वयं ही मौत को गले लगा लेती है क्योंकि एक गुनाह तो उसके माँ-बाप का है कि उन्होंने बेटी पैदा की और दूसरा गुनाह जो कि सबसे बड़ा है कि वह ही वह बेटी है.
                 इस तरह माँ-बाप के घर नाजुक कली से फूल बनकर पली-बढ़ी इकलौती बेटी जिसे इकलौती होने के कारण अतुलनीय स्नेह प्राप्त होता है ससुराल में आकर घोर यातना को सहना पड़ता है .हमारा दहेज़ कानून दहेज़ के लेन-देन को अपराध घोषित करता है किन्तु न तो वह दहेज़ का लेना रोक सकता है न ही देना क्योंकि हमारी सामाजिक परम्पराएँ हमारे कानूनों पर आज भी हावी हैं .स्वयं की बेटी को दहेज़ की बलिवेदी पर चढाने वाले माँ-बाप भी अपने बेटे के विवाह में दहेज़ के लिए झोले लटकाए घूमते हैं .जिस तरह दहेज़ के भूखे भेड़िये निंदा के पात्र हैं उसी तरह सामाजिक बहिष्कार के भागी हैं दहेज़ के दानी जो इनके मुहं पर दहेज़ का खून लगाते हैं और अपनी बेटी के लिए आग की सेज सजाते हैं .
                शालिनी कौशिक
                    एडवोकेट 



मंगलवार, 19 जुलाई 2022

नारी......... का नाम

 





निकल जाओ मेरे घर से

एक पुरुष का ये कहना

अपनी पत्नी से

आसान

बहुत आसान

किन्तु

क्या घर बनाना

उसे बसाना

सीखा कभी

पुरुष ने

पैसा कमाना

घर में लाना

क्या मात्र

पैसे से बनता है घर

नहीं जानता

घर

ईंट सीमेंट रेत का नाम नहीं

बल्कि

ये वह पौधा

जो नारी के त्याग, समर्पण ,बलिदान

से होता है पोषित

उसकी कोमल भावनाओं से

होता पल्लवित

पुरुष अकेला केवल

बना सकता है

मकान

जिसमे कड़ियाँ ,सरिये ही

रहते सिर पर सवार

घर

बनाती है नारी

उसे सजाती -सँवारती है

नारी

उसके आँचल की छाया

देती वह संरक्षण

जिसे जीवन की तप्त धूप

भी जला नहीं पाती है

और नारी

पहले पिता का

फिर पति का

घर बसाती जाती है

किन्तु न पिता का घर

और न पति का घर

उसे अपना पाता

पिता अपने कंधे से

बोझ उतारकर

पति के गले में डाल देता

और पति

अपनी गर्दन झुकते देख

उसे बाहर फेंक देता

और नारी

रह जाती

हमेशा बेघर

कही जाती

बेचारी

जिसे न मिले

जगह उस बगीचे में

जिसकी बना आती वो क्यारी- क्यारी .


शालिनी कौशिक
एडवोकेट 


रविवार, 17 जुलाई 2022

बेटी को इंसाफ़ - मरने से पहले या मरने के बाद

 


