हमारी संविधान व्यवस्था ,कानून व्यवस्था हम सबके लिए गर्व का विषय हैं और समय समय पर इनमे संशोधन कर इन्हें बदलती हुई परिस्थितयों के अनुरूप भी बनाया जाता रहा है किन्तु हमारा समाज और उसमे महिलाओं की स्थिति आरम्भ से ही शोचनीय रही है .महिलाओं को वह महत्ता समाज में कभी नहीं मिली जिसकी वे हक़दार हैं .बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक उसके लिए ऐसे पल कम ही आते हैं जब वह अपने देश के कानून व् संविधान पर गर्व कर सके इसमें देश के कानून की कोई कमी नहीं है बल्कि कमी यहाँ जागरूकता की है इस देश की आधी आबादी लगभग एक तिहाई प्रतिशत में नहीं जानती कि कानून ने उसकी स्थिति कितनी सुदृढ़ कर रखी है .
आज गर्व होता है जब हम लड़कियों को भी स्कूल जाते देखते हैं हालाँकि मैं जिस क्षेत्र की निवासी हूँ वहाँ लड़कियों के लिए डिग्री कॉलिज तक की व्यवस्था है और वह भी सरकारी इसलिए लड़के यहाँ स्नातक हों या न हों लड़कियां आराम से एम्.ए.तक पढ़ जाती हैं और संविधान में दिए गए समान शिक्षा के अधिकार के कारण आज लड़कियां तरक्की के नए पायदान चढ़ रही हैं .
शिक्षा का स्थान तो नारी के जीवन में महत्वपूर्ण है ही किन्तु सर्वाधिक ज़रूरी जो कहा जाता है और जिसके बिना नारी को धरती पर बोझ कहा जाता है वह उसकी जीवन की सबसे बड़ी तकलीफ भी बन जाता है कभी दहेज़ के रूप में तो कभी मारपीट ,कभी तलाक और पता नहीं क्या क्या ,घरेलू हिंसा से संरक्षण विधेयक द्वारा कानून ने सभी महिलाओं की सुरक्षा का इंतज़ाम किया है और ऐसे ही महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा तलाक के ज्यादा अधिकार देकर उन्हें, जबर्दस्ती के सम्बन्ध को जिसे जनम जनम का नाता कहकर उससे ढोने की पिटने की अपेक्षा की जाती है ,मुक्ति का रास्ता भी दिया है महिलाओं को अबला जैसी संज्ञा से मुक्ति दिलाने की हमारे कानून ने बहुत कोशिश की है किन्तु कुछ सामाजिक स्थिति व् कुछ अज्ञानता के चलते वे सहती रहती हैं और इस सम्बन्ध को अपनी बर्दाश्त की हद से भी बाहर तक निभाने की कोशिश करती हैं किन्तु जहाँ शिक्षा का उजाला होगा और कानून का साथ वहाँ ऐसी स्थिति बहुत लम्बे समय तक चलने वाली नहीं है और ऐसे में जब हद पार हो जाती है तो कहीं न कहीं तो विरोध की आवाज़ उठनी स्वाभाविक है और यही हुआ अभी हाल ही में हमारे क्षेत्र की एक युवती ने पारिवारिक प्रताड़ना का शिकार होने पर अपने पति से हिन्दू विधि की धारा १३ -बी में दिए गए पारस्परिक सहमति से तलाक के अधिकार का प्रयोग किया और अपनी ज़िंदगी को रोज रोज की घुटन से दूर किया .
साथ ही आज बहुत सी महिलाएं दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १२५ के तहत भरण पोषण के वाद दायर कर भी अपने पतियों से अपने व् अपने बच्चों के लिए कानून की छाँव में एक सुन्दर व् सार्थक आशियाना का सपना अपनी संतान की आँखों में पाल रही हैं .
भारतीय कानून व् संविधान महिलाओं की समाज में बेहतर स्थिति के लिए प्रयासरत हैं और इसका उदाहरण दामिनी गैंगरेप कांड के बाद इस तरह के मामलों में उठाये गए कानूनी कदम हैं .ऐसे ही विशाखा बनाम स्टेट ऑफ़ राजस्थान के मामले से भी सुप्रीम कोर्ट ने कामकाजी महिलाओं की स्थिति बहुत सुदृढ़ की है जिसके कारण तरुण तेजपाल जैसे सलाखों के पीछे हैं और रिटायर्ड जस्टिस अशोक गांगुली जैसी हस्ती पर कानून की तलवार लटकी।
पर जैसी कि रोज की घटनाएं सामने आ रही हैं उन्हें देखते हुए कानून में अभी बहुत बदलावों की ज़रुरत है इसके साथ ही महिलाओं की आर्थिक सुदृढ़ता की कोशिश भी इस दिशा में एक मजबूत कदम कही जा सकती है क्योंकि आर्थिक सुदृढ़ता ही वह सम्बल है जिसके दम पर पुरुष आज तक महिलाओं पर राज करते आ रहे हैं समाज में स्वयं देख लीजिये जो महिलाएं इस क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी कर रही हैं उनके आगे पुरुष दयनीय स्थिति में ही नज़र आते हैं .और जैसे कि पंचायतों में महिलाओं के लिए स्थान आरक्षित किये गए हैं ऐसे ही अब संसद व् विधान सभाओं में भी ३३% आरक्षण हो जाना चाहिए साथ ही सरकारी नौकरियों में भी उनके लिए स्थानों का आरक्षण बढ़ाये जाने की ज़रुरत है .
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कांधला (शामली)
2 टिप्पणियां:
क्या हमें नहीं लगता कि अब समय नहीं अधिकार मांगने का। क्या नारी को खुद ही इतना सक्षम होकर अपने को साबित नहीं करना चाहिए कि वह किसी से पीछे नहीं रहेगी
Right Kavita ji, I am fully agree with you 👍
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