श्याम स्मृति----
स्त्रियों द्वारा सेवा (सर्विस / चाकरी )
मेरे विचार से हायर प्रोफेशनल्स, चिकित्सक, उच्च अधिकारी, प्रोफ़ेसर आदि की उच्च स्थिति से अन्यथा सेवा स्त्रियों को नहीं करनी चाहिए, जब तक कोई विशेष आपात स्थिति..परिस्थिति न हो । उन्हें स्वयं का व्यक्तिगत विशेषज्ञ कर्म, व्यबसाय
करना
चाहिए
जहां
वे
स्वयं
ही 'बॉस' हैं । क्योंकि मातहत सेवाओं में स्त्रियों के होने से शोषण-चक्र
को
ही
बढ़ावा
मिलता
है
।
सिर्फ
सर्विस
के
लिए
या
समय
काटने
के
लिए, यूंही और आय बढाने के लिए सर्विस का लाभ नहीं है । यदि आप 'हाईली पेड' नहीं
हैं
तो
आपको
घर
व
दफ्तर
दोनों
का
दायित्व
संभालना
पडेगा
और
बहुत
से
समझौते
करने
पड़ेंगे
।
यदि सारी स्त्रियाँ सर्विस करने लगें तो देश में दो सौ प्रतिशत स्थान तो होंगे नहीं; ज़ाहिर है कि वे पुरुषों
का
ही
स्थान
लेंगी
और
पुरुषों
में
बेरोज़गारी
का
कारण
बनेंगीं। कोई पति-पत्नी
युगल
अधिक
कमाएगा
व
अधिक
खर्चेगा, कोई दोनों ही बेरोज़गार होंगे, कोई एक ही, अतः
सामाजिक
असमानता,असमंजसता, भ्रष्टाचरण को बढ़ावा मिलेगा । कुछ पुरुष स्त्रियों की कमाई पर मौज उड़ायेंगे कुछ ताने बरसाएंगे । अतः पारिवारिक द्वंद्व भी बढ़ेंगे । यदि स्त्रियाँ सामान्यतः नौकरी न करें तो लगभग सभी युवक रोज़गार पायेंगे व सामाजिक समरसता रहेगी । पुरुष स्वयमेव समुचित वेतन के भागी होंगे ।
हाँ जहां तक यह प्रश्न है कि प्राचीन व प्रागैतिहासिक युगों में भी सदा स्त्री-पुरुष दोनों साथ साथ काम करते थे । एवं मध्यकाल में और आज भी अधिकाँश वर्गों में, गाँवों में भी स्त्रियां पुरुषों के साथ साथ सभी कार्य करती हैं । तो वास्तव में ....पति -परिवार
के
साथ
कार्य
करना, खेतों पर कार्य, स्वयं का व्यवसाय संभालना जो सदा से ही नारी करती आरही है एक पृथक बात है । कैकेयी का युद्ध में साथ देना, रानियों का अन्तःपुर की व्यवस्था संभालना, राधा का नेतृत्व, द्रौपदी का अन्तःपुर संचालन तो प्रसिद्ध हैं । परन्तु यहाँ प्रश्न अन्य की चाकरी करने का है, सेवा का है, जो
सामंती
व्यवस्था
की
देन
है तथा स्त्री-पुरुष उत्प्रीडन, शोषण व
द्वंद्व
की परिणामी स्थिति उत्पन्न करती है ।
और यह प्रश्न कि उनकी आर्थिक सुरक्षा का दायित्व किस पर होगा ?
?????? पिता....पति ....समाज
की
चक्रीय
व्यवस्था ..जिसमं .सभी स्त्रियों की आर्थिक सुरक्षा है ...| प्रत्येक स्त्री विवाह से पहले पुत्री व बाद में पत्नी होती है जो पति की कमाई व जायदाद आदि में हिसेदार होती है, पहले
पिता
का
तत्पश्चात
पति
का
दायित्व
होता
है
उसके
भरण-पोषण का | यदि यह स्थिति उत्पन्न ही न हो तो सबसे सुन्दर व सहज स्थिति है...
घर को सेवै सेविका, पत्नी सेवै अन्य ,
छुट्टी लें तब मिल सकें,सो पति-पत्नी
धन्य |