   '' वकील साहब '' कुछ करो ,हम तो लुट  गए ,पैसे-पैसे को मोहताज़ हो गए ,हमारी बेटी को मारकर वो तो बरी हो गए और हम .....तारीख दर तारीख अदालत के सामने गुहार लगाने के बावजूद कुछ नहीं कर पाए ,क्या वकील साहब अब कहीं इंसाफ नहीं है ? " रोते रोते उसने मेरे सामने अपनी बहन की दहेज़ हत्या में अदालत के निर्णय पर नाखुशी ज़ाहिर करते हुए फूट-फूटकर रोना आरम्भ कर दिया ,मैंने मामले के एक-एक बिंदु के बारे में उससे समझा-बुझाकर जानने की कोशिश की. किसी तरह उसने अपनी बहन की शादी से लेकर दहेज़-हत्या तक व् फिर अदालत में चली सारी कार्यवाही के बारे में बताया ,वो बहन के पति व् ससुर को ,पुलिस वालों को ,अपने वकील को ,निर्णय देने वाले न्यायाधीश को कुछ न कुछ कहे जा रहा था और रोये जा रहा था और मुझे गुस्सा आये जा रहा था उसकी बेबसी पर ,जो उसने खुद ओढ़ रखी थी .             जो भी उसने बताया ,उसके अनुसार ,उसकी बहन को उसके पति व् ससुर ने कई बार प्रताड़ित कर घर से निकाल दिया था और तब ये उसे उसकी विनती पर घर ले आये थे ,फिर बार-बार पंचायतें कर उसे वापस ससुराल भेजा जाता रहा और उसका परिणाम यह रहा कि एक दिन वही हो गया जिसका सामना आज तक बहुत सी बेटियों-बहनो को करना पड़ा है और करना पड़ रहा है .             ''दहेज़ हत्या'' कोई एक दिन में ही नहीं हो जाती उससे पहले कई दिनों,हफ्तों,महीनो तो कभी सालों की प्रताड़ना लड़की को झेलनी पड़ती है और बार बार लड़के वालों की मांगों का कटोरा उसके हाथों में दे ससुराल वालों द्वारा उसे मायके के द्वार पर टरका दिया जाता है जैसे वह कोई भिखारन हो और मायके वालों द्वारा, जिनकी गोद में वो खेल-कूदकर बड़ी हुई है ,जिनसे यदि अपना पालन-पोषण कराया है तो उनकी अपनी हिम्मत से बढ़कर सेवा-सुश्रुषा भी की है,भी कोई प्यार-स्नेह का व्यव्हार उसके साथ नहीं किया जाता ,समाज के विवाह की अनिवार्यता के नियम का पालन करते हुए जैसे-तैसे बेटी का ब्याह कर उसके अधिकांश मायके वाले उसके विवाह पर उसकी समस्त ज़िम्मेदारियों से मुक्ति मान लेते हैं और ऐसे में अगर उसके ससुराल वाले ,जो कि उन मायके वालों ने ही चुने हैं न कि उनकी बेटी ने ,अपनी कोई अनाप-शनाप ''डिमांड'' रख उनकी बेटी को ही उनके घर भेज देते हैं तो वह उनके लिए एक आपदा सामान हो जाती है और फिर वे उससे मुक्ति का नया हथियार उठाते हैं और ससुराल वालों की मांग कभी थोड़ी तो कभी पूरी मान ''कुत्ते के मुंह में खून लगाने के समान ''अपनी बेटी को फिर बलि का बकरा बनाकर वहीँ धकिया देते हैं .               वैसे जैसे जैसे हमारा समाज विकास कर रहा है कुछ परिवर्तन तो आया है किन्तु इसका बेटी को फायदा अभी नज़र नहीं आ रहा है क्योंकि मायके वालों में थोड़ी हिम्मत तो अब आयी है .उन्होंने अब बेटी पर ससुराल में हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठानी तो अब शुरू की है जबकि पहले बेटी को उसकी ससुराल में परेशान होते हुए जानकर भी वे इसे बेटी की और घर की बदनामी के रूप में ही लेते थे और चुपचाप होंठ सीकर बेटी को ससुरालियों की प्रताड़ना सहने को मजबूर करते थे और इस तरह अनजाने में बेटी को मारने में उसके ससुरालियों का सहयोग ही करते थे ,कर तो आज भी वैसे वही रहे हैं बस आज थोड़ा बदलाव है अब लड़की वालों व् ससुरालवालों के बीच में कहीं पंचायतें हैं तो कहीं मध्यस्थ हैं और दोनों का लक्ष्य वही ....लड़की को परिस्थिति से समझौता करने को मजबूर करना और उसे उस ससुराल में मिल-जुलकर रहने को विवश करना जहाँ केवल उसका खून चूसने -निचोड़ने के लिए ही पति-सास-ससुर-ननद-देवर बैठे हैं .               आज इसी का परिणाम है कि जो लड़की थोड़ी सी भी अपने दम पर समाज में खड़ी है वह शादी से बच रही है क्योंकि घुटने को वो,मरने को वो ,सबका करने को वो और उसको अगर कुछ हो जाये तो कोई नहीं ,न मायका उसका न ससुराल ,ससुरालियों को बहू के नाम पर केवल दौलत प्यारी और मायके वालों को बेटी के नाम पर केवल इज़्ज़त...प्यारी...ससुरालिए तो पैसे के नाम पर उसे उसके मायके धकिया देंगे और मायके वाले उसे मरने को ससुराल ,कोई उसे रखने को तैयार नहीं जबकि कहने को ''नारी हीन घर भूतों का डेरा ,यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते,रमन्ते तत्र देवता '' ऐसे पवित्र वाक्यों को सभी जानते हैं किन्तु केवल परीक्षाओं में लिखने व् भाषणों  में बोलने के लिए ,अपने जीवन में अपनाने के लिए नहीं .                       बेटी को अगर ससुराल में कुछ हो जाये तो उसके मायके वाले दूसरों को ही कोसते हैं जो कि बहुत आसान है क्यों नहीं झांकते अपने गिरेबान में जो उनकी असलियत को उनके सामने एक पल में रख देगा .भला कोई बताये ,पति हो,सास हो ,ससुर हो,ननद-देवर-जेठ-पुलिस-वकील-जज कौन हैं ये आपकी बेटी के ? जब आप ही अपनी बेटी को आग में झोंक रहे हैं तो इन गैरों पर ऐसा करते क्या फर्क पड़ता है ? पहले खुद तो बेटी-बहन के प्रति इंसाफ करो तभी दूसरों से इंसाफ की दरकार करो .शादी करना अच्छी बात है लेकिन अगर बेटी की कोई गलती न होने पर भी ससुराल वाले उसके साथ अमानवीय बर्ताव करते हैं तो उसका मायका तो उससे दूर नहीं होना चाहिए ,कम से कम बेटी को ऐसा तो नहीं लगना चाहिए कि उसका इस दुनिया में कोई भी नहीं है .केवल दहेज़ हत्या हो जाने के बाद न्यायालय की शरण में जाना तो एक मजबूरी है ,कानून ने आज बेटी को बहुत से अधिकार दिए हैं लेकिन उनका साथ वो पूरे मन से तभी ले सकती है जब उसके अपने उसके साथ हो .अब ऐसे में एक बाप को ,एक भाई को ये तो सोचना ही पड़ेगा कि इन्साफ की ज़रुरत बेटी को कब है -मरने से पहले या मरने के बाद ?

