शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

फिर इतना दिखावा क्यूँ?

म्स मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर दो के पास भीड़ बढ़ी है ये उम्मीदों का स्टेशन है जो रात की नौबत बजते ही रैनबसेरे में बदल जाता है |जबरदस्त जाम के बीच मेरी निगाह एफिसाइड के उस बड़े विज्ञापन बोर्ड पर पड़ती है जिसमे काले गाउन को पहने खुबसूरत माडल के नंगे पैर और उसके क्लीवेज को देर तक निहारा जा सकता है |,मैं सोचता हूँ इस दुनिया में खुबसूरत महिलाओं की एक अलग दुनिया होती होंगी ,वो कभी मरती नहीं होंगी ,उन्हें खुबसूरत सपने आते होंगे ,उन्हें कभी चूमा नहीं गया होगा.”

फेसबुक खोलते ही ये पोस्ट झक्क से मेरी आँखों के सामने था, ऐसा लग रहा था जैसे मेरा इंतज़ार कर रहा हो, इस पोस्ट को पढ़ते पढ़ते मुझे कई महारथी याद आ गए, जो फेमिनिज्म का झंडा बुलंद किये हुए हैं या यूँ कहें कि उनकी रोज़ी रोटी ही साली(इस शब्द का इस्तेमाल करने के लिए क्षमा चाहूँगा लेकिन और कोई शब्द मिला ही नहीं) इसी से चलती है. लेकिन जब वो किसी महिला का बखान करते हैं तो उसके गुणों का नहीं बल्कि उसके शारीर के अंग प्रत्यंगों और खूबसूरती बड़ी ही अश्लीलता से बखानते हैं. ये वही लोग हैं जो हमेशा महिलाओं की सशक्तता की बात करते हैं, लेकिन एक महिला में उन्हें उसके नंगे पैर और क्लीवेज ही नज़र आते हैं, जिसे देख कर वो अपनी मर्दानगी को शांत कर लेते हैं, या यूँ कहें की देर तक निहारने पर उन्हें उनमे एक साहित्य नज़र आता है, ऐसा साहित्य जो बड़ा ही डेलिकेट है, इंटेलेक्चुअल है. यह बड़ा ही अजीब है लेकिन शास्वत है, मानें या ना मानें.

अभी बीते दिनों की ही बात है, ज्यादा समय नहीं गुज़रा है, गुडगाँव की एक बड़ी ही डेलिकेट पार्टी का सदस्य बनकर मैं एक मुशायरे में शामिल हुआ और जनाब जो देखने को मिला , वह मेरी आँखें चुधियाने के लिए काफी था, सच कहूँ तो बड़े ही उम्रदराज़, खुशमिजाज़ और अछे लोगों की महफ़िल थी और साथ में था बड़ा ही मौजूं बयान, और वो यह कि “ औरत सिर्फ देखने और भोगने के लिए होंती है, अन्यथा कुछ भी नहीं” मै शर्मसार था और मेरे दमाग में एक ही प्रश्न बार बार घूम रहा था की “फिर इतना दिखावा क्यूँ?”

- नीरज

मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

कौन बिगाड़े किसको !-लघु कथा


किशोरी बबली छत  पर कपड़े सुखा रही थी और  उसके साथ छत पर ही खड़ा उसका छोटा किशोर भाई बिल्लू  नीचे सड़क पर आती-जाती लड़कियों  को देखकर बड़बड़ाये जा रहा था . .बबली ने कपड़े  सुखाने के बाद बिल्लू को डांटते  हुए कहा -'' क्या बड़बड़ाये जा रहा है ?''  बिल्लू सड़क पर जाती एक लड़की की ओर इशारा करते हुए बोला -'' देख जिज्जी क्या पहन कर जा रही है वो लड़की ! शर्म नहीं आती इसे .लड़कों को बिगाड़ कर रख दिया है इन्होंने !'' बबली ने बिल्लू के सिर पर चपत लगाते हुए कहा -''लड़को को इन्होंने नहीं बिगाड़ा ..लड़के खुद ही बिगड़े हुए हैं ...तुम ध्यान क्यों देते हो इन पर ?तुम गौर करना छोड़ दो ये खुद सलीके के कपड़े पहनने लगेंगी और तू ...तू क्या किसी और को कह रहा है ...खुद केवल निक्कर पहन कर यहाँ खुले में आकर खड़ा हो गया ..अब कोई लड़की तुझे देख ले तो तू उस लड़की को ही बेशर्म कहेगा कि तुझ नंगे को देख रही है  या उसे बिगाड़ने की जिम्मेदारी खुद पर लेगा .'' ये कहकर बबली हँसते  हुए सीढ़ियों की ओर बढ़  ली और बिल्लू फिर से सड़क पर आती-जाती लड़कियों को निहारने में व्यस्त हो गया .

