गुरुवार, 25 सितंबर 2014

Save The Girl Child, Save The Nation

The hand that rocks the cradle, the procreator, the mother of tomorrow; a woman shapes the destiny of civilization. Such is the tragic irony of fate, that a beautiful creation such as the girl child is today one of the gravest concerns facing humanity.
Photo: Save Girl Child (y)

The hand that rocks the cradle, the procreator, the mother of tomorrow; a woman shapes the destiny of civilization. Such is the tragic irony of fate, that a beautiful creation such as the girl child is today one of the gravest concerns facing humanity. 
 Save The Girl Child, Save The Nation
Photo: Save The Girl Child, Save The Nation 

“[Kids] don't remember what you try to teach them. They remember what you are.”
― Jim Henson

आखिर एक लड़की होकर भी

सीमा ने कविता को छेड़ते हुए कहा -''तुझे पता भी है तेरा बड़ा भाई सन्नी आजकल रूपा के घर के आस-पास घूमता रहता है .दिया बता रही थी कि उसने रूपा के पास सन्नी के कई प्रेम-पत्र भी देखे हैं .'' कविता सीमा की बात पर कुछ आक्रोशित होते हुए बोली -''नहीं ऐसा नहीं हो सकता ...मेरा भाई तो बहुत भोला है ..जरूर उस चुड़ैल रूपा ने ही कुछ कर के मेरे भाई को फँसाया होगा ....चल मेरे साथ उस रूपा के घर अभी अक्ल ठिकाने लगा कर आती हूँ बेवजह मेरे भाई को बदनाम कर रही है !!!'' ये कहते-कहते कविता तेजी से चल दी तभी दिया का भाई टोनी वहाँ आ पहुंचा और कविता से बोला -'' दीदी ! नमस्ते ....मुझे रूपा दीदी ने भेजा है . उन्होंने आपके लिए एक मैसेज भेजा है .उन्होंने कहा है कि आप अपने भाई सन्नी को समझाएं अन्यथा रूपा दीदी को कोई कड़ा कदम उठाना पड़ेगा ..आपके भाई की वजह से रूपा दीदी ने कॉलेज व् ट्यूशन सब जगह जाना छोड़ दिया है .उनका मानना है कि आप उनकी हमउम्र हैं ..आप उनकी परेशानी को समझेंगी ..वे नहीं चाहती कि उनके पिता जी को इस सब का पता चले वरना मामला पुलिस तक जा सकता है !'' टोनी के ये कहकर वहाँ से जाते ही कविता अपनी सोच पर शर्मिंदा हो उठी .उसके मन में आया -''आखिर एक लड़की होकर भी मैंने अपने भाई की आवारगी के लिए रूपा को दोषी ठहरा दिया .....अब मुझे कुछ करना होगा ...मुझे माँ व् पापा को इस सबके के बारे में बताना ही होगा ....आज पापा से बहुत झड़ेगा भाई !'' ये सोचते सोचते कविता ने अपने कदम रूपा के घर की ओर बढ़ाने की जगह अपने ही घर की ओर बढ़ा दिए और सीमा ने जिस पटाखे को आग लगाई थी वो फुस्स निकल गया .


शिखा कौशिक 'नूतन'

या देवी सर्व-भूतेषु --नारी ..... को श्रृद्धा -नमन क्यों नहीं ?...डा श्याम गुप्त



या देवी सर्व-भूतेषु -- नारी को श्रृद्धा -नमन क्यों नहीं ?

             नवरात्र .... देवी रूपा नारी के विभिन्न भाव रूपों की पूजा का उत्सव हैं.....
तीन देवियाँ ---ग्रीस ( रोमन)

त्रि देवी ...मिस्र
पार्वती

महा भगवती --जिनका वर्णन करने में स्वयं त्रिदेव भी सक्षम नहीं


  
               सृजन की ईशत-सत्ता, परमतत्व, परब्रह्म  की कार्यकारी शक्ति जहां असीम ब्रह्म में प्रकृति, माया या आदि शक्ति है ...वहीं ससीम विश्व में वह शक्ति व नारी रूपा है | अतः परमतत्व को समझने के लिए उससे बढ़कर श्रेष्ठतर  तत्व और क्या हो सकता है| जहां देवी, दुर्गा, काली, गौरी, लक्ष्मी, राधा, सीता, योगिनी, त्रिपुर सुन्दरी आदि ... शक्ति के विभिन्न नाम-रूपों की पूजा  की जाती रही है; वहीं नारी के सखा, माँ, भगिनी, प्रेयसि, पत्नी आदि विभिन्न  सामाजिक, पारिवारिक रूप संसार जीवन-जगत में महत्वपूर्ण हैं | अतः नारी सदैव ही समाज की केन्द्रीय भूमिका में रहती आयी है| शक्ति-रूपा नारी  सदैव  ही  मानव के श्रृद्धा  अन्तःस्फूर्ति का केंद्र है  एवं सदा होना चाहिए |