शालिनी कौशिक 

      एडवोकेट 


रविवार, 26 जून 2022

रितिका का प्यार और लिव-इन - भारतीय संस्कृति को धक्का



रितिका सिंह - एक फैशन ब्लॉगर - जिसे उसके पति आकाश गौतम ने आगरा में उसके अपार्टमेंट की चौथी मंजिल से फेंककर मार डाला और यह पति रितिका का खुद चुना हुआ था, प्रेम विवाह किया था दोनों ने और यही प्यार रितिका को फिर होता है विपुल अग्रवाल से, जो एक डेंटिस्ट का पति है और दस साल के बेटे का पिता और यह प्यार इतना परवान चढ़ता है कि वह पति आकाश गौतम से तलाक लिए बगैर और विपुल अग्रवाल का तलाक हुए बिना रहने लगती है विपुल अग्रवाल के साथ, जिसे आज के समय में आधुनिकीकरण का नाम दिया जाता है - 
"लिव -इन" 

प्रसिद्द समाजशास्त्री आर.एन.सक्सेना कहते हैं कि-
''ज्यों ज्यों एक समाज परंपरा से आधुनिकता की ओर बढ़ता है उसमे शहरीकरण ,औद्योगीकरण ,धर्म निरपेक्ष मूल्य ,जनकल्याण की भावना और जटिलता बढ़ती जाती है ,त्यों त्यों उसमे कानूनों और सामाजिक विधानों का महत्व भी बढ़ता जाता है .''
     सक्सेना जी के विचार और मूल्यांकन सही है  किन्तु यदि हम गहराई में जाते हैं तो हम यही पाते हैं कि मानव प्रकृति जो चल रहा है ,चला आ रहा है उसे एक जाल मानकर छटपटा उठती है और भागती है उस तरफ जो उसके आस पास न होकर दूर की चीज़ है क्योंकि दूर के ढोल सुहावने तो सभी को लगते हैं .हम स्वयं यह बात अनुभव करते हैं कि आज विदेशी भारतीय संस्कृति अपनाने के पीछे पागल हैं तो भारतीय विदेशी संस्कृति अपनाने की पीछे पागल हैं ,देखा जाये तो ये क्या है ,मात्र एक छटपटाहट परिवर्तन के लिए जो कि प्रकृति का नियम है जिसके लिए कहा ही गया है कि -
   ''change is the rule of nature .''
 और यह सांस्कृतिक परिवर्तन चलता ही रहता है क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह मानव ही इसलिए है क्योंकि उसकी एक संस्कृति है ,उसके पास संस्कृति है ,संस्कृति ही वह अनुपम धरोहर है जो मनुष्य को पशु से श्रेष्ठ घोषित करती है और इसी की सहायता से मानव पीढ़ी दर पीढ़ी प्रगति की ओर उन्मुख होता है .
       संस्कृति का अर्थ होता है विभिन्न संस्कारों के द्वारा सामूहिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति ,यह परिमार्जन की एक प्रक्रिया है .संस्कारों को संपन्न करके ही एक मानव सामाजिक प्राणी बनता है .
      राबर्ट बीरस्टीड लिखते हैं -''संस्कृति वह सम्पूर्ण जटिलता है जिसमे वे सभी वस्तुएं सम्मिलित हैं ,जिन पर हम विचार करते हैं ,कार्य करते हैं और समाज के सदस्य होने के नाते अपने पास रखते हैं .''

