गुरुवार, 22 जनवरी 2015

सातों सुर सातों रंग संग लाती है हर बिटिया !




सातों सुर सातों रंग संग लाती है हर बिटिया !
बेसुरी बदरंग उसके बिन है ये सारी दुनिया !
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इसकी किलकारी इसकी मुस्कानें अंगना में लाती बहारें ,
ले लो गोदी ज़िद करती है , तब बरसें ठंडी फुहारें ,
नन्हें हाथों से ये लुटाती है भोली-भली हज़ारों खुशियां !
सातों सुर सातों रंग संग लाती है हर बिटिया !
बेसुरी बदरंग उसके बिन है ये सारी दुनिया !
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ये ही जननी है , ये ही पुत्री है ,ये ही पत्नी , यही है बहना ,
इसकी ममता का , समर्पण का ,स्नेह का क्या कहना ,
ये कली ही तो चटककर महका देती सारी बगिया !
सातों सुर सातों रंग संग लाती है हर बिटिया !
बेसुरी बदरंग उसके बिन है ये सारी दुनिया !
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इसके सपनों को सच करना है फिर भरेगी ये ऊँची उड़ान ,
इसको आने दो इस दुनिया में ये भी तो प्रभु का वरदान ,
अब चहकने दो मीठा-मीठा सा नन्ही चिड़िया सी प्यारी गुड़िया !
सातों सुर सातों रंग संग लाती है हर बिटिया !
बेसुरी बदरंग उसके बिन है ये सारी दुनिया !


डॉ. शिखा कौशिक 'नूतन'

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (24-01-2015) को "लगता है बसन्त आया है" (चर्चा-1868) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसन्तपञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डा श्याम गुप्त ने कहा…

सच, सुन्दर सार्थक ...

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

बेहतरीन रचना---हार्दिक बधाई।

Unknown ने कहा…

सुन्दर शब्द रचना .. आभार
http://savanxxx.blogspot.in