मर्दों ने कब्ज़ा ली कोख |
लब खामोश
घुटती सांसें
दिल में क्षोभ
उठा रही
सदियों से औरत
मर्दों की दुनिया
के बोझ !
......................................
गाली ,घूसे ,
लात , तमाचे
सहती औरत
युग-युग से
फंदों पर कहीं
लटकी मिलती ,
दी जाती कहीं
आग में झोंक !
..............................
वहशी बनकर
मर्द लूटता
अस्मत
इस बेचारी की ,
दुनिया केवल
है मर्दों की
कहकर
कब्ज़ा ली
है कोख !
शिखा कौशिक 'नूतन'
7 टिप्पणियां:
गाली ,घूसे ,
लात , तमाचे
सहती औरत
युग-युग से
फंदों पर कहीं
लटकी मिलती ,
दी जाती कहीं
आग में झोंक !
sach ko bebaki se likha hai aapne .well written .
गाली ,घूसे ,
लात , तमाचे
सहती औरत
युग-युग से
फंदों पर कहीं
लटकी मिलती ,
दी जाती कहीं
आग में झोंक !
sach ko bebaki se likha hai aapne .well written .
सुन्दर -
आभार -
क्या कहा जाये :-(
हिंदी साइंस फिक्शन
नारी के दर्द को बाखूबी उकेरा है इन पंक्तियों में ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (10-06-2014) को "समीक्षा केवल एक लिंक की.." (चर्चा मंच-1639) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सार्थक प्रस्तुति...
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