      बोगार्डस के अनुसार -''संस्कृति किसी समूह के कार्य करने व् सोचने की समस्त विधियां हैं .''
और भारतीय संस्कृति जिसकी पहचान ही है मानव में मानवीय मूल्यों दया,करुणा,भाईचारा .सहृदयता ,कोमलता [संवेदनाओं से भरा हुआ मन ],आपसी सद्भाव ,ममता ,समर्पण ,सरलता ,सहजता ,सरसता जैसे सुन्दर गुणों को व्यक्तित्व में समेटे होना ,यह वह संस्कृति है जो मानव को इंसान से देवता बना देती है ,यह वह संस्कृति है जो कहती है कि -
''धन से भोजन मिलता है -भूख नहीं ,
  धन से दवा मिलती है -स्वास्थ्य नहीं ,
  धन से साथी मिलते हैं -सच्चे मित्र नहीं ,
  धन से एकांत मिलता है -शांति नहीं ,
  धन से बिस्तर प्राप्त कर सकते हैं -नींद नहीं ,
  धन से आभूषण मिलते हैं -रूप नहीं ,
  धन से  सुख मिलता है -आनंद नहीं ,
    इसलिए धनवान होने से ज्यादा चरित्रवान होना आवश्यक है .''
श्री कृष्ण गोयल कहते हैं -''मनुष्य परमात्मा का अंश है ,उसमे परमात्मा के दिव्य ज्ञान ,गुण तथा शक्तियां सुप्त अवस्था में पड़े हैं अपने मन को ध्यान तथा एकाग्रता द्वारा परमात्मा का चिंतन करके दिव्यता को ग्रहण करना तथा प्रसारित करना भारतीय संस्कृति का लक्ष्य रहा है ,इसी कारण भारतीय संस्कृति की जड़ें बहुत गहरी तथा विस्तृत है .भारतीय संस्कृति आध्यात्म तथा मानवता पर आधारित है तथा चेतना के विकास द्वारा प्रेम ,समरसता  तथा मानवीय मूल्यों को सम्पूर्ण मान्यता प्रदान करती है .इसमें चरित्र तथा आंतरिक गुणों पर विशेष बल दिया गया है .मनुष्य के कर्म तथा व्यवहार में दिव्य गुण परिलक्षित होना सफल संस्कृति की ही देन है .''
    हमारी भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है आपसी भाईचारा और परिवार प्रेम और यही परिवार प्रेम मानव संस्कृति के एक महत्वपूर्ण पहलू की आवश्यकता को भी सामने लाता है जिसे विवाह कहते हैं .विवाह के बारे में बोगार्डस लिखते हैं -
      ''विवाह स्त्री पुरुष के पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने की एक संस्था है .''
 इसी संबंध में प्रभु व् अल्टेकर कहते हैं -
   ''पति-पत्नी एवं बच्चों से युक्त मानव ही पूर्ण मानव है .वेदों में अविवाहित व्यक्ति को अपवित्र माना गया है .धार्मिक दृष्टि से वह अपूर्ण है और संस्कारों में भाग लेने योग्य नहीं है .''
    विदेशी विद्वान जहाँ विवाह को यौन संबंधों का नियमन मात्र ही मानते हैं वहीँ भारतीय संस्कृति इसे एक पवित्र धार्मिक संस्कार के रूप में परिभाषित करती है .
     विदेशी विद्वान डब्ल्यू .एच.आर.रिवर्स के अनुसार -
   ''जिन साधनों द्वारा मानव समाज यौन संबंधों का नियमन करता है उन्हें विवाह की संज्ञा दी जा सकती है .''
 जबकि भारतीय संस्कृति जो कि मुख्यतः आर्य मान्यताओं को मानने वाली है और जिस मान्यता को हिन्दू मान्यता का स्वरुप आज प्रमुखतः प्राप्त हो चुका है वहां विवाह एक धार्मिक संस्कार है ,गृहस्थ आश्रम स्वर्ग है ,यहाँ विवाह धार्मिक कर्तव्य की पूर्ति ,पुत्र प्राप्ति ,पारिवारिक सुख ,सामाजिक एकता पितृ ऋण से मुक्ति ,पुरुषार्थों की पूर्ति आदि उद्देश्यों से किया जाता है .डॉ.कपाड़िया ने हिन्दू विवाह को परिभाषित करते हुए कहा है कि -
 ''हिन्दू विवाह एक संस्कार है ....हिन्दू विवाह के तीन उद्देश्य हैं -धार्मिक कार्यों की पूर्ति ,संतान प्राप्ति और यौन सुख .''
 ऐसे में एक नए तरह का सम्बन्ध सामने आता है न ढोल ,न नगाड़ा ,न किसी से रायशुमारी बस सिर्फ पहचान ..एक लड़का ..एक लड़की ..आधुनिकता की ओर बढ़ती सभ्यता के समय में स्वयं साथ रहने का फैसला करते हैं ,जिसमे किसी तीसरे का कोई हस्तक्षेप नहीं ,कोई स्थान नहीं ,कोई पारिवारिक जिम्मेदारी नहीं ,कोई सामाजिक दायित्व नहीं ,जब तक साथ रहना संभव हो रहे ,जब सम्बन्ध असहज हो गए ..हिंसक हो गए तब अलग हो गए ...भले ही साथ रहने से कोई भावनात्मक सम्बन्ध बने हों ,शारीरिक संबंध बने हों ,कोई दायित्व नहीं ,भले ही अलग होने से सम्बन्ध के साथ दिल के भी शीशे की तरह टुकड़े-टुकड़े हो गए हों ,कोई एहसास नहीं ...सिर्फ यही एहसास कि एक प्रयोग कर रहे थे ...सफल हो जाते तो पति-पत्नी की तरह ज़िंदगी गुजार देते और असफल रहे तो जैसे सफर पूरा होने पर ट्रेन के यात्री बिछड़ जाते हैं ऐसे ही बिछड़ गए ...और आज युवा इस सोच की राह पर आगे बढ़ रहा है .फिल्म अभिनेत्री ईशा देओल भी मानती हैं कि -
  ''शादी से पहले लगभग २ साल लिव इन में रहना ज़रूरी है .''
प्रसिद्द मॉडल मेहर भसीन कहती हैं कि -
''आज के समय में लिव इन इसलिए ज़रूरी है क्योंकि तलाक का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है .विवाह टूट रहे हैं .अब वह ज़माना नहीं रहा कि लोग मजबूरी में रिश्तों को ढोहें ,इसलिए लिव इन का विकल्प लोगों को आकर्षित कर रहा है क्योंकि यहाँ रिश्तों में जबरदस्ती नहीं है .'' 
 लिव इन को लेकर युवाओं की सकारात्मक सोच ही आज इस सम्बन्ध को भारतीय संस्कृति पर चोट साबित करने हेतु पर्याप्त है .जिस सम्बन्ध को भारतीय संस्कृति मात्र दो व्यक्तियों का मिलन न मानकर दो परिवारों दो सभ्यताओं का मिलन मानती है ,जहाँ नारी और पुरुष का ये रिश्ता सामाजिक समझदारी ,पारिवारिक सहयोग से निर्मित होता है ,जिस संस्कृति का गौरव परिवार-प्रेम ,भाईचारा है ,जिसमे माता पिता को देवोभवः की उपाधि दी गयी है उस देश में जहाँ सीता जैसी आर्य पुत्री जो सर्व सक्षम हैं ,भूमि से ऋषि मुनियों के रक्त से उत्पन्न आर्य कन्या हैं ,तक श्री राम को अपने वर के रूप में पसंद करते हुए भी अपने पिता के प्रण को ऊपर रखती हैं और माता गौरी से कहती हैं -

