शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

कहानी की कहानी ---- डा श्याम गुप्त ..




                               पहले वेद-उपनिषद् आदि में  घटनाओं का सत्य वर्णन किया जाता था, पौराणिक काल में सत्य को सोदाहरण कथारूप में लिखा जाने लगा, ताकि सामान्य जन समझ सके व उचित राह पर चल सके |  आगे चलकर कथाओं-गाथाओं का जन्म  हुआ जो सत्य-व वास्तविक घटनाओं, पात्रों, चरित्रों के आधार पर कहानियां थीं--'एक राजा था', 'एक समय..', 'एक राजकुमार ...' , 'एक दिवस....' , 'काम्पिल्य नगरी में एक धनी सेठ...' , 'एक सुंदर राज कुमारी '.आदि-आदि, जो समाज व व्यक्ति का दिशा निर्देश करती थीं |  बाद में कल्पित चरित्र ,घटनाओं आदि को आधार बनाकर कल्पित कथाएँ व गल्प, फंतासी आदि लिखी जाने लगीं जिनमें सत्य से आगे बढ़ा चढ़ा कर लिखा जाने लगा परन्तु वह किसी न किसी समाज, देश,काल की स्थिति-वर्णन होती थीं और बुराई पर अच्छाई की विजय |
                         परन्तु आज क्या लिखा-दिखाया जारहा है, पूर्ण असत्य  कथा-कहानी,  'इस सीरियल -कहानी के पात्र, घटनाएँ, किसी भी देश-काल, समाज, जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करते'  अर्थात पूरी तरह से झूठी कहानी;जब ये सब कहीं हो ही नहीं रहा है हुआ ही नहीं, कहीं मानव-मात्र से संवंधित ही नहीं, तो कहानी किस बात की |                                 
                       क्या-क्या  मूर्खताओं के साए में पल रहे हैं आज-कल हम, हमारा साहित्य, साहित्यकार व समाज ..... कैसे सत्य को पहचाने  हमारी भावी पीढी  |

4 टिप्‍पणियां:

Aditi Poonam ने कहा…

हमारे वेद पुरानों की ,सनातन साहित्य की समय समय
पर मन चाही व्याख्याएं हुई है तोड़-मरोड़ कर अर्थ के अनर्थ निकाले गए है उनके वास्तविक अर्थ ही बदल दिए गएयही विडंबना है

रविकर ने कहा…

आभार आदरणीय |

Shalini kaushik ने कहा…

एकदम सही बात कही है आपने . ये क्या कर रहे हैं दामिनी के पिता जी ? आप भी जाने अफ़रोज़ ,कसाब-कॉंग्रेस के गले की फांस

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद अदिति जी, रविकर एवं शालिनी जी ....
---सही कहा यह विडम्बना ही है ..
'बहुत सह चुके अब तो समझें कि ज़िंदा कौम हैं हम '