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मंगलवार, 7 मई 2013

श्याम स्मृति---स्त्रियों द्वारा सेवा (सर्विस / चाकरी ) .....डा श्याम गुप्त ...


                               श्याम स्मृति----
स्त्रियों द्वारा सेवा  (सर्विस / चाकरी ) 
          मेरे विचार से हायर प्रोफेशनल्स, चिकित्सक, उच्च अधिकारी, प्रोफ़ेसर आदि की उच्च स्थिति से अन्यथा सेवा स्त्रियों को नहीं करनी चाहिए, जब तक कोई  विशेष आपात स्थिति..परिस्थिति हो उन्हें स्वयं का व्यक्तिगत विशेषज्ञ कर्म, व्यबसाय करना चाहिए जहां वे स्वयं ही 'बॉस' हैं क्योंकि मातहत सेवाओं में  स्त्रियों के होने से शोषण-चक्र को ही बढ़ावा मिलता है सिर्फ सर्विस के लिए या समय काटने के लिए, यूंही और आय बढाने के लिए सर्विस का लाभ नहीं है यदि आप 'हाईली पेड' नहीं हैं तो आपको घर दफ्तर दोनों का दायित्व संभालना पडेगा और बहुत से समझौते करने पड़ेंगे
        यदि सारी स्त्रियाँ सर्विस करने लगें तो देश में दो सौ प्रतिशत स्थान तो होंगे नहीं; ज़ाहिर है कि वे  पुरुषों का ही स्थान लेंगी और पुरुषों में बेरोज़गारी का कारण बनेंगीं।  कोई पति-पत्नी युगल अधिक कमाएगा अधिक खर्चेगा, कोई दोनों ही बेरोज़गार होंगे, कोई एक ही, अतः सामाजिक असमानता,असमंजसता, भ्रष्टाचरण को बढ़ावा मिलेगा कुछ पुरुष स्त्रियों की कमाई पर मौज उड़ायेंगे कुछ ताने बरसाएंगे अतः पारिवारिक द्वंद्व भी बढ़ेंगे यदि स्त्रियाँ सामान्यतः नौकरी करें तो लगभग सभी युवक रोज़गार पायेंगे सामाजिक समरसता रहेगी पुरुष स्वयमेव समुचित  वेतन के भागी होंगे
           हाँ जहां तक यह प्रश्न है कि प्राचीन प्रागैतिहासिक  युगों में भी सदा स्त्री-पुरुष दोनों साथ साथ काम करते थे एवं  मध्यकाल में और आज भी अधिकाँश वर्गों में, गाँवों में भी स्त्रियां पुरुषों के साथ साथ सभी कार्य करती हैं  तो वास्तव में ....पति -परिवार के साथ कार्य करना, खेतों पर कार्य, स्वयं का व्यवसाय संभालना जो  सदा से ही नारी करती आरही है एक पृथक बात है कैकेयी का युद्ध में साथ देना, रानियों का अन्तःपुर की व्यवस्था संभालना, राधा का नेतृत्व, द्रौपदी का अन्तःपुर संचालन तो प्रसिद्ध हैं   परन्तु यहाँ प्रश्न अन्य की चाकरी करने का है, सेवा का है, जो सामंती व्यवस्था की देन है  तथा स्त्री-पुरुष उत्प्रीडन, शोषण द्वंद्व की  परिणामी स्थिति उत्पन्न करती है
            और यह प्रश्न कि उनकी आर्थिक सुरक्षा का दायित्व किस पर होगा ?  ??????      पिता....पति ....समाज की चक्रीय व्यवस्था ..जिसमं  .सभी  स्त्रियों की आर्थिक सुरक्षा है ...| प्रत्येक स्त्री विवाह से पहले पुत्री बाद में पत्नी होती है जो पति की कमाई जायदाद आदि में हिसेदार होती है, पहले पिता का तत्पश्चात पति का दायित्व होता है उसके भरण-पोषण का | यदि यह स्थिति उत्पन्न ही हो तो सबसे सुन्दर सहज स्थिति है...

घर को सेवै सेविका, पत्नी  सेवै अन्य ,
छुट्टी लें तब मिल सकें,सो पति-पत्नी धन्य |