''मोर मनोरथ जानहु नीके ,बसहु सदा उर पुर सबही के ,
कीनेउ प्रगट न कारन तेहि ,अस कही चरण गहे वैदेही .''
अर्थात मेरी मनोकामना आप भली-भांति जानती हैं ,क्योंकि आप सदैव सबही के ह्रदय मंदिर में वास करती हैं ,इसी कारण मैंने उसको प्रगट नहीं किया ,ऐसा कहकर सीता ने उमा के चरण पकड़ लिए .[बालकाण्ड ]



 और ऐसे ही श्रेष्ठ आर्यपुत्र भगवान राम के बारे में महाराजा जनक के कुलगुरु शतानन्द जी भी यही महाराजा दशरथ को बताते हैं कि धनुष यज्ञ सम्पन्न होने पर सीता से राम विवाह सम्पन्न हो गया किन्तु वे सीता का पत्नी रूप में ग्रहण पिता की आज्ञा के अनुसार ही करेंगें ,ऐसी उनकी मनोकामना है .


   ऐसे आदर्श चरित्र भारतीय संस्कृति की शोभा हैं और ऐसे ही विवाह जैसे संस्कार के समय हिन्दू धर्म में पति-पत्नी द्वारा अग्नि के समक्ष लिए जाने वाले फेरे भारतीय संस्कृति की इस संबंध के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं -जिनका विवरण कुछ यूँ है -

१- ॐ ईशा एकपदी भवः -हम यह पहला फेरा एक साथ लेते हुए वचन देते हैं कि हम हर काम में एक दूसरे  का ध्यान पूरे प्रेम ,समर्पण ,आदर ,सहयोग के साथ आजीवन करते रहेंगे .

