सहनशक्ति यदि कही अधिक होती है तो वो नारियों में ही होती है और कब तक वे सहें ? प्रश्न उनकी सहनशीलता की ही नहीं है , अधिक ये है कि क्या नारियों ने इसे अपना नसीब ही बना लिया है या उनमे लड़ने की क्षमता का विकास तेजी से हो रहा है। छेड़खानी सिर्फ लड़कियों तक ही सीमित नहीं रह गयी है , शादी - शुदा अधिक उम्र की महिलाये भी तेजी से शिकार हो रही हैं , तब क्या उन्हें चुप रह कर सब कुछ सहते रहना चाहिए या आवाज उठानी चाहिए ? जुल्म घरों में भी होते हैं , पति यदि शक्की हो तो महिला जीना ही दूभर हो जाये , पर कितनी महिलाएं ऐसी हैं जो आवाज उठाती हैं ? ख़ामोशी को गहना बना लेती है तो चरित्रहीनता का पुरस्कार दे दिया जाता है , तब आखिर महिला क्या करे , आवाज उठाये ? कई नारियों पर ससुराल जुल्म करते हैं तो कई पर भाई और पिता। ऐसी भी नारियां हैं जो अपने बेटों के द्वारा ही प्रताड़ित की जाती हैं, ऐसे में वो क्या करें?
आज की आवाज है कि जुल्म के खिलाफ आवाज उठाये हर नारी , जो बिलकुल सही है पर क्या ये विरोध का रास्ता उनके लिए आसान है ? आवाज नहीं उठाये तो स्व्यं घुटती है नारी और यदि आवाज उठाये तो दुनिया के सारे लांछन उसी पर लगाये जाते हैं तो क्या करें आखिर ? तहलका कांड के बाद नारी की स्थिति पर मन बार - बार सोंचता है।
1 टिप्पणी:
aavaz to uthhani hi hogi .sarthak post hetu aabhar
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