सोमवार, 23 दिसंबर 2013

पुरुषीय -नैतिकता :कहानी


Protest : lots of furious people protesting (a group of people protesting, protest, demonstrator, protest man, demonstrations, protest, demonstrator, hooligan, fan, protest design, protest poster) Stock Photo

''हत्यारे को फांसी दो ...फांसी दो .....फांसी दो ...!!!'' के नारों से शहर की गली गली गूँज रही थी .अपनी ही पत्नी की हत्या कर सात हिस्सों में लाश को काटकर तंदूर में भून डालने वाले विलास को फांसी दिए जाने की वकालत समाज का हर तबका कर रहा था .विलास की दरिंदगी का किस्सा जहाँ भी , जिसने भी सुना ,अख़बार में पढ़ा -उसकी आत्मा कांप उठी और होंठों पर बस यही प्रश्न -' क्या कोई इंसान ऐसा भी कर सकता है ?'प्रियंका से प्रेम-विवाह किया था विलास ने फिर ऐसा क्या हुआ जो विलास एक इंसान से हैवान बन बैठा ?' 'नौ महीने दस दिन चली उनकी शादीशुदा ज़िंदगी में ऐसा कौन-सा ज़हर घुल गया जिसने विलास को एक जंगली कुत्ता बना डाला ?'
जेल में भी साथी कैदी उससे बात करने में कतराते और उसके साथ बैठते उन्हें घिन्न आती .साफ्टवेयर इंजीनियर विलास आज कैदी बनकर जेल में घुटने मोड़कर उनके बीच में अपना सिर दिए बैठा रहता .न उसके घर से उसके माता-पिता मिलने आये और न ही प्रियंका के घर से कोई उससे मिलने आया .
आज कचहरी में जज साहब के सामने विलास को अपना पक्ष रखना था .पुलिस सुरक्षा में कचहरी में पहुँचते ही ''इस वहशी को फांसी दो !!!'' के नारे गूंजने लगे .हजारों की संख्या में जमा भीड़ के हाथों से विलास को ज़िंदा बचाकर कोर्ट-रूम तक ले जाना पुलिस के लिए उतना ही मुश्किल काम था जितना मधुमक्खियों के उड़ते माल से बचकर निकलना पर पुलिस वालों ने आज पसीना बहाते हुए कर्तव्य पालन की मिसाल खड़ी कर दी . जनता के हाथ मात्र विलास की कमीज़ के कॉलर का जरा सा टुकड़ा ही लग पाया जो एक बहादुर जनसेवक ने पुलिस के डंडे खाकर भी आगे बढ़कर खींच लिया था .
कोर्ट-रूम में जज साहब के द्वारा यह पूछे जाने पर कि ''तुम अपनी सफाई में क्या कहना चाहोगे ?'' पर विलास ने धीरे से उत्तर देना शुरू किया -'' सर ! मैं निर्दोष हूँ ..मुझे ये सब करने के लिए प्रियंका ने ही उकसाया .वो प्रेमिका से कभी पत्नी बन ही नहीं पायी .जब तक हमने प्रेम-विवाह नहीं किया था तब तक उसका अपने घर वालों से छिप छिप मोबाइल पर मुझसे बात करना मुझे बहुत अच्छा लगता था पर विवाह के बाद भी वो किसी से छिप छिप कर फोन पर बात करती .मैं पूछता तो कहती ...मम्मी का फोन है ...फिर मैं कहता मेरी बात कराओ तो गुस्सा हो जाती ..कहती मुझ पर शक करते हो ..जाओ नहीं कराती बात ..यूँ टाल जाती . मुझसे रोज़ नए-नए गिफ्ट एक्सपैक्ट करती ..मैं न लाता तो न खाना बनाती और न पानी को पूछती .विवाह के दो माह के अंदर उसने मेरे जमा बैंक-बैलेंस का आधा रुपया कपड़ों , जेवरों में फूंक डाला .मैंने टोका तो खुद पर मिटटी का तेल छिड़ककर माचिस लेकर खड़ी हो गयी .