  २- ॐ ऊर्जे द्विपदी भवः -इस दूसरे फेरे में हम यह निश्चय करते हैं कि हम दोनों साथ साथ आगे बढ़ेंगे .हम न केवल एक दूजे को स्वस्थ ,सुदृढ़ व् संतुलित रखने में सहयोग देंगे बल्कि मानसिक व् आत्मिक बल भी प्रदान करते हुए अपने परिवार और इस विश्व के कल्याण में अपनी उर्जा व्यय करेंगे .
 ३-ॐ रायस्पोशय  त्रिपदी भवः -तीसरा फेरा लेकर हम यह वचन देते हैं कि अपनी संपत्ति की रक्षा करते हुए सबके कल्याण के लिए समृद्धि का वातावरण बनायेंगें .हम अपने किसी काम में स्वार्थ नहीं आने देंगे ,बल्कि राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानेंगें .
 4- ॐ मनोभ्याय चतुष्पदी  भवः -चौथे फेरे में हम संकल्प लेते हैं कि आजन्म एक दूजे के सहयोगी रहेंगे और खासतौर पर हम पति-पत्नी के बीच ख़ुशी और सामंजस्य बनाये रखेंगे .
 ५- ॐ प्रजाभ्यःपंचपदी भवः -पांचवे फेरे में हम संकल्प लेते हैं कि हम स्वस्थ ,दीर्घजीवी संतानों को जन्म  देंगे और इस तरह पालन-पोषण करेंगे ताकि ये परिवार ,समाज और राष्ट्र की अमूल्य धरोहर साबित हो .
 ६- ॐ रितुभ्य षष्ठपदी  भवः -इस छठे फेरे में हम संकल्प लेते हैं कि प्रत्येक उत्तरदायित्व साथ साथ पूरा करेंगे और एक दूसरे का साथ निभाते हुए सबके प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करेंगे .
     ७-ॐ सखे सप्तपदी भवः -इस सातवें और अंतिम फेरे में हम वचन देते हैं कि हम आजीवन साथी और सहयोगी बनकर रहेंगे .
         और लिव इन जिसके बारे में अर्चना पूरण सिंह बड़े उत्साह से कहती हैं कि -
''हम बिना शादी साथ रहे हैं ,ऐसी कोई भी घोषणा हमने नहीं की ,एक स्त्री-पुरुष जो २४ घंटों में १० घंटे साथ बिताते हैं ;उनमे कोई ऐसा सम्बन्ध न हो ऐसा संभव नहीं है .महानगरों की यही विशेषता है कि यहाँ कोई किसी से नहीं पूछता .अपने तरह से जीवन जीने की स्वतंत्रता ,आसान और बेरोकटोक ज़िंदगी ,ये सब बातें बड़े शहरों में इन संबंधों को पनपने का मौका देती हैं ,तेज रफ़्तार ज़िंदगी में यहाँ हर संबंध आम है .जीवन साथी का चुनाव करना यहाँ कठिन है .विवाह स्त्री संबंधों की एक मंजिल है यह मंजिल सुखद हो इसके लिए लिव इन एक जरिया हो सकता है .कम से कम टूटती हुई शादियां ,बिखरते परिवारों और बिना माँ-बाप के पल रहे बच्चों से तो अच्छा है .''
    और इनकी यह उन्मुक्तता स्वयं गृहलक्ष्मी पत्रिका में सोनी चैनल के लेडीज़ सेक्शन में नीना गुप्ता से एक प्रश्न के जरिये मुंह बंद करने को विवश प्रतीत होती है .जिसमे पूछा गया है -
  ''मैं २० साल की कामकाजी महिला हूँ .मैं एक व्यक्ति के साथ 'लिव इन रिलेशनशिप' में हूँ  जो मुझसे बहुत प्यार करता है .हम लोग लिव इन रिलेशनशिप' में पिछले एक साल से हैं इस रिलेशनशिप में बंधने से पहले हम दोनों ने एक दूसरे को अच्छी तरह से जाना समझा पर पिछले कुछ समय से वह मेरी उपेक्षा कर रहा है .मैं इस बात से घबराई हूँ कि कहीं वह मुझको धोखा तो नहीं दे रहा है .मैं सचमुच उससे बहुत प्यार करती हूँ और उसके साथ रहना चाहती हूँ कहीं वह इस रिलेशनशिप को छोड़ तो नहीं देगा .?''
    यही डर  इस संबंध की नीव है और कंगूरा भी ,यही आगाज है यही अंजाम है और चाँद-फ़िज़ा ,विपाशा बासु-जॉन अब्राहम ,राजेश खन्ना-अनीता जैसे मामले इस संबंध के परिणाम स्वरुप सभी के सामने हैं .ये वह सम्बन्ध नहीं जिसे भारतीय संस्कृति में जन्म-जन्मान्तर का सम्बन्ध कहा जाता है ,जिसमे पति पत्नी के सम्मान की खातिर राक्षसों के राजा रावण का कुल सहित विनाश करता है ,जिसमे पत्नी पति के प्राणों को यमराज से भी छीन लाती है.
      आज का युवा उन्मुक्त ज़िंदगी का आदी हो रहा है .दबाव से बचने में लगा है ,अपनी पसंद को सर्वोपरि रखता है ,हर चीज़ पैसे से खरीदना चाहता है और चिंता ,जिम्मेदारी से मुक्त ज़िंदगी का चयन करते हुए लिव इन को सकारात्मक नजरिये से देख रहा है जो निश्चित रूप से भारतीय संस्कृति पर चोट है और जिसके लिए भारतीय संस्कृति भी तनवीर गाज़ी के शब्दों में बस यही कहती नज़र आती है -
    ''जवाँ सितारों को गर्दिश सीखा रहा था ,
       कल उसके हाथ का कंगन घुमा रहा था ,
    उसी दिए ने जलाया मेरी हथेली को
       जिसकी लौ को हवा से बचा रहा था .''
ऐसे में, यही अंजाम होना था रितिका का, जो हुआ, क्योंकि आज के युवा वर्ग ने प्यार शब्द का जो मजाक बनाया है वह केवल देह का आकर्षण और धन की आपूर्ति तक ही सीमित है और जब वह आकर्षण खत्म हो जाता है और आपूर्ति हो नहीं पाती है तब यह प्यार ऐसे ही उड़ जाता है जैसे आँधी के आते ही काले बादल और गधे के सर से सींग. 

