अबला समझके नारियों पे बला टलवाते हैं,
चिड़िया समझके लड़कियों के पंख कटवाते हैं ,
बेशर्मी खुल के कर सकें वे इसलिए मिलकर
पैरों में उसे शर्म की बेड़ियां पहनाते हैं .
……………………………………………………………………
आवारगी पे अपनी न लगाम कस पाते हैं ,
वहशी पने को अपने न ये काबू कर पाते हैं ,
दब कर न इनसे रहने का दिखाती हैं जो हौसला
बदचलन कहने को ये मुंह खुल जाते हैं .
…………………..
बुज़ुर्गी की उम्र में ये युवक बन जाते हैं ,
बेटी समान नारी को ये जोश दिखलाते हैं ,
दिल का बहकना दुनिया में बदनामी न फैले कहीं
कुबूल कर खता बना भगवान बन जाते हैं .
……………………………………….
खुद को नहीं समझके ये सुधार कर पाते हैं ,
गफलतें नारी की अक्ल में गिनवाते हैं ,
कानून की मदद को जब लड़कियां बढ़ाएं हाथ
उनसे बात करने से जनाब डर जाते हैं .
…………………………………………………
नारी पे ज़ुल्म करने से न ये कतराते हैं,
बर्बरता के तरीके नए रोज़ अपनाते हैं ,
अतीत के खिलाफ वो आज खड़ी हो रही
साथ देने ”शालिनी ”के कदम बढ़ जाते हैं .
………………………………….
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
चिड़िया समझके लड़कियों के पंख कटवाते हैं ,
बेशर्मी खुल के कर सकें वे इसलिए मिलकर
पैरों में उसे शर्म की बेड़ियां पहनाते हैं .
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आवारगी पे अपनी न लगाम कस पाते हैं ,
वहशी पने को अपने न ये काबू कर पाते हैं ,
दब कर न इनसे रहने का दिखाती हैं जो हौसला
बदचलन कहने को ये मुंह खुल जाते हैं .
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बुज़ुर्गी की उम्र में ये युवक बन जाते हैं ,
बेटी समान नारी को ये जोश दिखलाते हैं ,
दिल का बहकना दुनिया में बदनामी न फैले कहीं
कुबूल कर खता बना भगवान बन जाते हैं .
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खुद को नहीं समझके ये सुधार कर पाते हैं ,
गफलतें नारी की अक्ल में गिनवाते हैं ,
कानून की मदद को जब लड़कियां बढ़ाएं हाथ
उनसे बात करने से जनाब डर जाते हैं .
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नारी पे ज़ुल्म करने से न ये कतराते हैं,
बर्बरता के तरीके नए रोज़ अपनाते हैं ,
अतीत के खिलाफ वो आज खड़ी हो रही
साथ देने ”शालिनी ”के कदम बढ़ जाते हैं .
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शालिनी कौशिक
[कौशल ]
3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (24-12-13) को मंगलवारीय चर्चा 1471 --"सुधरेंगे बिगड़े हुए हाल" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
तहलका करने वालों ,गांगुलियों और परदे के पीछे सब कुछ करने वालों को आइना दिखलाती
बढ़िया रचना। यही लोग हैं जो शाहबानो का हक़ छीन लेते हैं।
सार्थक ... आक्रोश लिए ... भाव ...
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