मंगलवार, 1 जुलाई 2014

कहीं चाल अश्लील, कहीं कह छोटे कपड़े-

पड़े हुवे हैं जन्म से, मेरे पीछे लोग । 
मरने भी देते नहीं, देह रहे नित भोग । 

देह रहे नित भोग, सुता भगिनी माँ नानी । 
कामुकता का रोग, हमेशा गलत बयानी । 

कोई देता टोक, कैद कर कोई अकड़े । 
कहीं चाल अश्लील, कहीं कह छोटे कपड़े ॥

(2)

पड़े हुवे हैं जन्म से मेरे पीछे मर्द |
मरने भी देते नहीं, ये जालिम बेदर्द |

ये जालिम बेदर्द, हुआ हर घर बेगाना । 
हैं नाना प्रतिबन्ध, पिता पति मामा नाना । 

मिला नहीं स्वातंत्र्य, रूढ़िवादी हैं जकड़े । 
 पुरुषवाद धिक्कार, देखते रविकर कपड़े ॥ 

5 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सत्य लिखा है आपने इस छंद के माध्यम से ...

देवदत्त प्रसून ने कहा…

बहुत सटीक बात कही है ! नारी स्वातन्त्र्य का यह कतई मतलब नहीं !

Unknown ने कहा…

आज का दर्द जो हर नारी का हैं को सहीं शब्द दिए हैं आपने

Shikha Kaushik ने कहा…

sateek .aabhar

डा श्याम गुप्त ने कहा…

क्यों नर एसा होगया यह भी तो तू सोच ,
क्यों है एसी होगयी उसकी गर्हित सोच |
उसकी गर्हित सोच,भटक क्यों गया दिशा से |
पुरुष सीखता राह सखी, भगिनी माता से |
नारी विविध लालसाओं में खुद भटकी यों |
मिलकर सोचें आज होगया एसा नर क्यों |