शालिनी कौशिक
     (एडवोकेट) 
कैराना (शामली) 


 

शुक्रवार, 24 जून 2022

नाजायज़ सम्बन्ध नारी सशक्तिकरण नहीं

 



अभी अभी प्राप्त समाचारों के अनुसार उत्तर प्रदेश के आगरा में अपार्टमेंट की चौथी मंजिल की बालकनी से गिरने पर महिला की मौत हो गई। घटना को देख मौके पर लोगों की भीड़ जमा हो गई। इस दौरान अपार्टमेंट के लोगों ने महिला के पति सहित तीन लोगों को मौके से दबोच लिया है। महिला अपार्टमेंट में किसी व्यक्ति के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही थी. महिला की उम्र करीब 30 साल थी और उसका नाम रितिका सिंह था. वह फिरोजाबाद के विपुल अग्रवाल के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही थी। महिला का उसके पति आकाश गौतम से विवाद चल रहा था। बताया गया है कि आज आकाश अपने दो परिचितों और परिवार की दो महिलाओं के साथ फ्लैट पर आया था। जिसके बाद आपस में मारपीट हो गई। जिसका यह अंजाम सामने आया है.

      यह केवल एक घटना नहीं है बल्कि आज ये रोजमर्रा की जिंदगी में अमल में आ चुकी है. नारी सशक्तिकरण के इस दौर में नारी शक्ति से भी ऊपर का स्वरुप धारण करती जा रही है. पहले कभी होते थे, या अब भी होते होंगे पुरुषों के विवाहेत्तर सम्बन्ध, पर अब स्त्रियों ने भी बाजी मारी है और रोशन किया है स्त्रियों का नाम भी विवाहेत्तर सम्बन्धों की गली में, आज समाज में ऐसी स्त्रियाँ भी चर्चा में बनी हुई हैं जिनका अपने पहले पति से सम्बन्ध विच्छेद नहीं होता और वे दूसरे के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहना आरंभ कर देती हैं. यही नहीं, जो जो कार्य पहले पुरुष करते थे, आज स्त्रियाँ उन किसी भी कार्य में पीछे नहीं रहना चाहती हैं. पहले पुरुष अपनी पत्नी से चिढ़कर उसे जिंदगी भर के लिए खुद की ही पत्नी का जीवन जीने के लिए बाध्य करने के लिए आसानी से तलाक द्वारा आजादी नहीं देता था, आज वह स्त्री कर रही है. पति की संपत्ति हथियाने और स्वयं के नाम के साथ समाज में पति का नाम जुड़ा रखने के लिए तलाक की प्रक्रिया को निस्तारण तक पहुंचने ही नहीं दे रही है और क्योंकि भारतीय कानून का स्त्रियों के प्रति नर्म रुख रहा है तो ऐसे में पत्नी से तलाक मिलना भी पुरूषों के लिए टेढ़ी खीर हो गया है.

         ऐसे में, रितिका सिंह का यह मामला कानून की नजर में भले ही रितिका के पक्ष में जाए किन्तु भारतीय समाज और संस्कृति को देखते हुए रितिका सिंह को अतिक्रमण कारी ही कहा जाएगा और यही कहा जाएगा कि आज हम भले ही आधुनिकीकरण के दौर में प्रवेश कर चुके हों, किंतु समाज के द्वारा निर्मित मानकों की अवहेलना लक्ष्मण रेखा पार करने के रूप में यदि माता सीता जैसी पतिव्रता नारी पर भारी पड़ सकती है तो समाज की अन्य नारियों की तो बिसात ही क्या है? भारतीय संस्कृति में पहले तो नारी के दूसरे विवाह की संकल्पना ही नहीं थी, अब अगर कानून ने दूसरे विवाह का भारतीय नारी को अधिकार दिला ही दिया है तो उसका मतलब ऐसे नाजायज संबंधों की ओर बढ़ना तो बिल्कुल भी नहीं है. कम से कम पहले विवाह के कानूनी रूप से पूरी तरह खत्म होने तक तो समाज के रीति रिवाजों का संस्कारों का सम्मान रखना ही चाहिए.