शिखा कौशिक 'नूतन'

रविवार, 30 नवंबर 2014

''तो नैना हमारे बीच होती...'' -कहानी


शानदार कोठी के लॉन में कुर्सियों पर आमने-सामने बैठी हुई नैना और पुनीता की जैसे ही आँखें मिली पुनीता गंभीरता की साथ बोली -'' हमेशा अपने ही बारे में सोचती रहोगी या कभी किसी और के बारे में भी सोचोगी ?'' आज पुनीता ने अपने स्वभाव के विपरीत नैना के निर्णय को चुनौती देते हुए ये कहा था क्योंकि किसी के जीवन से सम्बंधित फैसलों में हस्तक्षेप करना पुनीता को कभी पसंद नहीं था .इसीलिए नैना थोड़ा विस्मित होते हुए बोली -'' पुनीता ....ये तुम कह रही हो !!तुम तो हमेशा से यही कहती आई हो कि औरत को अपने बारे में भी सोचना चाहिए .  हो सकता है मेरा  तीसरी शादी करने का निर्णय इस समाज की सोच से कहीं आगे की बात हो ...बट इट्स माय लाइफ एंड आई थिंक इट्स ए राइट डिसीजन .''
नैना के इस प्रत्युत्तर ने पुनीता को विचलित कर दिया और वो पहले की अपेक्षा और ज्यादा कड़क होते हुए बोली -'' राइट डिसीजन ...माय फुट ..एक बार भी अपने चौदह वर्षीय बेटे अभि के बारे में सोचा है ?क्या है उसके पास ? स्वर्गवासी पिता की यादें और तुम ...बदकिस्मती से पिता का प्यार उसे बचपन  से ही नहीं मिल  पाया ...केवल दो साल का था अभि   जब राम चल बसे थे  नैना उसने  केवल तुमसे प्यार पाया है और अब एक नए व्यक्ति को लाकर अभि के जीवन में थोप देना चाहती  हो तुम ? क्या सोचती हो तुम ...अभि के लिए ये सब इतना आसान है ?वो उस नए व्यक्ति को पिता मान पायेगा ? वो बर्दाश्त कर पायेगा कि जिस  माँ पर पिछले बारह साल से  केवल उसका हक़ था अब वो किसी और के साथ एडजस्ट करे.......नैना यू आर मैड ..अभि बहुत भावुक बच्चा है .तुमने शायद नोट  नहीं किया  वो अखबार में ,टी.वी.चैनल्स  पर तुम्हारे और मिस्टर शेखर  के अफेयर की खबरे पढ़-सुन कर असहज  हो जाता है .तुम कैसी माँ हो जो बच्चे के बिहेवियर में आ रहे बदलाओं को महसूस नहीं कर पाती हो .अरे हां ...यू आर इन लव और इस चालीस पार के प्यार के चक्कर में भले ही अभि के दिल के टुकड़े टुकड़े हो जाये ..इसकी तुम्हे रत्ती भर भी चिंता नहीं.'' पुनीता के इस व्यंग्य पर नैना को इतना क्रोध आया कि वो अपनी बेस्ट फ्रेंड पर चीखते हुए बोली -शट     अप पुनीता ...चुप हो जाओ ...अभि से बढ़कर मेरे लिए कोई नहीं ..मैंने देखा है उसे पिता के प्यार के लिए तरसते हुए ..शेखर बहुत बड़े दिल वाले हैं .वो अपनी एक्स वाइफ को भी पूरा सम्मान देते हैं अपने बच्चों का पूरा ध्यान रखते हैं .वो तो बच्चों को अपने पास रखना चाहते थे पर कोर्ट ने उनके बच्चों को उनकी एक्स वाइफ की कस्टडी में दे दिया .कितना बिजी रहते हैं शेखर पर जब भी हम मिलते हैं तब सबसे पहले अभि के बारे में ही पूछते हैं .अभि और शेखर कई बार मिल चुके  हैं और मुझे नहीं लगता दोनों के बीच कुछ भी असहज है .''
