आंचल में है दूध और आंखों में पानी.
और यह उपरोक्त उक्ति सही कही जाएगी 10 मार्च 2022 को आए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के परिणामों को देखने के पश्चात, नारी समाज की संघर्षशील महिला प्रत्याशियों की जिस तरह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जमानत जब्त हुई है वह नारी को लेकर आम जनता की सोच को दिखाने के लिए पर्याप्त है.
देश की राजनीति में संघर्षरत कॉंग्रेस पार्टी द्वारा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 40% महिलाओं को टिकट दिए गए. कॉंग्रेस पार्टी की 159 महिला उम्मीदवारों में मात्र एक महिला उम्मीदवार विजयी हुई और 158 उम्मीदवारों को 3000 से कम वोट मिलें जिससे उन सभी बाकी महिला उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई.
संघर्षशील, गरीब, पीड़ित-शोषित और दलित समाज की महिलाओं को कॉंग्रेस पार्टी ने टिकट दिए. कॉंग्रेस पार्टी इस समय जनता की नजरों में उसके लिए कुशल नेतृत्व वाली पार्टी नहीं है किन्तु जिन महिलाओं को कॉंग्रेस पार्टी ने टिकट दिए थे, वे तो हमारे बीच से ही थी और हमने स्वयं उनका संघर्ष देखा था. कॉंग्रेस पार्टी की कुछ विशेष महिला उम्मीदवारों का परिचय इस प्रकार है -
1 - आशा सिंह - उन्नाव सदर सीट से एक रेप पीड़िता की माँ, उस रेप पीड़िता की माँ, जिसके रेप के आरोप में सत्तारूढ़ पार्टी का विधायक ही आरोपी हो, ऐसे में आशा देवी के संघर्ष का अंदाजा लगाया जाना आम जनता के लिए शायद कठिन नहीं होगा. आशा सिंह की मदद के लिए कॉंग्रेस पार्टी ने राजस्थान और मध्य प्रदेश के कार्यकर्ताओं की टीम लगाई और आशा सिंह ने घर घर जाकर अपनी पीड़ा सबके सामने रखी उसके बाद भी संवेदनहीन जनता द्वारा इन्हें वोट मिली मात्र - 1555- जमानत जब्त 👎
2- सदफ जफर- नागरिकता संशोधन अधिनियम और एन आर सी के विरोध में जेल जा चुकी सदफ जफर को कॉंग्रेस पार्टी ने लखनऊ मध्य से टिकट दिया था. सदफ केंद्र सरकार के कानूनों का विरोध कर रही थी, सही कर रही थी या गलत, ये न्यायालय के निर्णय के अधीन है, अपनी जनता के हितों को लेकर लड़ रही थी, कोई अनैतिक कार्य नहीं कर रही थी, सदफ जफर ने खुलासा किया था, 'मुझे महिला पुलिस स्टेशन में पुलिस हिरासत में बेरहमी से पीटा गया था। यहां तक कि पुरुष पुलिस वालों ने भी मुझे पीटा। पुरुष पुलिस अधिकारियों ने मेरे पेट में लात मारी और उन्होंने मेरे बाल बेरहमी से खींचे। मेरे परिवार को मेरी गिरफ्तारी के बारे में सूचित नहीं किया गया. सदफ जफर ने लखनऊ सेंट्रल सीट से कांग्रेस का टिकट मिलने के बाद एनडीटीवी से कहा कि वह उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने और उनका समाधान करने के लिए लड़ेंगी। सदफ जफर ने कहा है, मैं प्रियंका गांधी की शुक्रगुजार हूं और मैं पहले भी बहादुर थी अब भी बहादुर हूं।'' संविधान ने सभी भारतीय नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है. कॉंग्रेस पार्टी ने सही समझकर उन्हें टिकट दिया किन्तु जनता ने नारी का अपनी आदत के अनुसार साथ नहीं दिया. उन्हें वोट मिली - 2927-जमानत जब्त 👎
3- निदा अहमद - टीवी पत्रकारिता छोडकर राजनीति में सेवा का जज्बा ले ETV और समाचार प्लस की तेज तर्रार पत्रकार निदा अहमद को कॉंग्रेस ने सम्भल से टिकट दिया. राजनीतिक परिवार से होने के बावजूद जनता को ये राजनीति में योग्य नेतृत्व देने वाली नजर नहीं आई और वोट मिली मात्र - 2256- ज़मानत जब्त 👎
5- नेहा तिवारी - खुशी दुबे की बड़ी बहन, जिन्हें कॉंग्रेस पार्टी द्वारा खुशी दुबे के साथ हुए अन्याय को देखते हुए, फिर खुशी दुबे की माँ की वोट गायब होने के कारण टिकट दिया गया, वो खुशी दुबे, जो राजनीतिक साजिश का शिकार है. बिकरू कांड पीड़िता, वो कांड जिस के दो घटनाक्रम ने तमाम सवाल खड़े किए हैं। सीधे पुलिस पर ये सवाल थे। मगर पुलिस ने किसी की एक न सुनी। हर पहलू को नजरअंदाज किया और मनमर्जी कार्रवाई की। हम बात कर रहे हैं नाबालिग खुशी दुबे की जिन्हें 17 धाराओं का आरोपी बना जेल भेजने और मनु पांडेय पर मेहरबानी करने की।तत्कालीन एसएसपी ने खुशी को निर्दोष बता जेल से रिहा कराने की बात कही थी लेकिन दो दिन के भीतर पुलिस मुकर गई थी। लिहाजा खुशी आज भी महिला शरणालय में बंद है। दूसरी तरफ मनु पांडेय आजाद है। अमर दुबे की 29 जून 2020 को शादी हुई थी। 30 जून को खुशी दुबे बिकरू गांव ब्याह कर पहुंची थी। एक जुलाई का दिन बीता और दो जुलाई की रात विकास दुबे ने कांड कर दिया। पुलिस ने इसमें खुशी दुबे को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. खुशी दुबे को न्याय दिलाने के लिए कॉंग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी जी आगे आई और खुशी दुबे के खिलाफ सभी राजनीतिक कुचक्रों को ठेंगा दिखाकर उनकी बड़ी बहन नेहा तिवारी को कानपुर की कल्याणपुर सीट से टिकट दिया किन्तु जनता ने न्याय का साथ नहीं दिया, वोट मिली मात्र - 2302- जमानत जब्त 👎
ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हो रहा है, नारी के प्रति आम जनता और राजनीतिक दलों का हमेशा से ही दमनात्मक रवैय्या रहा है. सभी जानते हैं हमारे देश के राज्य मणिपुर की महान नारी शक्ति - इरोम चानू शर्मिला को, इनके साथ भी मणिपुर की जनता और राजनीति ने जो साजिश की है वह भी शर्मनाक इतिहास में सम्मिलित की जाएगी. पिछले मणिपुर विधानसभा चुनाव इस मामले में ख़ास रहा क्योंकि 16 साल के अनशन के बाद मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला चुनाव मैदान में थीं. इरोम ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफस्पा) के ख़िलाफ़ 16 वर्ष तक भूख हड़ताल की थी. भूख हड़ताल ख़त्म करने के बाद वह इस उम्मीद के साथ चुनाव में उतरी थीं कि जीत के बाद वे राजनीति में आएंगी और इस क़ानून को ख़त्म करेंगी.इरोम पीपुल्स रिइंसर्जेंस एंड जस्टिस अलाएंस नाम की पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतरी थीं. इरोम से ज़्यादा वोट नोटा को मिले. मणिपुर की जनता ने संघर्ष की राजनीति की जगह उस यथास्थितिवादी राजनीति का चुनाव किया जिसके ख़िलाफ़ इरोम 16 वर्षों से लड़ रही थीं. इरोम विधानसभा चुनाव में थउबल सीट से मुख्यमंत्री ओकराम ईबोबी सिंह के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ीं, लेकिन उन्हें मात्र 90 वोट ही मिल सके. इस सीट पर उनसे ज़्यादा वोटा नोटा (नन आॅफ द अबव) को मिला. 143 लोगों ने नोटा पर बटन दबाया, जबकि इरोम को मात्र 90 वोट मिले.
कथाकार मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा, इरोम शर्मिला, तुम को तुम्हारे राज्य में केवल नब्बे वोट मिले हैं. तुमने स्त्रियों की सुरक्षा के लिए सोलह साल अनशन उपवास रख कर संघर्ष किया. क्या इस राज्य में नब्बे ही औरतें थीं? नहीं, वोट इसलिये नहीं मिले क्योंकि तुम्हारे ऊपर किसी आका की कृपा नहीं थी, तुमने अपने संघर्ष के दम पर यह फ़ैसला लिया था. मगर हमारे देश की स्त्रियां अपना फ़ैसला आज भी अपने पुरुषों पर छोड़ती हैं.’
संजीव सचदेवा ने फेसबुक पर लिखा है, ‘इरोम शर्मिला तेरी हार तुझे मिले हुए मात्र 90 वोट साबित करते हैं कि जनता को उसके लिए भूखे रहने वाले नेता नहीं पसंद बल्कि हवाई जहाज से उड़ने वाले नोट छीनने वाले खाऊ नेता ही पसंद हैं. तेरी हार यहां के प्रजातंत्र के गिरे हुए स्तर को साबित करती है.’
ये है भारतीय जनता जिसे कभी भोली भाली कहकर बचाया जाता है तो कभी जागरूक कहकर महिमामंडित किया जाता है. जो जब कोई बेटी अपने पिता के उन कार्यों और जीवन भर के उन त्याग-बलिदान के लिए इंसाफ़ मांगने के लिए खड़ी होती है तो उसे विद्वानों की सभा में खड़े होकर कहा जाता है - "कि मुझे तो इससे हेट हो गई" और तब उस बेटी के पिता का उस बेटी के सामने गुणगान करने से न थकने वालों में से एक भी ज़बान उस बेटी के समर्थन में नहीं उठती.
और यही जनता इसी नारी जाति द्वारा गलत के खिलाफ आवाज़ उठाए जाने पर उससे कहती हैं कि - अपनी स्थिति देखनी चाहिए, तू स्वतंत्र है, तुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता आदि कहकर अधर्म के खिलाफ उठते उसके कदमों को रोकने की भरसक कोशिश करती है. ऐसे विद्रूपताओं भरे इस समाज में पता नहीं क्या सोचकर प्रियंका गांधी - लड़की हूं लड़ सकती हूं - का नारा देती हैं जबकि ये जागरूक जनता सिवाय अपने स्वार्थ को आगे बढ़ाने के किसी को आगे नहीं बढ़ाती है क्योंकि अगर बढ़ाती होती तो किसी भी हाल में इरोम चानू शर्मिला, आशा सिंह और नेहा तिवारी को हार का सामना नहीं करना पड़ता. कहा भी गया है -
" तू छोड़ दे कोशिशें इंसान को पहचानने की,
यहां जरूरतों के हिसाब से, सब बदलते नकाब हैं.
अपने गुनाहों पर सौ पर्दे डालकर
हर शख्स कहता है " ज़माना बड़ा खराब है "
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कांधला (शामली)
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