शुक्रवार, 16 मार्च 2012

हाउस वाइफ......डा श्याम गुप्त का आलेख ....


                                   ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...        

----क्या आपकी पत्नी भी कहीं काम करती हैं ......अरे नहीं, वे तो हाउस वाइफ हैं।
----क्या आप भी कहीं काम करते हैं ......नहीं मैं तो घरेलू स्त्री हूँ  ..हाउस वाइफ हूँ ।
---- क्या  आप भी हाउस वाइफ हैं   ....... अरे नहीं  मैं तो बैंक में अफसर हूँ ।
              अर्धांगिनी,  घर की लक्ष्मी, मालकिन, महारानी,  "बिनु घरनी घर भूत का डेरा.... " आदि उपाधि धारी, दिन भर घर-आंगन सुधारने-बुहारने  में हड्डी-मांस गलाने वाली  या  झाडू लगवाने, खाना बनवाने, धोबी का हिसाब, किफायत से मार्केटिंग  करने, दिन भर  घर-द्वार की कुंडी-दरवाज़ा खोलने-बंद करने में   रक्त-सुखाने वाली,  बच्चे पैदा करके- पालन-पोषण में शरीर को होम करने वाली, रूखा-सूखा खाकर संतुष्ट रहकर......आगे आप ही सोचिये ......यह ऐसा सर्वश्रेष्ठ व कठिनतम श्रम करने वाली "हाउस वाइफ" की सुन्दर-असुंदर तस्वीर है.......।
               कैश व काइंड... तो भ्रष्टाचार व रिश्वत में भी खूब चलता है.......परन्तु जब महिला-श्रम  की बात होती है तो बस कैश की ही बात की जाती है ....श्रम उसे  ही कहते हैं जिसमें कैश मिलता है...धन मिलता है...तनखा- पे-पर्क्स मिलते हैं ...तब हम  मैन-काइंड  के लिए...काइंड पर श्रम करती ..."हाउस वाइफ"... को भूल जाते हैं .जिसका मूल्य यह मनुष्य, मानव, समाज, विश्व इतिहास, भूत-भविष्य-वर्तमान...पूरे जीवन में व इतिहास में नहीं चुका सकता।
           आखिर कब तक घरेलू महिला, हाउस-वाइफ गयी-गुज़री, "घर की मुर्गी दाल बराबर" बनी रहेगी ? क्या हाउस वाइफ का श्रम.. श्रम नहीं ?....और  नौकरी करती महिला 'हाउस वाइफ. नहीं  तो क्या.....।                    

7 टिप्‍पणियां:

प्रेम सरोवर ने कहा…

आखिर कब तक घरेलू महिला, हाउस-वाइफ गयी-गुज़री, "घर की मुर्गी दाल बराबर" बनी रहेगी ? क्या हाउस वाइफ का श्रम.. श्रम नहीं ?....और नौकरी करती महिला 'हाउस वाइफ. नहीं तो क्या.....।

बहुत सुंदर एवं सीखने योग्य पोस्ट ।मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा ।

Shalini kaushik ने कहा…

aaj har house wife yadi aapki is post ko padhe to aapki shukr guzar rahegi.sarthak post.aabhar..

Shikha Kaushik ने कहा…

nice post ...

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

सरकार ने औरत को खेती की ज़मीन में हिस्सा देने के लिए कानून बनाना चाहा तो ऐसे मर्दों ने उसका विरोध किया जो औरत को घरेलू देखना चाहते हैं .

डा श्याम गुप्त ने कहा…

----धन्यवाद सरोवर की, शिखा जी व शालिनी जी....
----आखिर सरकार ने दोनों में झगडे की जड डालने का कार्य ही क्यों किया.....पुरुषों को मज़बूर करना चाहिये उनका ..उनके श्रम का सम्मान करने के लिये न कि श्रम का मूल्य देने के लिये एक कर्मचारी की भांति.......

आशा बिष्ट ने कहा…

sahi sir...agar gharelu mahila ke shrm ka mulyankan kiya jaay to wah naukripesha se agradi hogi....

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद आशा जी....