श्याम स्मृति- ......बंधन ही स्वतन्त्रता है
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बंधन क्या है, मुक्ति क्या है,
स्वतन्त्रता क्या है ? क्या सांसारिक कर्तव्य, कृतित्व, दायित्व बंधन हैं ?
गृहस्थी, पारिवारिक सम्बन्ध, आपसी संवंध या स्त्री-पुरुष के प्रेम व विवाह या
दाम्पत्य संवंध बंधन हैं ? क्या इन बंधनों से मुक्त व स्वतंत्र होकर जीवन-संगीत का
आनंद लिया जा सकता है | क्या स्त्री-पुरुष आपसी बंधनों से मुक्त होकर जीवन-सुख का
वास्तविक आनंद उठा सकते हैं|
नहीं .....जिस प्रकार वीणा के तारों
का दोनों छोरों पर बंधन एवं आवश्यक व उपयुक्त कसाव मधुर संगीत के लिए आवश्यक है
अन्यथा तारों का कसाव या तनाव अधिक होगा तो टूटने का अवसर रहेगा, तार ढीले होंगे तो
संगीत उत्पन्न ही नहीं होगा| उसी प्रकार जीवन है, जीवन व्यवहार, दाम्पत्य-जीवन,
स्त्री-पुरुष संवंध के संगीतमय व मधुमय होने हेतु दोनों छोरों पर समुचित बंधन
व समुचित दृडता आवश्यक है तभी मानव उन्मुक्त जीवन व्यतीत कर सकता है |
मुक्ति प्राप्ति की इच्छा या योग व
अनुशासन भी तो एक बंधन ही है | योगेश्वर श्रीकृष्ण स्वयं जीवन भर कर्म व
पारिवारिक, सांसारिक बंधनों में बंधे रहे ....हाँ लिप्त नहीं रहे जो बंधन व मुक्ति
दोनों के लिए ही अत्यावश्यक है ....और योगेश्वर का ही आदेश है गीतामृत रूप में|
अतः बंधन आवश्यक है, हाँ तारों को
दोनों छोरों पर समुचित रूप से कसे हुए होने चाहिए ताकि जीवन पूर्ण स्वतन्त्रता व
उन्मुक्तता से जिया जा सके| यही बंधन मानव को अनिर्बन्धित–बंधित करता है, मुक्ति
का मार्ग प्रशस्त करता है |
7 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार को (27-11-2013) तिनके तिनके नीड़, चीर दे कई कलेजे :चर्चा मंच 1443 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर ,सार्थक विचार !
(नवम्बर 18 से नागपुर प्रवास में था , अत: ब्लॉग पर पहुँच नहीं पाया ! कोशिश करूँगा अब अधिक से अधिक ब्लॉग पर पहुंचूं और काव्य-सुधा का पान करूँ | )
नई पोस्ट तुम
बधाई....आभार
धन्यवाद शास्त्रीजी, कालीपद जी एवं सावन कुमार ......
SAHI KAHA HAI AAPNE .AABHAR
sundar vichar...............
धन्यवाद संध्या जी व शिखा जी.....
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