एक कशिश रह गई
हर दिल में बाकी
हर दिल में था एक तूफां
हर दिल में थी एक आस
कि एक दिन वो उठ खड़ी होगी
और लेगी बदला अपने गुनहगारों से
पर नहीं हुआ कुछ भी ऐसा
बुझ गई वो लौ
अब कौन लेगा बदला
और कौन करेगा इन्साफ
बस छोड़ गई हर दिल में
एक सवाल
बेटी को ज़न्म दें या सिर्फ बेटों को??
14 टिप्पणियां:
no one can give answer of this question .
speechless.
बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुती।
भावो को शब्दों में उतार दिया आपने.................
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगलवार 12/213 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है
sanskaron ko .tab shayad is sawal kee aavshyakta nahi rahegi..सराहनीय अभिव्यक्ति अफ़सोस ''शालिनी''को ये खत्म न ये हो पाते हैं . आप भी जाने संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग
हूँ .....ये अन्धेरा ही उजाले की किरण लाएगा ...
लौ जलाई है उसने ,जगाया है इस समाज को .खाली नहीं जायेगी उसकी ये हौसलाइ जंग .होगा तीन पांच,तिया पाचा , एक दिन उन सबका ,उन सबका जो अभी तक खुले घूम रहें हैं .
सटीक अभिव्यक्ति |
आभार आदरेया -
दिल को छू लेने वाले भाव ... आभार
आस का पल्लू कभी न छोड़ें भले आस खुद पल्लू छुड़ा जाए .बदलेगा यह निजाम भी बदलेगा .नारी के प्रति नज़रिया भी सुधरेगा लेकिन एक दिन में कुछ न होगा यह निरंतर चलने वाली जंग है
सामाजिक जंग .
I can assure Dr Shikha that now Time will answer this question because indian government is taking it very seriously.
ab jmana badal raha hai dheri dhire....
jai hind
very- very thanx Rajesh Kumari ji ...
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