शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

लिव-इन भावी पीढ़ी के भविष्य के साथ भद्दा मजाक

भारतीय संस्कृति में लिव-इन जैसी सोच को कभी वैधता प्रदान नहीं की जा सकती है क्योंकि हमारी संस्कृति भावी पीढ़ी के प्रति अपना कर्तव्य निभाने पर जोर देती है न कि केवल अपने जीवन के साथ प्रयोग करने पर .हर संतान को समाज में वैध संतान का दर्जा  प्राप्त करने का नैसर्गिक अधिकार है .कैसे कोई केवल आधुनिकता के नाम पर भावी संतान के भविष्य के साथ खेल सकता है ? इस प्रसंग को हम इस लघु -कथा के माध्यम से और अधिक आसानी से समझ सकते हैं -


सोनाक्षी क्या कहती हो -विवाह बेहतर है या लिव इन रिलेशनशिप ? सिद्धांत के बेधड़क  पूछे गए सवाल से सोनाक्षी आवाक रह गयी उसने प्रिया की और इशारा करते हुए कहा -''प्रिया से ही क्यों नहीं पूछ लेते !''सिद्धांत मुस्कुराता हुआ बोला ''ये सती-सावित्री के युग की है ये तो विवाह का ही पक्ष लेगी पर आज हमारी युवा पीढ़ी जो आजादी चाहती है वो तो लिव-इन रिलेशनशिप में ही है .'' प्रिया ने सिद्धांत को आँख दिखाते हुए कहा -''सिद्धांत मंगनी की अंगूठी अभी उतार कर दूँ या थोड़ी  देर बाद ..? इस पर सोनाक्षी ठहाका  लगाकर हस पड़ी और सिद्धांत आसमान की और देखने लगा .सोनाक्षी ने प्रिया की उंगली में पड़ी अंगूठी को सराहते हुए कहा ''...वाकई बहुत सुन्दर है !सिद्धांत आज की युवा  पीढ़ी की बात तो ठीक है ....आजादी चाहिए पर सोचो यदि हमारे माता-पिता भी लिव-इन -रिलेशनशिप जैसे संबंधों को ढोते  तो क्या हम आज गरिमामय जीवन व्यतीत करते और फिर भावी पीढ़ी का ख्याल करो जो बस यह हिसाब ही लगाती रह जाएगी कि हमारे माता पिता कब तक साथ रहे ?हमारा जन्म उसी समय के संबंधो का परिणाम है या नहीं ?हमारे असली माता पिता ये ही हैं या कोई और ?कंही हम अवैध संतान तो नहीं ?....और भी न जाने क्या क्या .....अपनी आजादी के लिए भावी पीढ़ी के भविष्य को बर्बाद करने का तुम्हे या तुम जैसे युवाओं को कोई हक़ नहीं !'' सोनाक्षी के यह कहते ही प्रिया ने सिद्धांत के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा -''अब कभी मत पूछना विवाह बेहतर है या लिव-इन-रिलेशनशिप .''सिद्धांत ने मुस्कुराते हुए ''हाँ'' में गर्दन हिला दी .

अब फैसला आपके हाथ में है -भावी संतानों की दृष्टि में आप अपने लिए सम्माननीय स्थान चाहते हैं अथवा निंदनीय .लिव-इन तो किसी भी सभ्य समाज में अपनाया नहीं जा सकता .जो इस जीवन-पद्धति को अपना रहे हैं वो तो उसी आदिकाल में लौट रहे हैं जहाँ न कोई समाज था ,न कोई नियंत्रण था और मानव जानवर के सामान अपना जीवन यापन करता था .
न कोई मर्यादा ..न कोई जवाबदेही
लिव-इन को कैसे कहा जा सकता है सही !!!


शिखा कौशिक 'नूतन '

7 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

यह रिश्ता तो हर तरह से अपूर्णता लिए है ..... सटीक बिंदु हैं

hem pandey(शकुनाखर) ने कहा…

अभी तक तो हमारा युवा वर्ग भी इस रिश्ते को पसन्द करने से कतरा रहा है ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

यही तो हो रहा है आज समाज में।
--
न जाने कब सद्बुद्धि देगा परमात्मा।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

यही तो हो रहा है आज समाज में।
--
न जाने कब सद्बुद्धि देगा परमात्मा।

देवदत्त प्रसून ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति !

vishvnath ने कहा…

जो रिश्ता शुरू ही इस भाव के साथ हो की " अभी हम टेस्टिंग पीरियड में है " अगर अच्छा लग्गा तो साथ रहेंगे वरना अलग हो जायेंगे।
इस प्रकार के रिश्ते मात्र शारीरिक कुंठा की छदम संतुष्टि के लिए होते है। इन रिश्तो के समयकाल में ही लोग बाकी बची ज़िंदगी के लिए भी परेशानिया पाल आगे की भी ज़िंदगी खराब करते है

डा श्याम गुप्त ने कहा…

भारतीय समाज में ...सतयुग में लिव इन रिलेशनशिप की प्रथा थी .... स्त्रियाँ अपनी इच्छा से किसी भी पुरुष के साथ कितने भी समय तक रहने को स्वतंत्र थीं .... पुरुरवा-उर्वशी...गंगा-शांतनु ..उदाहरण हैं परन्तु उस युग में माता-पिता इस प्रकार की संतान का पूर्ण दायित्व लेते थे ...परन्तु फिर भी पालन-पोषण की असुविधाएं व इस प्रकार की संतानों का असंतुलित व्यवहार, मानसिक पीड़ा एवं मानवों के अपने कर्तव्यों से मुकरने के संभाव्य कारणों के कारण इस प्रथा को अमान्य किया गया एवं विवाह प्रथा ही सर्व-स्वीकृत रही...
----अतः लिव इन रिलेशनशिप प्रागैतिहासिक एवं आदिम समाज की व्यवस्था है ..
----हम क्यों त्याज्य आदिम व्यवस्था को अपनाएं ...