घर-कमरा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
घर-कमरा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

डा श्याम गुप्त की कविता ......मम्मी इमोशनल होगई हैं...

पुत्रवधू का फोन आया -
बोली, पापा 'ढोक',
घर का फोन उठ नहीं रहा ,
कहाँ व कैसे हैं आप लोग ?    


खुश रहो बेटी, कैसी हो ...
ठीक हैं हम भी ,
ईश्वर की कृपा से मज़े में हैं , और-
इस समय तुम्हारे कमरे में हैं ।

क्या ...?
हाँ बेटा , जयपुर में हैं ,
तुम्हारे पापा के आतिथ्य में ।

हैं .... ! मम्मी कहाँ हैं , पापा ?
बैठी हैं तुम्हारे कमरे में,
 तुम्हारे पलंग पर,  सजल नयन ....             

वो इमोशनल होगई हैं, और-
बैठी विचार मग्न हैं -
सिर्फ यही नहीं कि,
कैसे तुम यहाँ की डोर छोड़कर
गयी हो वहां ,
अज़नबी, अनजान लोगों के बीच ,
अनजान डगर ,
हमारे पास ।
अपितु - साथ ही साथ ,
अपने अतीत की यादों के डेरे में , कि-
कभी वह स्वयं भी अपना घर-कमरा-
छोड़कर आयी थी ;
और तुम्हारी ननद भी ,
अपना घर, कमरा, कुर्सी- मेज-
छोड़कर गयी है ,
इसी प्रकार ......और......।।