रविवार, 20 मार्च 2022

अभिव्यक्त क्या करे " शालिनी "

 


भावुकता स्नेहिल ह्रदय ,दुर्बलता न नारी की ,
संतोषी मन सहनशीलता, हिम्मत है हर नारी की .
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भावुक मन से गृहस्थ धर्म की , नींव वही जमाये है ,
पत्थर दिल को कोमल करना ,नहीं है मुश्किल नारी की.
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होती है हर कली पल्लवित ,उसके आँचल के दूध से ,
ईश्वर के भी करे बराबर ,यह पदवी हर नारी की .
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जितने भी इस पुरुष धरा पर ,जन्मे उसकी कोख से ,
उनकी स्मृति दुरुस्त कराना ,कोशिश है हर नारी की .
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प्रेम प्यार की परिभाषा को ,गलत रूप में ढाल रहे ,
सही समझ दे राह दिखाना ,यही मलाहत नारी की .
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भटके न वह मुझे देखकर ,भटके न संतान मेरी ,
जीवन की हर कठिन डगर पर ,इसी में मेहनत नारी की .
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मर्यादित जीवन की चाहत ,मर्म है जिसके जीवन का ,
इसीलिए पिंजरे के पंछी से ,तुलना हर नारी की .
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बेहतर हो पुरुषों का जीवन ,मेरे से जो यहाँ जुड़े ,
यही कहानी कहती है ,यहाँ शहादत नारी की .
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अभिव्यक्त क्या करे ''शालिनी ''महिमा उसकी दिव्यता की, 
कैसे माने कमतर शक्ति ,हर महिका सम नारी की .
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                      शालिनी कौशिक 
                                एडवोकेट 
                      कांधला (शामली) 

शब्दार्थ -मलाहत-सौंदर्य 
                                     

1 टिप्पणी:

कविता रावत ने कहा…

मर्यादित जीवन की चाहत ,मर्म है जिसके जीवन का ,
इसीलिए पिंजरे के पंछी से ,तुलना हर नारी की .
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अभिव्यक्त क्या करे ''शालिनी ''महिमा उसकी दिव्यता की,
कैसे माने कमतर शक्ति ,हर महिका सम नारी की .