पड़े हुवे हैं जन्म से, मेरे पीछे लोग ।
मरने भी देते नहीं, देह रहे नित भोग ।
देह रहे नित भोग, सुता भगिनी माँ नानी ।
कामुकता का रोग, हमेशा गलत बयानी ।
कोई देता टोक, कैद कर कोई अकड़े ।
कहीं चाल अश्लील, कहीं कह छोटे कपड़े ॥
(2)
पड़े हुवे हैं जन्म से मेरे पीछे मर्द |
मरने भी देते नहीं, ये जालिम बेदर्द |
ये जालिम बेदर्द, हुआ हर घर बेगाना ।
हैं नाना प्रतिबन्ध, पिता पति मामा नाना ।
मिला नहीं स्वातंत्र्य, रूढ़िवादी हैं जकड़े ।
पुरुषवाद धिक्कार, देखते रविकर कपड़े ॥
(2)
पड़े हुवे हैं जन्म से मेरे पीछे मर्द |
मरने भी देते नहीं, ये जालिम बेदर्द |
ये जालिम बेदर्द, हुआ हर घर बेगाना ।
हैं नाना प्रतिबन्ध, पिता पति मामा नाना ।
मिला नहीं स्वातंत्र्य, रूढ़िवादी हैं जकड़े ।
पुरुषवाद धिक्कार, देखते रविकर कपड़े ॥
5 टिप्पणियां:
सत्य लिखा है आपने इस छंद के माध्यम से ...
बहुत सटीक बात कही है ! नारी स्वातन्त्र्य का यह कतई मतलब नहीं !
आज का दर्द जो हर नारी का हैं को सहीं शब्द दिए हैं आपने
sateek .aabhar
क्यों नर एसा होगया यह भी तो तू सोच ,
क्यों है एसी होगयी उसकी गर्हित सोच |
उसकी गर्हित सोच,भटक क्यों गया दिशा से |
पुरुष सीखता राह सखी, भगिनी माता से |
नारी विविध लालसाओं में खुद भटकी यों |
मिलकर सोचें आज होगया एसा नर क्यों |
एक टिप्पणी भेजें