रविवार, 27 जुलाई 2014

बना न ले कहीं अपना वजूद औरत


ये औरत ही है !


पाल कर कोख में जो जन्म देकर बनती  है जननी 
औलाद की खातिर मौत से भी खेल जाती है .

बना न ले कहीं अपना वजूद औरत 
कायदों की कस दी  नकेल जाती है .

मजबूत दरख्त बनने नहीं देते  
इसीलिए कोमल सी एक बेल बन रह जाती है .

हक़ की  आवाज जब भी  बुलंद करती है 
नरक की आग में धकेल दी जाती है 


फिर भी सितम  सहकर  वो   मुस्कुराती  है 
ये औरत ही है जो हर  ज़लालत  झेल  जाती  है .

                                          शिखा कौशिक 
                           [vikhyaat  ]







5 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

very right view and expression .thanks

विभूति" ने कहा…

कोमल भावो की और अभिवयक्ति .....

विभूति" ने कहा…

कोमल भावो की और अभिवयक्ति .....

BLOGPRAHARI ने कहा…

आपका ब्लॉग देखकर अच्छा लगा. अंतरजाल पर हिंदी समृधि के लिए किया जा रहा आपका प्रयास सराहनीय है. कृपया अपने ब्लॉग को “ब्लॉगप्रहरी:एग्रीगेटर व हिंदी सोशल नेटवर्क” से जोड़ कर अधिक से अधिक पाठकों तक पहुचाएं. ब्लॉगप्रहरी भारत का सबसे आधुनिक और सम्पूर्ण ब्लॉग मंच है. ब्लॉगप्रहरी ब्लॉग डायरेक्टरी, माइक्रो ब्लॉग, सोशल नेटवर्क, ब्लॉग रैंकिंग, एग्रीगेटर और ब्लॉग से आमदनी की सुविधाओं के साथ एक सम्पूर्ण मंच प्रदान करता है.
अपने ब्लॉग को ब्लॉगप्रहरी से जोड़ने के लिए, यहाँ क्लिक करें http://www.blogprahari.com/add-your-blog अथवा पंजीयन करें http://www.blogprahari.com/signup .
अतार्जाल पर हिंदी को समृद्ध और सशक्त बनाने की हमारी प्रतिबद्धता आपके सहयोग के बिना पूरी नहीं हो सकती.
मोडरेटर
ब्लॉगप्रहरी नेटवर्क

Unknown ने कहा…

सहना उसे आता हैं वो महान होता हैं एक औरत दर्द सह कर एक बच्चे को जन्म देती हैं और माँ कहलाती हैं। सहनशिलता कभी कायरता की पहचान नहीं रही।