मंगलवार, 7 मई 2013






परिवर्तन

पहले किसी आदमी को
अकेली जाती लडकी दिख जाती थी
तो वो पूछ्ता था-
कहाँ जाओगी बहन?

फिर एक समय ऐसा भी आया
जब वो पूछ्ने लगा-
कहाँ जाओगी मेरी जान?

पर अब तो वो समय गया है
कि वो उससे कुछ नहीं पूछता
बस, बलपूर्वक उसे साथ ले जाता है
और फिर कुछ ही देर में
उसके ज़िस्मों-दिमाग पर
अपनी क्रूरता के कुछ निशान
और कुछ जख़्म 
हमेशा-हमेशा के लिये छोड़ जाता है

हमारे असभ्य से सभ्य होने की
बस यही कहानी है:
नारी आज़ भी अबला है 
आज़ भी उसके आँचल में दूध
और आँखों में पानी है            
                                                                
(कविता-संग्रह "एक किरण उजाला" से)

3 टिप्‍पणियां:

डा श्याम गुप्त ने कहा…

क्या बात है सच्ची ...

Dr. Vandana Singh ने कहा…

बहुत सुंदर....अभिव्यक्ति...

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

बेहद सुन्दर प्रस्तुति |

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Tamasha-E-Zindagi
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