पुनीता नैना की बात पर असहमत होते हुए बोली -'' माई डियर ...इतनी भोली नहीं हो तुम ..सबसे पहले अभि को पूछते हैं ...नैना शेखर जानते हैं कि तुम्हारा दिल जीतना है तो अभि की बात करनी ही  होगी .ये अभि के प्रति स्नेह नहीं तुम्हारे प्रति आकर्षण का परिणाम है .ये एक पिता के भाव नहीं प्रेमी के भाव है ....बेवकूफ ...तुम बँट कर रह जाओगी नैना .क्या अभि को दे पाओगी पहले जैसा प्यार ?'' नैना लापरवाह सी होकर बोली -'' हां हाँ क्यों नहीं ..अभि हॉस्टल से आता ही कितने दिन के लिए है घर ...तुम नाहक परेशान हो रही हो ..ये मिडिल क्लास मैंटेलिटी है ..बच्चे के लिए पूरा जीवन विधवा बन कर काट दूँ तब तुम्हे चैन आएगा ! इतनी बड़ी कम्पनी की सी.ई.ओ . हो कर भी तुम्हारी सोच इतनी बैकवर्ड कैसे हो सकती है पुनीता ?'' पुनीता नैना की इस बात की हंसी उड़ाते हुए बोली -'' बैकवर्ड ...हा हा हा ..तुम्हे याद है नैना जब घरवालों की मर्जी से हुई तुम्हारी पहली शादी टूटी थी  तब सब तुम्हारे खिलाफ थे पर मैंने तुम्हारा साथ दिया था क्योंकि मैं जानती थी  कि साहिल उन मर्दों  में से था जो औरत को पैर की जूती समझते हैं फिर तुम बिजनेस वर्ल्ड में नाम कमाते हुए डॉ. राम से दिल लगा बैठी .तब तुम दोनों की शादी की सारी व्यवस्था मैंने ही की थी .तुम्हारे घरवाले इस अंतर्जातीय शादी के खिलाफ थे . तुम्हे याद है या नहीं ...तुम्हारे भाई ने मुझे गोली मार देने की धमकी तक दी थी पर मैं डरी  नहीं थी पर आज हालात अलग हैं माइ डियर ! आज अभि मेरे चिंतन के केंद्र में है .मैं नहीं चाहती कि तुम एक ख़राब माँ साबित हो .कल को तुम्हारा बच्चा तुम पर ये आरोप लगाये कि मेरी माँ ने अपनी लाइफ के बारे में तो सोचा पर मेरी नहीं .हॉस्टल में रहकर भी उसे ये सुकून रहता है कि उसकी माँ उसकी हर ख़ुशी-तकलीफ बाँटने के लिए लालायित होगी पर चौदह वर्षीय किशोर को ये समझाना बहुत मुश्किल है कि उसकी माँ किसी पुरुष से उसके हितार्थ शादी कर रही है .नैना ..नैना तुम क्यों नहीं समझती ....आखिर कब तक तुम अपने जीवन की सम्पूर्णता के लिए किसी पुरुष का सहारा लेती रहोगी ...तुम अब एक औरत नहीं ..एक माँ हो ...और ये कोई बैकवर्ड सोच नहीं ..ये सबसे बड़ा सत्य है ...जिस बच्चे को जन्म देकर इस संसार में लायी हो उसके अधिकारों के बारे में भी सोचो ..उसको भी इस समाज में मुंह दिखाना पड़ता है ..तुम्हारे हर आचरण की आंच उस पर पड़ती है .पिछली बार जब मिली थी मैं उससे तब बता रहा  था मुझे कैसे उसके सहपाठी तुम्हारे और शेखर के अफेयर को लेकर तंज कसते हैं उस पर ...नैना माना बच्चा स्वार्थी  होता है .वो माँ के प्यार को किसी के साथ नहीं बाँट सकता पर माँ तो स्वार्थी नहीं होती ना ..'' पुनीता के ये कहते ही नैना गुस्से में बौखलाते हुए कुर्सी से खड़ी होते हुए बोली -पुनीता दिस इज़ टू मच....तुम मेरी लाइफ में कुछ ज्यादा ही हस्तक्षेप कर रही हो ...मैंने कभी पूछा तुमसे कि तुमने शादी क्यों नहीं की ....फिर तुम क्या जानों बच्चे और माँ के बीच के सम्बन्ध को ? मेरा अभि उसमे ही खुश है जिसमे मैं खुश हूँ ...