पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी ,
खुशियों का बवंडर पल भर में थम गया .
चाहत थी बेटा आकर इस वंश को बढ़ाये ,
रखवाई का ही काम उल्टा सिर पे पड़ गया .
बेटा जने जो माता ये है पिता का पौरुष ,
बेटी जनम का पत्थर माँ के सिर पे बंध गया .
गर्मी चढ़ी थी आकर घर में सभी सिरों पर ,
बेडा गर्क ही जैसे उनके कुल का हो गया .
गर्दिश के दिन थे आये ऐसे उमड़-घुमड़ कर ,
बेटी का गर्द माँ को गर्दाबाद कर गया .
बेठी है मायके में ले बेटी को है रोटी ,
झेला जो माँ ने मुझको भी वो सहना पड़ गया .
न मायका है अपना ससुराल भी न अपनी ,
बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया .
न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की ,
बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .
सदियाँ गुजर गयी हैं ज़माना बदल गया ,
बेटी का सुख रुढियों की बलि चढ़ गया .
सच्चाई ये जहाँ की देखे है ''शालिनी ''
बेटी न जन्म ले यहाँ कहना ही पड़ गया .
शालिनी कौशिक
[कौशल]
शब्दार्थ-गर्दाबाद-उजाड़ ,विनाश
11 टिप्पणियां:
15m
हमारे दौर की एक बड़ी सामाजिक विडंबना और विद्रूप को स्वर दिया है आपने इस रचना में .
लिंग निर्धारण में पुरुष की भूमिका तय करती है गर्भ में लड़का आयेगा या लड़की .
पुरुष "एक्स -वाई "गुणसूत्रों ,क्रोमोसोमों का स्वामी है .महिला एक्स -एक्स का .प्रेम मिलन के बाद पुरुष की तरफ से एक्स जाता है मिलन मनाने
ओवम (डिम्ब अणु )से तो लडकी वाई जाता है तो लड़का .
पुरुष भी बाँझ होते हैं यातो उनके शुक्राणु प्रजनन क्षम नहीं होते या संख्या बल में भी कम रह जातें हैं .लिंगोथ्थान (ERECTILE DYSFUNCTION )अभाव भी कारण बनता है पुरुष बाँझ पन का अज्ञान का ठीकरा इस
सब के लिए अज्ञानी महिला के सर फोड़ते हैं ..
Virendra Sharma @Veerubhai1947
असली उल्लू कौन ? http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2013/02/blog-post_5036.html …
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Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ शनिवार, 2 फरवरी 2013 Mystery of owls spinning their heads all the way around revealed http://veerubhai1947.blogspot.in/
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saskat rachna abhivaykti.....
संवेदनशील रचना, हम कब सुधरेंगें ? आभार ...
bahut sundr abhivykti
बहुत ही सवेदनशील और मार्मिक रचना,मेरा तो मानना है बेटी कभी भी बेटे से कम नही है।
यही तो विडम्बना है ! स्त्री के गर्भ से बेटा या बेटी के जन्म लेने के लिए पिता ज़िम्मेदार होता है ! लेकिन बेटी के पैदा होने पर स्त्री को ही कोसा जाता है जबकि इसमें उसका तो कोई रोल होता ही नहीं ! सार्थक संवेदनशील रचना के लिए बधाई !
समाज की असल तस्वीर
बहुत सुंदर
सच दिखाती संवेदनशील अभिव्यक्ति
संवेदनशील रचना...
कविता तो सटीक है ही ...बधाई
--- परन्तु जहां तक वीरेन्द्र शर्माजी ..की कहन की बात है वह भ्रामक एवं व्यर्थ है ......पुत्र-पुत्री पैदा होने में दोनों का हाथ होता है --- स्त्री के डिम्ब में गुण-सूत्र xx व पुरुष के स्पर्म में x y ..होते हैं ..पुरुष के स्पर्म का कौन सा गुण-सूत्र डिम्ब द्वारा चुना जाता है ...यदि x तो x+x = पुत्री ...यदि y तो x+y = पुत्र ... सच यह है कि किसी का भी कोई दोष नहीं होता ..
shikha ji,ravikar ji,veerubhai ji ,sushma ji,suneel ji,mahendra ji,sadhna vaidh ji,dr.shyam guptji,rajendra ji,vandna ji,rekha joshi ji,pratibha ji aap sabhi ka hardik dhanyawad.
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