शालिनी कौशिक

एडवोकेट

कैराना (शामली) 

मंगलवार, 21 जून 2022

द्रौपदी मुर्मू - महिलाओं का गौरव

  


आज भारत में बहुत परिवर्तन आये हैं. बहुत से परिवर्तन दुःखद हैं तो कुछ सुखद भी हैं और उन परिवर्तनों में सबसे बड़े परिवर्तन ये हैं कि आज भारत का वह समाज, जो हमेशा से हमारे आदिवासी समाज के अधिकार छीनने का कार्य करता था, आज वह उसे समाज में अग्रणी का अधिकार देने के लिए आगे आ रहा है और यही नहीं कि आदिवासी समाज को बल्कि आदिवासी समाज की महिला को देश का सर्वोच्च पद देने की तैयारी की जा रही है और वह भी उस दल द्वारा, जिसने कभी उच्च पद के लिए अपने दल की ही बहुत सी श्रेष्ठ व्यक्तित्व की धनी महिलाओं की अनदेखी की, वह भी मात्र इसलिए कि वे महिलाएं थी, पर आज ये परिवर्तन आ रहे हैं भले ही राजनीतिक लाभ लेने के लिए आ रहे हैं, किन्तु सुखद हैं क्योंकि इनसे सदियों से दबे कुचले आदिवासी समुदाय और महिलाओं को आगे बढ़कर अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सुअवसर प्राप्त हो रहे हैं. एक संघर्षशील  महिला, आदिवासी समुदाय की महिला श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को एनडीए का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया गया है और जहां तक आज संसद में और भारतीय राज्यों की विधानसभाओं में एनडीए का प्रतिनिधित्व है, द्रौपदी मुर्मू जी का भारत का राष्ट्रपति चुना जाना लगभग तय है. ऐसे में, भले ही राजनीतिक लाभ के लिए, महिला सशक्तिकरण के एक और नए युग के आरंभ के लिए भारतीय जनता पार्टी, एनडीए का बहुत बहुत धन्यवाद और देश की आगामी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी और समस्त भारतीय महिलाओं को हार्दिक शुभकामनाएं.

शालिनी कौशिक

         एडवोकेट

कैराना (शामली) 

शुक्रवार, 17 जून 2022

नंगी राजनीति - लघुकथा

  


राजनीति किसी इंसान को कैसे दरिन्दा बना देती है? आज और अभी सोलह वर्षीय स्नेहा ने अपनी आंखों से देखा था. नेता जी के समर्थक किस तरह चुनाव में उनका विरोध कर रही दलित बस्ती को तहस नहस कर के गए थे, यह झोपड़ी के कोने में दुबकी वह देखती रही थी पर उसके लहुलुहान पिता ने यह कहकर संतोष की सांस ली थी कि - अच्छा हुआ गुंडों की नज़र जवान बेटियों पर नहीं पड़ी नहीं तो हम नंगे ही हो जाते। "

रविवार, 20 मार्च 2022

अभिव्यक्त क्या करे " शालिनी "

 


भावुकता स्नेहिल ह्रदय ,दुर्बलता न नारी की ,
संतोषी मन सहनशीलता, हिम्मत है हर नारी की .
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भावुक मन से गृहस्थ धर्म की , नींव वही जमाये है ,
पत्थर दिल को कोमल करना ,नहीं है मुश्किल नारी की.
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होती है हर कली पल्लवित ,उसके आँचल के दूध से ,
ईश्वर के भी करे बराबर ,यह पदवी हर नारी की .
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जितने भी इस पुरुष धरा पर ,जन्मे उसकी कोख से ,
उनकी स्मृति दुरुस्त कराना ,कोशिश है हर नारी की .
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प्रेम प्यार की परिभाषा को ,गलत रूप में ढाल रहे ,
सही समझ दे राह दिखाना ,यही मलाहत नारी की .
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भटके न वह मुझे देखकर ,भटके न संतान मेरी ,
जीवन की हर कठिन डगर पर ,इसी में मेहनत नारी की .
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मर्यादित जीवन की चाहत ,मर्म है जिसके जीवन का ,
इसीलिए पिंजरे के पंछी से ,तुलना हर नारी की .
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बेहतर हो पुरुषों का जीवन ,मेरे से जो यहाँ जुड़े ,
यही कहानी कहती है ,यहाँ शहादत नारी की .
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अभिव्यक्त क्या करे ''शालिनी ''महिमा उसकी दिव्यता की, 
कैसे माने कमतर शक्ति ,हर महिका सम नारी की .
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                      शालिनी कौशिक 
                                एडवोकेट 
                      कांधला (शामली) 

शब्दार्थ -मलाहत-सौंदर्य