नाउ  लीव मी एलोन फॉरेवर !'' नैना के ये कहते ही पुनीता कुर्सी से उठकर कड़ी हो गयी और अपना पर्स उठकर बिना कुछ कहे वहां से निकल ली .कार से लौटते समय पुनीता ने मन में निश्चय किया कि अब नैना से कभी नहीं मिलेगी .पुनीता का निश्चय डोल भी जाता यदि नैना उससे मिलने आ जाती या केवल एक कॉल कर देती पर नैना ने ऐसा कुछ नहीं किया .अख़बारों और टी.वी. चैनल्स पर नैना और शेखर की शादी की तस्वीरें प्रमुखता से प्रकाशित व् प्रसारित की गयी .आखिर क्यों न होती ...शेखर राजनीति का चमकता हुआ सितारा  था और नैना बिजनेस टायकून पर पुनीता की नज़र ख़बरों में ...फोटो में ढूंढ रही थी अभि को ..जो कहीं नहीं था .एक साल बीता ,दो साल बीते .बीच में एक बार पुनीता देहरादून किसी काम से गयी तब अभि से मिलने गयी थी उसके स्कूल .माँ को लेकर उसका ठंडा रिएक्शन देख कर अंदर से कांप उठी थी पुनीता .बेटे का ये रिएक्शन सह पायेगी नैना ? प्रश्न ने झनझना डाला था पुनीता के दिल और दिमाग को और एक दिन टी.वी. ऑन करते ही उस पर प्रसारित ब्रेकिंग न्यूज़ देखकर पुनीता का दिल धक्क रह गया था . खबर ही ऐसी थी .नैना एक पांच सितारा होटल में मृत पाई गयी थी .शेखर पार्टी के एक सम्मलेन के चक्कर में उस होटल में नैना के साथ ठहरे हुए थे .नैना के चिकित्सीय परीक्षण को लेकर तरह-तरह की खबरे आ रही थी .नैना ने आत्म-हत्या की या उसकी हत्या हुई -इसको लेकर मीडिया डॉक्टर से लेकर पुलिस विभाग तक की भूमिका स्वयं ही निभा रहा था पर पुनीता जानती थी कि नैना की हत्या नैना ने ही की है .पुनीता जानती थी अभि से कितना प्यार करती थी नैना इसीलिए शेखर से उसके विवाह पर एतराज था पुनीता को . खबर देखकर सबसे पहले यही विचार आया था पुनीता के दिल में ''नहीं कर पाई ना नैना बर्दाश्त बेटे का उपेक्षापूर्ण बर्ताव ! अभि का दोष नहीं है ..वो शेखर को जीवन में स्थान दे सकता था पर पिता का मान ..बहुत मुश्किल था .इधर बेटे के दिल में अपने लिए घटते प्यार और उधर शेखर की बेवफाई का कल्पित भय .......कितना उलझकर रह गयी थी तुम नैना ! अभी  कुछ दिन पहले ही तो अख़बारों और सोशल मीडिया में छा गया था तुम्हारा शेखर का एक और महिला के साथ मिलने-जुलने को लेकर किया गया ट्वीट ....नैना तुम खोखली हो गयी थी और इसका अनुमान मुझे पहले से था ...खोखलापन कहाँ जीने देता है इंसान को !उसी का परिणाम है ये हादसा .'' पुनीता ने ये सोचते सोचते मुंह अपनी हथेलियों से ढँक लिया था और रो पड़ी थी .
               नैना की तेरहवी पर जब उसकी कोठी पर पहुंची थी पुनीता तब अभि दौड़कर आया था पुनीता के पास और उसने पूछा था -'' मौसी व्हाई मॉम हैज़ डन  दिस ? ....मेरा भी ख्याल नहीं किया .'' पुनीता उसे सांत्वना देते हुए बोली थी -'' रोओ  नहीं बेटा ..यही ईश्वर की इच्छा थी !'' पर मन में पुनीता के बस इतना आया था '' अभि तेरा ख्याल किया होता तो शायद नैना हमारे बीच ही होती आज .''


