शनिवार, 30 मई 2015

मेरी पहली दोस्त

जब हुआ मेरा सृजन,
माँ की कोख से|
मैं हो गया अचंभा,
यह सोचकर||

कहाँ आ गया मैं,
ये कौन लोग है मेरे इर्द-गिर्द|
इसी परेशानी से,
थक गया मैं रो-रोकर||

तभी एक कोमल हाथ,
लिये हुये ममता का एहसास|
दी तसल्ली और साहस,
मेरा माथा चूमकर||

मेरे रोने पर दूध पिलाती,
उसे पता होती मेरी हर जरूरत|
चाहती है वो मुझे,
अपनी जान से  भी बढ़कर||

उसकी मौजूदगी देती मेरे दिल को सुकून,
जिसका मेरी जुबां पर पहले नाम आया|
पहला कदम चला जिसकी,
उंगली पकड़कर||

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आवश्यक सूचना

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शुक्रवार, 22 मई 2015

''माँ'


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कोई बला जब हम पर आई ,
माँ को खुद पर लेते देखा !
हुआ हादसा साथ हमारे ,
माँ को बहुत तड़पते देखा !
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हो तकलीफ हमें न कोई ,
साँझ-सवेरे खटते देखा !
कभी नहीं संकट के आगे ,
हमनें माँ को झुकते देखा !
.......................................
ऊपर-नीचे अंदर-बाहर ,
माँ को फिरकी बनते देखा !
नहीं आखिरी दिन तक हमने ,
माँ को थककर सोते देखा !
....................................
जब जब ठोकर खाई हमने ,
माँ को हमें उठाते देखा !
माँ से बढ़कर इस सृष्टि में ,
हमनें नहीं किसी को देखा !
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साँस थामकर हमने माँ को ,
दूर बहुत है जाते देखा !
पूजे जाते भगवानों में ,
माँ का रूप समाते देखा !
शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 9 मई 2015

मातृ दिवस पर ....कविता --माँ ...डा श्याम गुप्त



                            माँ

जितने भी पदनाम सात्विक, उनके पीछे मा होता है |
चाहे धर्मात्मा, महात्मा, आत्मा हो अथवा  परमात्मा |

जो महान सत्कार्य जगत के, उनके पीछे माँ होती है |
चाहे हो वह माँ कौशल्या, जीजाबाई या जसुमति माँ |

पूर्ण शब्द माँ ,पूर्ण ग्रन्थ माँ, शिशु वाणी का प्रथम शब्द माँ |
जीवन की हर एक सफलता, की पहली सीढी होती माँ |

माँ अनुपम है वह असीम है, क्षमा दया श्रृद्धा का सागर |
कभी नहीं रीती होपाती, माँ की ममता रूपी गागर |

माँ मानव की प्रथम गुरू है,सभी सृजन का मूलतंत्र माँ |
विस्मृत ब्रह्मा की स्फुरणा, वाणी रूपी मूलमन्त्र माँ |

सीमित तुच्छ बुद्धि यह कैसे, कर पाए माँ का गुणगान |
श्याम करें पद वंदन, माँ ही करती वाणी बुद्धि प्रदान ||
 
 

शुक्रवार, 8 मई 2015

खुदा नहीं मगर ''माँ' खुदा से कम नहीं होती !


''हमारी हर खता को मुस्कुराकर माफ़ कर देती ;
खुदा नहीं मगर ''माँ' खुदा से कम नहीं होती !
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''हमारी आँख में आंसू कभी आने नहीं देती ;
कि माँ की गोद से बढकर कोई जन्नत नहीं होती !
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''मेरी आँखों में वो नींद सोने पे सुहागा है ;
नरम हथेली से जब माँ मेरी थपकी है देती !
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''माँ से बढकर हमदर्द दुनिया में नहीं होता ;
हमारे दर्द पर हमसे भी ज्यादा माँ ही तो रोती !
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''खुदा के दिल में रहम का दरिया है बहता ;


उसी की बूँद बनकर ''माँ' दुनिया में रहती !
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''उम्रदराज माँ की अहमियत कम नहीं होती ;


ये उनसे पूछकर देखो कि जिनकी माँ नहीं होती .''


शिखा कौशिक

शनिवार, 2 मई 2015

जीवन-यात्रा



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जीवन-यात्रा

मशहूर उद्योगपति की पत्नी और दो किशोर पुत्रों की माँ हेम जब भी एकांत में बैठती तब उसकी आँखों के सामने विवाह के पूर्व की  घटना का एक-एक दृश्य घूमने लगता .कॉलेज में उस दिन वो सरस से आखिरी बार मिली थी .उसने सरस से कहा था कि -'' चलो भाग चलते हैं वरना मेरे पिता जी मेरा विवाह कहीं और कर देंगें !'' इस बात पर सरस मुस्कुराया था और नम्रता के साथ बोला था -'' हेम ये सही नहीं है .हम अपना सपना पूरा करने के लिए तुम्हारे पिता जी की इज़्ज़त मिटटी में नहीं मिला सकते .घर से भागकर तुम सबकी नज़रों में गिर जाओगी और मैं एक आवारा प्रेमी घोषित हो कर रह जाऊंगा .अगर हमारा प्यार सच्चा है तो तुम अपने पिता जी को समझाने  में सफल रहोगी अन्यथा वे जहाँ कहें तुम विवाह-बंधन में बंध जाना .'' हेम सरस की ये बातें सुनकर रूठकर चली आई थी .उसने आज तक न पिता से सरस के बारे में कोई बात की थी और अब निश्चय कर लिया था कि पिता जी जहाँ कहेंगें वहीँ विवाह कर लूंगी पर . हेम के  आश्चय की सीमा न रही थी कि अब पिता जी ने उसके विवाह की बात करना ही छोड़ दिया था फिर एक दिन माँ हेम के कमरे में आई एक लड़के का फोटो हाथ में लेकर और हेम को दिखाते हुए बोली -'' तुम्हारे पिता जी ने इस लड़के को तुम्हारे लिए पसंद कर लिया है .'' हेम ने पहले तो गौर से फोटो को नहीं देखा पर एकाएक उसने माँ के हाथ से लगभग छीनते  हुए फोटो को ले लिया और हर्षमिश्रित स्वर में बोली -'' ये तो सरस हैं .'' माँ फोटो हेम से वापस लेते हुए बोली -'' हां ! ये सरस है और इसमें तुझसे ज्यादा समझ है . तू क्या सोचती है तेरे पिता जी को ये नहीं पता था कि तू सरस से प्रेम करती है और घर से भाग जाने  तक तो तैयार  थी .अरे ........ये सब  जानते  थे  .सरस की भलमनसाहत ही भा  गयी इन्हें और अपने एकलौते होने वाले दामाद को अपने साथ बिजनेस में लगा लिया .वहां भी सरस ने अपनी योग्यता साबित की .तेरा तो नाम ही हेम है पर सरस तो सच्चा सोना है !'' माँ के ये कहते ही हेम माँ से लिपटकर कर रो पड़ी थी .आज जब हेम ये सब अतीत में हुई बातों में खोयी थी तभी किसी ने उसके कंधें पर हौले से हाथ रखा तो वह समझ गयी ये सरस ही हैं .उसके मन में आया -'' सरस के बिना उसकी जीवन -यात्रा कितनी रसहीन होती इसकी कल्पना करना भी कठिन है !''

शिखा कौशिक 'नूतन'