या देवी सर्व-भूतेषु -- नारी को श्रृद्धा -नमन क्यों नहीं ?
नवरात्र .... देवी रूपा नारी के विभिन्न भाव रूपों की पूजा का उत्सव हैं.....
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तीन देवियाँ ---ग्रीस ( रोमन) |
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त्रि देवी ...मिस्र |
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पार्वती |
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महा भगवती --जिनका वर्णन करने में स्वयं त्रिदेव भी सक्षम नहीं |
सृजन की ईशत-सत्ता, परमतत्व, परब्रह्म की कार्यकारी शक्ति जहां असीम ब्रह्म में प्रकृति, माया या आदि शक्ति है ...वहीं ससीम विश्व में वह शक्ति व नारी
रूपा
है | अतः परमतत्व को समझने के लिए उससे बढ़कर श्रेष्ठतर तत्व और क्या हो सकता है| जहां देवी, दुर्गा, काली, गौरी, लक्ष्मी, राधा, सीता, योगिनी, त्रिपुर सुन्दरी आदि ... शक्ति के विभिन्न नाम-रूपों की पूजा की जाती रही है; वहीं नारी के सखा, माँ, भगिनी, प्रेयसि, पत्नी आदि विभिन्न सामाजिक,
पारिवारिक रूप संसार व जीवन-जगत में महत्वपूर्ण हैं | अतः नारी सदैव ही समाज की केन्द्रीय भूमिका में रहती आयी है| शक्ति-रूपा नारी सदैव ही मानव के श्रृद्धा व अन्तःस्फूर्ति का केंद्र है एवं सदा होना चाहिए |
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूपी जीवन तत्व व संसार तत्व को समझने व उसकी प्राप्ति व सिद्धि के लिए मनुष्य रिद्धि-सिद्धि,
योग,
व्यापार,
कला
, राजनीति, धर्म आदि का अवलंबन लेते हैं | परन्तु जीवन तत्व स्वयं जिसका प्रलेख है एवं परमात्म-सत्ता स्वयं को व्यक्त करने हेतु जिसका आलंबन लेती है उस अखंड मातृसत्ता से अन्यथा आलंबन इस संसार चक्र के हेतु और क्या हो सकता है ? तो उसी "या देवी सर्व भूतेषु
"...
मातृरूपा
..नारी,
स्त्री
को
सदैव
श्रृद्धा-नमन की दृष्टि द्वारा हम क्यों नहीं देख सकते ... क्यों उस पर अत्याचार ..अनाचार के लिए तत्पर हो जाते हैं |