शिखा कौशिक 'नूतन'

सोमवार, 24 नवंबर 2014

दाग दामन पे न लग जाये तेरे औरत !

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डराई जाती है औरत जन्म से मौत तक ,
दाग दामन पे न लग जाये तेरे औरत !
.........................................
है दुनिया मर्दों की और तू कमजोर है ,
तेरी देह के शिकारी घूमते हर ओर हैं ,
यूँ तो महफूज़ नहीं चारदीवारी में भी तू ,
हुई आज़ाद तो फिर तेरी नहीं खैर है ,
इसी दहशत में नहीं लांघती औरत चौखट !
दाग दामन पे न लग जाये तेरे औरत !
......................................................................
झेला वनवास सिया ने लांघकर रेखा ,
हुआ अन्याय मगर मौन हो सबने देखा ,
नहीं मतलब किसी को पाक थी नापाक थी ,
भुगतती मर्द के दुष्कर्मों का औरत लेखा ,
कभी जलकर कभी कटकर बचाई है अस्मत !
दाग दामन पे न लग जाये तेरे औरत !
.....................................................
कटी जुबान अगर अपना हक़ मांग लिया ,
सवाल पूछने को बेहयाई नाम दिया ,
मिला के आँख जो कर ली खिलाफत एक दिन ,
'चढ़ा दो फांसी पे 'मर्द ने फरमान दिया ,
मुकद्दर बन गया औरत का है बुर्क़ा-घूंघट  !
दाग दामन पे न लग जाये तेरे औरत !

शिखा कौशिक 'नूतन'

ग़ज़ल---- उनके अश्कों को ...डा श्याम गुप्त...



