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रविवार, 17 दिसंबर 2017

गरमागरम मामला -लघुकथा

कॉलेज के स्टाफ रूम में  पुरुष सहकर्मियों के साथ यूँ तो रोज़ किसी न किसी मुद्दे पर विचार विनिमय होता रहता था पर आज निवेदिता को दो पुरुष सहकर्मियों की उसके प्रति की गयी टिप्पणी और उससे भी बढ़कर प्रयोग की गयी भाषा बहुत अभद्र लगी थी . हुआ ये था कि दिसंबर माह में पड़ रही सर्दी के कारण निवेदिता ने लॉन्ग गरम  कोट पहना हुआ था  ,इसी पर टिप्पणी करता हुआ  एक पुरुष सहकर्मी निवेदिता को लक्ष्य कर बोला- 'देखो मैडम को आज कितनी सर्दी लग रही है ,लॉन्ग गरम कोट ,नीचे पियोर वूलन के कपडे !''इस पर दूसरे पुरुष सहकर्मी ने भी उसका साथ देते हुए कहा-'' बहुत ही गरमागरम मामला है .'' ये सुनकर पहला पुरुष सहकर्मी ठहाका लगता हुआ बोला -'' अरे आप भी क्या कह रहे हो ....गरमागरम मामला .'' और उसके ये कहते ही दोनों मिलकर मुस्कुराने लगे और निवेदिता का ह्रदय पुरुष के इस आचरण पर क्षुब्ध हो उठा जो स्त्री को हर समय इस प्रकार प्रताड़ित करने से  बाज नहीं आता .निवेदिता ने सोचा कि वो इनसे पूछे कि क्या आप लोग अपनी बहन के साथ बाहरी पुरुषों को ऐसी मजाक करने की इजाज़त  दें सकेंगें ...यदि नहीं तो आप मेरे साथ ऐसी मज़ाक कैसे कर सकते हैं ?'' पर ये शब्द निवेदिता के मन में ही दबकर रह गए .
शिखा  कौशिक नूतन 

शनिवार, 2 मई 2015

जीवन-यात्रा



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जीवन-यात्रा

मशहूर उद्योगपति की पत्नी और दो किशोर पुत्रों की माँ हेम जब भी एकांत में बैठती तब उसकी आँखों के सामने विवाह के पूर्व की  घटना का एक-एक दृश्य घूमने लगता .कॉलेज में उस दिन वो सरस से आखिरी बार मिली थी .उसने सरस से कहा था कि -'' चलो भाग चलते हैं वरना मेरे पिता जी मेरा विवाह कहीं और कर देंगें !'' इस बात पर सरस मुस्कुराया था और नम्रता के साथ बोला था -'' हेम ये सही नहीं है .हम अपना सपना पूरा करने के लिए तुम्हारे पिता जी की इज़्ज़त मिटटी में नहीं मिला सकते .घर से भागकर तुम सबकी नज़रों में गिर जाओगी और मैं एक आवारा प्रेमी घोषित हो कर रह जाऊंगा .अगर हमारा प्यार सच्चा है तो तुम अपने पिता जी को समझाने  में सफल रहोगी अन्यथा वे जहाँ कहें तुम विवाह-बंधन में बंध जाना .'' हेम सरस की ये बातें सुनकर रूठकर चली आई थी .उसने आज तक न पिता से सरस के बारे में कोई बात की थी और अब निश्चय कर लिया था कि पिता जी जहाँ कहेंगें वहीँ विवाह कर लूंगी पर . हेम के  आश्चय की सीमा न रही थी कि अब पिता जी ने उसके विवाह की बात करना ही छोड़ दिया था फिर एक दिन माँ हेम के कमरे में आई एक लड़के का फोटो हाथ में लेकर और हेम को दिखाते हुए बोली -'' तुम्हारे पिता जी ने इस लड़के को तुम्हारे लिए पसंद कर लिया है .'' हेम ने पहले तो गौर से फोटो को नहीं देखा पर एकाएक उसने माँ के हाथ से लगभग छीनते  हुए फोटो को ले लिया और हर्षमिश्रित स्वर में बोली -'' ये तो सरस हैं .'' माँ फोटो हेम से वापस लेते हुए बोली -'' हां ! ये सरस है और इसमें तुझसे ज्यादा समझ है . तू क्या सोचती है तेरे पिता जी को ये नहीं पता था कि तू सरस से प्रेम करती है और घर से भाग जाने  तक तो तैयार  थी .अरे ........ये सब  जानते  थे  .सरस की भलमनसाहत ही भा  गयी इन्हें और अपने एकलौते होने वाले दामाद को अपने साथ बिजनेस में लगा लिया .वहां भी सरस ने अपनी योग्यता साबित की .तेरा तो नाम ही हेम है पर सरस तो सच्चा सोना है !'' माँ के ये कहते ही हेम माँ से लिपटकर कर रो पड़ी थी .आज जब हेम ये सब अतीत में हुई बातों में खोयी थी तभी किसी ने उसके कंधें पर हौले से हाथ रखा तो वह समझ गयी ये सरस ही हैं .उसके मन में आया -'' सरस के बिना उसकी जीवन -यात्रा कितनी रसहीन होती इसकी कल्पना करना भी कठिन है !''

शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

''कॉलेज जाना है या शादी ब्याह में !''



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''माँ मैं कौन सी पोशाक पहनूं ?'' चिया ने चहकते हुए माँ से पूछा तो माँ ने उदासीन भाव से कहा -'' कुछ भी जो शालीन हो वो पहन लो . चिया ने आर्टिफिशल ज्वेलरी दिखाते हुए माँ से पूछा -'' माँ ये माला का सैट कैसा लगेगा मुझ पर ? माँ ने उड़ती-उड़ती नज़र चिया की ज्वेलरी पर डाली और सुस्त से स्वर में बोली -'' हां...............ठीक-ठाक ही है .'' चिया ने अपने लम्बे नाख़ून जो नेल पॉलिश से सजाये थे माँ की ओर करते हुए कहा - माँ देखो ना कैसे लग रहे हैं !'' माँ ने उखड़ते हुए कहा -'' क्या चिया ...कब से दिमाग खाए जा रही है ....पोशाक , ज्वैलरी ,नाखून ...बेटा एक बार कोर्स की किताबे भी देख ले ...कॉलेज जाना है तुझे कहीं शादी -ब्याह में नहीं ..समझी !'' चिया ने माँ की ओर चिढ़ते हुए देखा और आईने  के सामने के खड़ी  होकर बाल संवारने लगी .

शिखा  कौशिक  'नूतन '

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

''और फूल बिखर गया ''

''और फूल बिखर गया ''
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उस कँटीले जंगल में वो अल्हड़ सी कली निर्भीक होकर मंद-मंद आती समीर के साथ झूल लेती और जब हंसती तो उसके चटकने की मधुर ध्वनि से हर काँटा ललचाई नज़रों से उसे देखने लगता .वो खुद को पत्तों में छिपा लेना चाहती पर कहाँ छिप पाती !! फिर वो कली खिलकर फूल बन गयी .काँटों ने उसे धमकाते हुए कहा -'' हम तुम्हारी रक्षा करेंगें वरना कोई  तुमको तोड़ कर ले जायेगा ...ज्यादा मत मुस्कुराया करो ....न इठलाया करो .न चंचल पवन के झोंको से मित्रता रखो ...तुम कोमल सा एक फूल भर हो ...तुम पर भँवरे भी मंडराने आयेंगें .जो तुम्हारा रस चूसकर निर्लज्जता के साथ तुम्हारा उपहास उड़ाते हुए तुम्हें छोड़कर चले जायेंगें .फूल बनी वो कली उनकी बातें सुनकर सोच में पड़ गयी . ...घबरा गयी . उसका सौंदर्य घटने लगा .सर्वप्रथम उसकी सुरभि नष्ट हो गयी फिर पंखुड़ियों के रंग फीके पड़ने लगे .कली बने फूल  की पंखुड़ियां स्वयं पर लगी पाबंदियों के दुःख के कारण बिखरने लगी . अपने अंतिम क्षणों में कली बने फूल ने देखा कि काँटों ने भी उससे मुंह फेर लिया था .

शिखा कौशिक 'नूतन'

सोमवार, 6 अप्रैल 2015

शायद इसे ही प्यार कहते हैं -लघु कथा

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     रमन आज अपने जीवन के साठ वें दशक में प्रवेश कर रहा था . उसकी जीवन संगिनी विभा को स्वर्गवासी हुए पांच वर्ष हो चुके थे .रमन आज तक नहीं समझ पाया कि एक नारी की प्राथमिकताएं जीवन के हर नए मोड़ पर कैसे बदलती जाती हैं . जब उसका और विभा का प्रेम-प्रसंग शुरू हुआ था तब विभा से मिलने जब भी वो जाता विभा उससे पूछती -'' आज मेरे लिए क्या खास लाये हो ?'' और मैं मुस्कुराकर एक खूबसूरत सा फूल उसके जूड़े में सजा देता .विवाह के पश्चात विभा ने कभी नहीं पूछा कि मैं उसके लिए क्या लाया हूँ बल्कि घर से चलने से पहले और घर पहुँचने पर बस उसके लबों पर होता -'' पिता जी की दवाई ले आना , माता जी का चश्मा टूट गया है ..ठीक करा लाना ,  और भी बहुत कुछ ..मानों मेरे माता-पिता मुझसे बढ़कर अब विभा के हो चुके थे . बच्चे हुए तो बस उनकी फरमाइश पूरी करवाना ही विभा का काम रह गया -''बिट्टू को साईकिल दिलवा  दीजिये ....मिनी को उसकी पसंद की गुड़िया दिलवा लाइए ...'' रमन ने मन में सोचा  -'' मैं चकित रह जाता आखिर एक प्रेमिका से पत्नी बनते ही कैसे विभा बदल गयी .अपने लिए कुछ नहीं और परिवार की छोटी-से छोटी जरूरत का ध्यान रखना . शायद इसे ही प्यार कहते हैं जिसमे अपना सब कुछ भुलाकर प्रियजन से जुड़े हर किसी को प्राथमिकता दी जाती है .'' रमन ने लम्बी साँस ली और विभा की यादों में खो गया क्योंकि यही उसके जीवन के साथ वे दशक में प्रवेश का सबसे प्यारा उपहार था .

शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

''भाव ही सबसे सुन्दर ''-लघु कथा


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''भाव ही सबसे सुन्दर ''-लघु कथा
लड़के ने कहा 'तुम्हारी आँखें बहुत सुन्दर हैं !'' लड़की मुस्कुराई और बोली -'' आँखें नहीं ...इनमें तुम्हारे प्रति झलकता प्यार का भाव सुन्दर है !'' लड़का बोला -'' तुम्हारे होंठ गुलाब की पंखुड़ियों के समान सुन्दर हैं !'' लड़की हँसी ,उसके गालो पर लाली छा गयी और वो बोली -''मेरे होंठ सुन्दर नहीं ..ये तुम्हारे कोमल भाव हैं मेरे प्रति जिसके कारण तुम्हें ये गुलाब की पंखुड़ियां लग रहे हैं ..नहीं तो ये बहुत साधारण हैं !'' लड़के ने कहा -'' तुम्हारे गालो पर आई ये लालिमा कितनी मादक है !'' लड़की ने कहा-''ये तो तुहारे द्वारा की जा रही प्रशंसा के कारण उत्पन्न लज्जा भाव का कमाल है !'' लड़का झुंझलाकर बोला -''ओफ्फो !!! मैं तुम्हारी सुंदरता की प्रशंसा कर रहा हूँ और तुम हो कि भाव ..भाव ...भाव लिए बैठी हो !'' लड़की ठहाका लगाकर बोली -'' जो जीवित है उसमे जो भी सुंदरता है वो भावों की है ..देह की नहीं ! तुम ऐसा करना जब मैं मर जाऊं तब इस देह के प्रशंसा करना तब तुम्हें पता चलेगा कि भावों से रहित सुन्दर देह कितनी वीभत्स होती है !!''


शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 17 मार्च 2015

सुहागन से विधवा ही भली .'' -लघु- कथा



ऐसी सुहागन से विधवा  ही  भली .'' -लघु- कथा
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पति के शव के पास बैठी ,मैली धोती के पल्लू से मुंह ढककर ,छाती पीटती ,गला  फाड़कर चिल्लाती सुमन को बस्ती की अन्य महिलाएं ढाढस  बंधा रही थी  पल्लू के भीतर  सुमन की आँखों से एक  भी  आंसू  नहीं  बह  रहा था  और  उसका दिल  कह  रहा था  -''अच्छा   हुआ हरामजादा ट्रक  के नीचे  कुचलकर मारा  गया  . मैं  मर  मर  कर  घर  घर  काम करके  कमाकर   लाती   और  ये   सूअर   की औलाद  शराब में  उड़ा   देता .मैं  रोकती  तो  लातों -घूसों से  इतनी   कुटाई   करता   कि हड्डी- हड्डी  टीसने  लगती  . जब चाहता  बदन नोचने    लग  जाता  और अब  तो जवान  होती  बेटी  पर भी ख़राब  नज़र  रखने  लगा  था  .कुत्ता  कहीं  का  ....ठीक  टाइम  से  निपट  गया  .ऐसी  सुहागन  से  तो मैं विधवा  ही  भली .'' सुमन  मन  में ये सब सोच  ही  रही  थी  कि  आस  पास  के मर्द  उसके  पति  की  अर्थी  उठाने  लगे  तो सुमन  बेसुध  होकर बड़बड़ाने लगी -  ''   हाय ...इब मैं किसके लिए सजूँ सवरूंगी ......हाय मुझे भी ले चलो ..मैं भी इनकी चिता पर जल मरूंगी ....'' ये कहते कहते वो उठने लगी तो इकठ्ठी  हुई महिलाओं ने उसे कस कर पकड़ लिया .उसने चूड़ी पहनी कलाई ज़मीन पर दे मारी
सारी चूड़ियाँ चकनाचूर हो गयी और सुमन  दिल ही दिल में सुकून   की साँस लेते हुए बोली  -'' तावली ले जाकर फूंक दो इसे ...और बर्दाश्त नहीं कर सकती मैं .''

शिखा कौशिक 'नूतन'