मैंने तो ये सोचकर उससे विवाह किया था कि पढ़ी लिखी ब्रॉड माइंडेड लड़की है ..हमारी अच्छी छनेगी पर उसने तो मुझे मेरे ही घर में घोट डाला .मेरे माता-पिता ने मेरी इच्छा को सम्मान देते हुए मेरे प्रेम विवाह को मान्यता दे दी .वे घर आने वाले थे .मैंने प्रियंका से कहा -'' आज साड़ी पहन लेना ..माँ को पसंद है'' .. पर वो माँ-पिताजी के सामने क्वार्टर पैंट-टॉप में आकर खड़ी हो गयी .माँ-पिता जी के जाने के बाद मैंने गुस्से में उसके तमाचा जड़ दिया तो अलमारी से साड़ी निकल कर बैड पर चढ़ गयी और सीलिंग फैन से लटकने की धमकी देने लगी और कहने लगी -''तुमने मुझे इसी पहनावे में पसंद किया था और आज इसी के कारण मेरे तमाचा जड़ दिया ..तुम ऐसा नहीं कर सकते !!!''
विवाह के छठे महीने हमें खुशखबरी मिली कि हमारे घर नन्हा मेहमान आने वाला है पर प्रियंका ने मुझसे पूछे बिना ..जब मैं कम्पनी के काम से बाहर गया हुआ था बच्चा गिरा दिया .कारण पूछने पर बोली -अभी मैं केवल तेईस साल की हूँ ..अभी से माँ बनने का नाटक मुझसे नहीं होगा और हां जब मैं अपने माता -पिता से बिना पूछे तुमसे शादी कर सकती हूँ तब हर काम मैं तुमसे पूछ पूछ कर करूंगी इसकी उम्मीद तुम मुझसे मत रखना .''
प्रियंका की ये हरकतें कब मुझे इंसान से हैवान बनाती गई मैं खुद भी न जान पाया .मुझसे मिलने आये दोस्ते से उसका घुल-मिल कर बातें करना मुझे अंदर तक जला डालता .मैं उसे टोकता तो कहती -''अगर मैं मर्दों से बात करने में शर्माती तो क्या तुमसे बात कर पाती ..अब मेरा आज़ाद ख्यालात होना खटक रहा है पर विवाह से पहले तुम्ही कहते थे ना कि सिमटी-सकुची गंवार लड़कियां तुम्हे पसंद नहीं ...जो ठीक से बात भी नहीं कर पाती .''
प्रियंका के इस व्यवहार ने मुझे डरा डाला था .विवाह से पहले बात और थी पर अब वो मेरी पत्नी थी ..प्रेमिका की बातें दोस्तों में कर मैं भी मजे लेता था पर पत्नी ...पत्नी दोस्तों के साथ बैठ कर मजे ले ये मुझे क्या किसी भी मर्द को बर्दाश्त नहीं हो सकता !प्रेमिका आज़ाद ख़यालात रख सकती है पर पत्नी नहीं ....प्रेमिका के लिए रूपये हवा में उड़ाये जा सकते हैं पर पत्नी के लिए नहीं .पत्नी देवी होती है और जब वो अपने देवी -स्वरुप की गरिमा का ध्यान नहीं रखती तब उसके ऐसे ही टुकड़े किये जाते है जैसे मैंने किये ...आखिर नैतिकता भी कोई चीज़ है .'' ये कहकर विलास चुप हो गया .जज साहब निर्णय सुरक्षित रख कोर्ट रूम से चले गए तब पुलिस विलास को कोर्ट रूम से वापस अपनी जीप की ओर ले चली .कचहरी परिसर में अब केवल कुछ महिला संगठन की सदस्याएं -''फांसी दो ..फांसी दो !'' का नारा बुलंद कर रही थी .सभी आंदोलनकारी पुरुष अब नदारद थे .
शिखा कौशिक 'नूतन'

4 टिप्‍पणियां:

Kartikey Raj ने कहा…

J HA AAPNE BILKUL SAHI LIKHA HAI SHIKHA JI MAI APKE IS POST KI TAHEDIL SE SARAHANA KARTA HU.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-12-13) को "सेंटा क्लॉज है लगता प्यारा" (चर्चा मंच : अंक-1472) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-12-13) को "सेंटा क्लॉज है लगता प्यारा" (चर्चा मंच : अंक-1472) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डा श्याम गुप्त ने कहा…

----हर कहानी/ कथा का कोइ सारांश-उपसंहार एवं लेखक का कारण-स्वयं का अभिज्ञान, कि वह क्या कहना चाहता है... स्थापित होना चाहिए अन्यथा उस कथा का लेखक विशेष से क्या सम्बन्ध..वह तो एक सामान्य घटना रह जाती है जिसे सभी जानते हैं....