              ग़ज़ल---- उनके अश्कों को


उन के अश्कों को पलकों से चुरा लाये हैं |

उनके गम को हम खुशियों से सजा आये हैं


आप मानें या न मानें यह तहरीर मेरी ,

उनके अशआर ही ग़ज़लों में उठा लाये हैं|



उस दिए ने ही जला डाला आशियाँ मेरा ,

जिसको बेदर्द हवाओं से बचा लाये हैं |



याद करने से भी दीदार न होता उनका,

इश्क में यूंही तड़पने की सजा पाए हैं|



प्यार में दर्द का अहसास कहाँ होता है,

प्यार में ज़ज्ब दिलों को ही जख्म भाये हैं|



प्रीति है भीनी सी बरसात क्या आलम कहिये,

रूह क्या अक्स भी आशिक का भीग जाए है|



श्याम' वो करते हैं शक मेरे ज़ज्वातों पे,

हम से ही दर्द के नगमे जहां में आये हैं||


मंगलवार, 18 नवंबर 2014

इंदिरा प्रियदर्शिनी :भारत का ध्रुवतारा

इंदिरा प्रियदर्शिनी :भारत का ध्रुवतारा 

जब ये शीर्षक मेरे मन में आया तो मन का एक कोना जो सम्पूर्ण विश्व में पुरुष सत्ता के अस्तित्व को महसूस करता है कह उठा कि यह उक्ति  तो किसी पुरुष विभूति को ही प्राप्त हो सकती है  किन्तु तभी आँखों के समक्ष प्रस्तुत हुआ वह व्यक्तित्व जिसने समस्त  विश्व में पुरुष वर्चस्व को अपनी दूरदर्शिता व् सूक्ष्म सूझ बूझ से चुनौती दे सिर झुकाने को विवश किया है .वंश बेल को बढ़ाने ,कुल का नाम रोशन करने आदि न जाने कितने ही अरमानों को पूरा करने के लिए पुत्र की ही कामना की जाती है किन्तु इंदिरा जी ऐसी पुत्री साबित हुई जिनसे न केवल एक परिवार बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र गौरवान्वित अनुभव करता है  और  इसी कारण मेरा मन उन्हें ध्रुवतारा की उपाधि से नवाज़ने का हो गया और मैंने इस पोस्ट का ये शीर्षक बना दिया क्योंकि जैसे संसार के आकाश पर ध्रुवतारा सदा चमकता रहेगा वैसे ही इंदिरा प्रियदर्शिनी  ऐसा  ध्रुवतारा थी जिनकी यशोगाथा से हमारा भारतीय आकाश सदैव दैदीप्यमान  रहेगा।
       १९ नवम्बर १९१७ को इलाहाबाद के आनंद भवन में जन्म लेने वाली इंदिरा जी के लिए श्रीमती सरोजनी नायडू जी ने एक तार भेजकर कहा था -''वह भारत की नई आत्मा है .''
       गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने उनकी शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् शांति निकेतन से विदाई के समय नेहरु जी को पत्र में लिखा था -''हमने भारी मन से इंदिरा को  विदा  किया है .वह इस स्थान की शोभा थी  .मैंने उसे निकट से देखा है  और आपने जिस प्रकार उसका लालन पालन किया है उसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहा जा सकता .''   सन १९६२ में चीन ने विश्वासघात करके भारत  पर आक्रमण किया था तब देश  के कर्णधारों की स्वर्णदान की पुकार पर वह प्रथम भारतीय महिला थी जिन्होंने अपने समस्त पैतृक  आभूषणों को देश की बलिवेदी पर चढ़ा दिया था इन आभूषणों में न जाने कितनी ही जीवन की मधुरिम स्मृतियाँ  जुडी हुई थी और इन्हें संजोये इंदिरा जी कभी कभी प्रसन्न हो उठती थी .पाकिस्तान युद्ध के समय भी वे सैनिकों के उत्साहवर्धन हेतु युद्ध के अंतिम मोर्चों तक निर्भीक होकर गयी .
आज देश अग्नि -५ के संरक्षण  में अपने को सुरक्षित महसूस कर रहा है इसकी नीव में भी इंदिरा जी की भूमिका को हम सच्चे भारतीय ही महसूस कर सकते हैं .भूतपूर्व राष्ट्रपति और भारत में मिसाइल कार्यक्रम  के जनक डॉ.ऐ.पी.जे अब्दुल कलाम बताते हैं -''१९८३ में केबिनेट ने ४०० करोड़ की लगत वाला एकीकृत मिसाइल कार्यक्रम स्वीकृत किया .इसके बाद १९८४ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी डी.आर.डी एल .लैब  हैदराबाद में आई .हम उन्हें प्रैजन्टेशन दे रहे थे.सामने विश्व का मैप टंगा था .इंदिरा जी ने बीच में प्रेजेंटेशन रोक दिया और कहा -''कलाम !पूरब की तरफ का यह स्थान देखो .उन्होंने एक जगह पर हाथ रखा ,यहाँ तक पहुँचने वाली मिसाइल कब बना सकते हैं ?"जिस स्थान पर उन्होंने हाथ रखा था वह भारतीय सीमा से ५००० किलोमीटर दूर था .
    इस तरह की इंदिरा जी की देश प्रेम से ओत-प्रोत घटनाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है और हम आज देश की सरजमीं पर उनके प्रयत्नों से किये गए सुधारों को स्वयं अनुभव करते है,उनके खून की एक एक बूँद हमारे देश को नित नई ऊँचाइयों पर पहुंचा रही है और आगे भी पहुंचती रहेगी.
                  आज का ये दिन हमारे देश के लिए पूजनीय दिवस है और इस दिन हम सभी  इंदिरा जी को श्रृद्धा  पूर्वक  नमन करते है .
              शालिनी कौशिक
           [कौशल ]

जन्म -दिवस पर लौह महिला को शत शत नमन !!!