                   धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूपी जीवन तत्व  संसार तत्व को समझने  उसकी प्राप्ति सिद्धि के लिए मनुष्य  रिद्धि-सिद्धि, योग, व्यापार, कला , राजनीति, धर्म आदि का अवलंबन लेते हैं | परन्तु जीवन तत्व स्वयं जिसका प्रलेख है एवं परमात्म-सत्ता स्वयं को व्यक्त करने हेतु जिसका आलंबन लेती है उस अखंड मातृसत्ता से अन्यथा आलंबन इस संसार चक्र के हेतु और क्या हो सकता है ?  तो उसी  "या देवी सर्व भूतेषु 
"... मातृरूपा ..नारी, स्त्री को सदैव श्रृद्धा-नमन  की दृष्टि द्वारा हम क्यों नहीं देख सकते ... क्यों उस पर अत्याचार ..अनाचार के लिए तत्पर हो जाते हैं |

रविवार, 14 सितंबर 2014

स्त्री -पुरूष अत्याचार , नैतिकता, बल और बलवान व समाज...डा श्याम गुप्त.....



    स्त्री-पुरूष अत्याचार, नैतिकता, बल और बलवान व समाज...


                          वस्तुतः बात सिर्फ़ नैतिकता व बल की है। सब कुछ इन दोनों के ही पीछे चलता है।बल चाहे शारीरिक ,सामूहिक,आत्मिक या नैतिक बल हो सदैव अपने से कमजोर पर अत्याचार करता है। स्त्री स्त्री -परुष दोनों के लिए ही विवाह, मर्यादा आदि नैतिकताएं निर्धारित कीं समाज ने। समाज क्या है ? जब हम सब ने यह देखा कि, सभी व्यक्ति एक समान बलवान नहीं होते एवं बलवान सदा ही अशक्त पर अत्याचार करने को उद्यत हो जाता है तो आप, हम सब स्त्री-पुरुषों ने मिलकर कुछ नियम बनाए ताकि बल, या शक्ति - अन्य पर अत्याचार न करे, अपितु विकास के लिए कार्य करे। वही नियम सामाजिक आचरण, मर्यादा आदि कहलाये।
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सर्वाइवल ऑफ़ फिटेस्ट " मानव से निचले क्रम के प्राणियों के लिए शत प्रतिशत लागू होता है, परन्तु मानव समाज में -समरथ को नहीं दोष गुसाईं - की शिकायत करने वाले भी होते हैं। समाज होता है, प्रबुद्धता होती है, अन्य से प्रतिबद्धता का भाव होता है, अतः सर्वाइवल ऑफ़ फिटेस्ट को कम करने के लिए समाज ने नियम बनाए।
                      समाज कोई ऊपर से आया हुआ अवांछित तत्व नहीं है--हम ,आप ही तो हैं। नियम नीति निर्धारण में स्त्रियों की भी तो सहमति थीं । अतः सदा स्त्री पर पुरूष अत्याचार की बात उचितव सही नहीं है। जहाँ कहीं भी अनाचरण, अनैतिकता सिर उठाती है, वहीं बलशाली (शारीरिक बल, जन बल, सामूहिक बल,  धन बल, शास्त्र बल ) सदा कमज़ोर का उत्प्रीडन करता है। चाहे वे स्त्री-स्त्री हों, पुरुष-पुरूष हों या स्त्री-पुरूष व पुरूष-स्त्री परस्पर।
          अतः बात सिर्फ़ नैतिकता की है, जो बल को नियमन में रखती है। बाकी सब स्त्री-पुरूष अत्याचार आदि व्यर्थ की बातें हैं ।  नीति-नियम अशक्त की रक्षा के लिए हैं नकि अशक्त पर लागू करने के लिए, जो आजकल होरहा है। पर यह सब अनैतिक मानव करता है समाज नहीं
         जो लोग समाज को कोसते रहते हैं , वे स्वार्थी हैं, सिर्फ़ स्वयं के बारे में एकांगी सोच वाले। जब किसी पर अत्याचार होता है तो वह (अत्याचार संस्था, समाज, देश, शासन नहीं अपितु उनमें स्थित अनैतिक व भ्रष्ट लोग करते हैं। ) अपने दुःख में एकांगी सोचने लगता है, वह समाज को इसलिए कोसता है कि समाज ने उसे संरक्षण नहीं दिया, क्योंकि अनाचारी, अत्याचारी लोगों से उसमे स्वयं लड़ने की क्षमता नहीं थी। अतः बात वही बल व शक्ति के आचरण की है। समाज -- नैतिकता व आचरण द्वारा निर्बल को बल प्रदान करता है। बलवान का नियमन करता है।