     जन्म -दिवस पर  लौह महिला को शत  शत  नमन  !!!


इंदिरा जी के जीवन  से  सम्बंधित  जानकारी  जो भी अंतर्जाल पर मौजूद थी मैं जुटा लायी हूँ आप सभी के लिए -[साभार विकिपीडिया से ]

smt.indira gandhi 

इंदिरा प्रियदर्शिनी गाँधी (जन्म उपनाम: नेहरू) (19 नवंबर १९१७-31 अक्टूबर 1984) वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं।



इन्दिरा का जन्म 19 नवंबर 1917 को राजनीतिक रूप से प्रभावशाली नेहरू परिवार में हुआ था। इनके पिताजवाहरलाल नेहरू और इनकी माता कमला नेहरू थीं। इन्दिरा को उनका "गांधी" उपनाम फिरोज़ गाँधी से विवाह के पश्चात मिला था। इनका मोहनदास करमचंद गाँधी से न तो खून का और न ही शादी के द्वारा कोई रिश्ता था। इनके पितामह मोतीलाल नेहरू एक प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी नेता थे। इनके पिता जवाहरलाल नेहरू भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे और आज़ाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री रहे।
1934–35 में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात, इन्दिरा ने शान्तिनिकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा निर्मित विश्व-भारती विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ही इन्हे "प्रियदर्शिनी" नाम दिया था। इसके पश्चात यह इंग्लैंड चली गईं और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में बैठीं, परन्तु यह उसमे विफल रहीं, और ब्रिस्टल के बैडमिंटन स्कूल में कुछ महीने बिताने के पश्चात, 1937 में परीक्षा में सफल होने के बाद इन्होने सोमरविल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में दाखिला लिया। इस समय के दौरान इनकी अक्सर फिरोज़ गाँधी से मुलाकात होती थी, जिन्हे यह इलाहाबाद से जानती थीं, और जो लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में अध्ययन कर रहे थे। अंततः 16 मार्च 1942 को आनंद भवन, इलाहाबाद में एक निजी आदि धर्म ब्रह्म-वैदिक समारोह में इनका विवाह फिरोज़ से हुआ
ऑक्सफोर्ड से वर्ष 1941 में भारत वापस आने के बाद वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में शामिल हो गयीं।
1950 के दशक में वे अपने पिता के भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान गैरसरकारी तौर पर एक निजी सहायक के रूप में उनके सेवा में रहीं। अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1964 में उनकी नियुक्ति एकराज्यसभा सदस्य के रूप में हुई। इसके बाद वे लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मत्री बनीं।[1]
श्री लालबहादुर शास्त्री के आकस्मिक निधन के बाद तत्कालीन कॉंग्रेस पार्टी अध्यक्ष के. कामराज इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में निर्णायक रहे। गाँधी ने शीघ्र ही चुनाव जीतने के साथ-साथ जनप्रियता के माध्यम से विरोधियों के ऊपर हावी होने की योग्यता दर्शायी। वह अधिक बामवर्गी आर्थिक नीतियाँ लायीं और कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया। 1971 के भारत-पाक युद्ध में एक निर्णायक जीत के बाद की अवधि में अस्थिरता की स्थिती में उन्होंने सन् 1975 में आपातकाल लागू किया। उन्होंने एवं कॉंग्रेस पार्टी ने 1977 के आम चुनाव में पहली बार हार का सामना किया। सन् 1980 में सत्ता में लौटने के बाद वह अधिकतर पंजाब के अलगाववादियों के साथ बढ़ते हुए द्वंद्व में उलझी रहीं जिसमे आगे चलकर सन् 1984 में अपने ही अंगरक्षकों द्वारा उनकी राजनैतिक हत्या हुई।


                                                 जीवन के अंतिम क्षण  तक  
                            खून की आखिरी  बूँद  शेष  रहने  तक  
                                                        देश  सेवा  में  संलग्न  लौह  महिला  
                          को  शत  शत  नमन  !!!
                               

 शिखा कौशिक